स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रही हैं ये महिलाएं, कोई एंबुलेंस चला रही तो कोई बांट रही डाक

जालंधर / आज 8 मार्च है यानि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस। इस खास दिन पर सरकारी-गैर सरकारी संगठनों द्वारा आयोजित महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों से भी ज्यादा भूमिका एक महिला की जिंदगी में खुद का स्टैंड निभाता है। देश-दुनिया में ऐसी गिनी-चुनी महिलाएं ही होंगी। इन्हीं में कुछ नाम पंजाब के भी हैं। कोई हालात की मारी एंबुलेंस या स्कूटर कैब चलाकर स्वाभिमान की जंग जीतने में कामयाब रही तो कोई अपने आप को स्वस्थ रखने के लिए ही सही, पर बाकी की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है। आइए जानें प्रदेश की ऐसी ही महिलाओं के बारे में।


शराबी पति के साथ ब्याहकर दुनिया में छोड़ गए माता-पिता


जालंधर की मनजीत कौर पिछले 15 साल से एम्बुलेंस चला रही हैं। दिन हो रात, धूप हो या बारिश एक फोन कॉल पर तुरंत हाजिर हो मरीज और डेड बॉडी को छोड़ने के लिए यूपी, बंगाल, कोलकाता, मुंबई आदि कई राज्यों तक में चली जाती हैं। एम्बुलेंस चलाना न केवल इनका शौंक था बल्कि मजबूरी भी बन गई। 46 साल की मनजीत कौर अपनी एंबुलेंस खरीदने के लिए पैसा नहीं है, सो रामा मंडी के एक अस्पताल की एंबुलेंस चलाती हैं। इनकी कहानी बड़ी दर्द भरी है। 3 अक्टूबर 1978 को कपूरथला जिले के गांव मंडी मोड़ के किसान परिवार में जन्मी मनजीत कौर को बचपन में घर-खानदान में ‘रानी’ नाम से पुकारा जाता था। बीमारी से परेशान पिता हीरा सिंह ने 15 साल की उम्र में जिस शराबी युवक के साथ शादी कर दी, उसके साथ गांव भुलाना पहुंची तो वहां जेठ और ननद दिमागी रूप से कमजोर मिले। 1998 में पिता हीरा सिंह और 2004 में मां राज कौर की मौत हो गई। ससुराल में हालात पहले से ही ठीक नहीं थे।


छत से कूद इज्जत बचाई बहादुर मनजीत कौर ने, किया झाड़ू-पौंछा


एक दिन पति ने महज 200 रुपए की खातिर दो आदमियों को मकान में घुसा दिया। घर की छत से कूदकर इज्जत बचाई। दो बेटियों की मौत हो चुकी है। भाई चाहते थे कि मैं अपना इकलौता बेटा और शराबी पति को छोड़कर मायके में उनके पास जाकर रहने लगूं, दिल नहीं माना। साथ नहीं रहने को लेकर भाई संपत्ति के विवाद में कोर्ट में जा खड़े हुए। इसके बाद हालत यहां तक खड़ी हो गई कि बेटे और खुद की जिंदगी बचाने के लिए घरों में चौका-बर्तन-झाड़ू-पौंछा शुरू कर दिया। वहां भी बुरी नजर से नहीं बच सकी। हिम्मत नहीं हारते हुए फिर एंबुलेंस चलाने की मन में आई। भाइयों की छोटी सोच के बारे में मनजीत कौर बताती हैं कि उन्होंने 16 साल के बेटे पर एक महिला से बलात्कार का आरोप लगवा दिया। इसमें कुछ नहीं बिगड़ा तो एक एंबुलेंस ड्राइवर को एक लाख में ठेका दिया गया कि वह इज्जत के साथ खेले और उन्हें सबूत भेज दे। इसमें भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा।


एंबुलेंस चलाना शुरू किया तो भी रही लोगों की बुरी नजर


शुरुआती दौर में जालंधर की सड़कों पर एंबुलेंस लेकर निकली तो शहर के कुछ लोग हंसे। कुछ एक महिला को एंबुलेंस ड्राइव करते देखकर सड़क किनारे खड़े होने लगे। कई अस्पतालों में मरीज के तीमारदारों ने महिला एंबुलेंस ड्राइवर समझकर अपने मरीजों-घायलों को मनजीत की एंबुलेंस में भिजवाना गंवारा नहीं समझा, वहीं कई अस्पतालों ने महिला एंबुलेंस ड्राइवर समझकर दरवाजे पर फटकने तक नहीं दिया। 


जसपाल भट्‌टी का एक्सीडेंट हुआ तो वीआईपी एंबुलेंस ड्राइवर बनी मनजीत कौर


एक दिन कंट्रोल रूम से रात के वक्त एक्सीडेंट की कॉल आई. बड़ी ‘वेंटीलेटर-एंबुलेंस’ लेकर रात को ही अकेली नकोदर पहुंच गई। एक लड़का, एक बुजुर्ग और एक महिला खून से लथपथ मौके पर मिले। स्पॉट पर पता चला कि खून से लथपथ उन लोगों में देश के मशहूर हास्य अभिनेता जसपाल भट्टी, उनका बेटा और पुत्र वधू थे। बेटे-बहू को इलाज के लिए लुधियाना के अस्पताल में दाखिल कराया। जसपाल भट्टी को गंभीर हालत में लेकर जालंधर पहुंची तो वहां  भट्टी को डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। अगले दिन मैं पोस्टमॉर्टम के बाद जसपाल भट्टी साहब की लाश लेकर चंडीगढ़ पहुंची। वहां मौजूद नेता-मंत्री-संतरी-आमजन की भीड़ ने चंद लम्हों में मनजीत कौर को वीआईपी महिला एंबुलेंस ड्राइवर बना दिया।


पति के एक्सीडेंट के बाद पटरी से उतरी जिंदगी, संभालने के लिए कांता बनीं स्कूटर कैब ड्राइवर
मोहाली की कांता चौहान के सिर से पिता का साया छोटी उम्र में ही सिर से उठ गया था। मां ने पालकर बड़ा किया। 2006 में जालंधर के ऑटो ड्राइवर संत राम से विवाह हुआ था। सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक संत राम के एक्सीडेंट के बाद हालात डगमगा गए। इलाज में सारी जमा पूंजी खर्च हो गई। घर में खाने तक को कुछ नहीं होता था। कांता ने घर चलाने के लिए कुछ करने की सोची। पति ने एक निजी कंपनी के लिए कैब (स्कूटर) ड्राइवर बनने की सलाह दी। इसके बाद 1 अक्टूबर 2019 से कांता लोगों को मंजिल तक पहुंचाने में जुट गई।जालंधर की पहली कैब चालक कांता चौहान आज शहर की उन तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, जो हालात के आगे हथियार डाल देती हैं। अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है। मेहनत है, संघर्ष है, लेकिन अपनी मंजिल तय करने के लिए दूसरों की सारथी बनने में आत्म संतुष्टि होती है।



शाही शहर की दो अनोखी डाक वाली
20 साल से ज्यादा समय से शाही पटियाला में घर-घर जाकर डाक बांटने वाली बलजीत कौर स्वेच्छा से यह नौकरी की थी। करीब 500 डाक बांटती हैं। उनमें से 100 के करीब ऐसे घर हैं जिनको नॉक करके उपभोक्ता के हस्ताक्षर भी करवाने होते हैं । पैदल चलने का कारण यह है कि शुरुआत में उन्होंने पैदल डाक बांटनी शुरू की थी और बाद में उनकी दिनचर्या बन गई कि जब तक वह पैदल नहीं चलती तब तक उनका शरीर तंदरुस्त नहीं रहता। इसी तरह भिरांवा वाली नामक एक और महिला ने विवाह से पहले ही डाक बांटनी शुरू कर दी थी, जो बाद में भी जारी रखा। 6 साल पहले डाक विभाग से रिटायर हो गई हैं, डाक बांटने का काम नहीं छोड़ा। अब दिहाड़ी पर डाक बांटने का काम कर रही हैं। इन दोनों में एक समानता और भी है कि ये दोनों ही महिलाएं डाक बांटने से पहले स्टांप वैंडर का काम करती थी और बाद में उन्होंने डाक बांटने का काम शुरू किया था। पति की मौत के बाद 2005 में शुरू किया सेल्फ हेल्प ग्रुप
पटियाला के गांव खास ब्राह्मणां की सुरिंदर कौर ने बताया कि वर्ष 2005 में पति की मौत के बाद फोकल प्वाइंट में छह माह सिलाई व कढ़ाई का काम सीखा। फिर गांव की दस लड़कियों को भी सिखाया। सभी को साथ लेकर सरकार से तीन लाख रुपये ऋण लिया और हैंडलूम का काम शुरू किया। नवीं किरण ग्रुप बनाकर तीन महिलाओं के घर में मशीनरी लगाई और मिलकर काम आगे बढ़ाया। शुरू में फुलकारी व स्वेटर बनाने का काम किया और उन्हें बेचकर पहले ऋण उतारा।


गांव में 100 महिलाओं को दे रहीं रोजगार
एक ग्रुप से शुरू हुआ यह काफिला अब गांव में नौ ग्रुप तक पहुंच चुका है। इनमें 100 महिलाएं काम कर रही हैं। नवीं किरण ग्रुप में निर्मित सामान बेचने के लिए सुरिंदर कौर बाहर भी जाती हैं। उन्होंने बताया कि ओडिशा, चेन्नई, मुंबई, श्रीनगर, केरल, दिल्ली, हैदराबाद, राजस्थान, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में लगने वाले मेलों में सामान बेचा जाता है। एक मेले में एक से तीन लाख रुपये तक आमदनी हो जाती है। उनकी फुलकारी व स्वेटर सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं। अगर किसी महिला सदस्य को पचास हजार रुपये तक जरूरत है तो उसे सरकारी या निजी वित्तीय संस्थान में जाने की जरूरत नहीं। ग्रुप के मासिक लाभ में से ही एक हिस्सा निकालकर ऐसा कोष बनाया गया है।


परमजीत कौर की भी ऐसी ही कहानी
सेल्फ हेल्प गुप में काम करने वाली परमजीत कौर ने बताया कि उनके परिवार के पास जमीन कम थी। आमदनी के साधन भी कम थे। फिर ग्रुप के साथ काम शुरू किया और छह बार ऋण लेकर चार कमरे व घर के लिए अन्य सामान खरीदा। अब बेटी की शादी के लिए पैसे जोड़ रही हैं। ऊन खरीद कर महिलाओं में बांटती हैं और स्वेटर तैयार करवा बाजार में बेचती हैं।