अयोध्या / रामलला से 500 साल बाद मंगलवार को बांके बिहारी मंदिर वृंदावन के रंगों से होली खेली गई। मंदिर के पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया- रामलला को पकवान भी अर्पित किए गए। रंग और मिठाई बांके बिहारी मंदिर मथुर से लाए गए। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद रामलला ने स्वतंत्र होली खेली है। इसे हम विजय होली कह रहे हैं। रामलला को गुलाब से बना अबीर लगाया गया। आने वाली नवरात्र में रामलला टेंट मंदिर से हटकर नए अस्थाई मंदिर में तब तक के लिए पहुंच जाएंगे, जब तक कि नया मंदिर तैयार नहीं हो जाता। रामनवमी (2 अप्रैल) को यह भी पहली बार होने जा रहा है कि देश-विदेश में बैठे लोग अस्थाई मंदिर में मनाए जा रहे राम जन्मोत्सव, पूजा-अर्चना का सीधा प्रसारण देखेंगे। सत्येंद्र दास ने बताया कि होली, रामनवमी ही नहीं, साल के सभी उत्सव ब्रज की तरह पूरे जोर-शोर से मनाए जाएं। चतु:वैष्णव संप्रदाय के अध्यक्ष फूलडोल बिहारी दास ने वृंदावन में कहा कि बांके बिहारी की ओर से रामलला को गुलाल भेजने की जो परंपरा शुरू हुई है, इसे सतत बरकरार रखने की जरूरत है। वैसे भी राम और कृष्ण तो एक ही ठाकुर हैं। कृष्ण रससिद्ध और उत्सवधर्मी हैं, वहीं राम कुछ विरक्त और मर्यादाधर्मी। ऐसी पहल सांप्रदायिक सद्भाव और समरसता को बढ़ाने वाली ही सिद्ध होगी। इससे समाज में उत्सव की बढ़ोत्तरी होगी। कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल मिश्रा ने कहा कि कान्हा की ओर से रामलला को गुलाल भेजने की सोच बेहद प्रशंसनीय है।
वृंदावन की ठंडाई और गुजिया का भोग लगा
बांके बिहारी मंदिर ने रामलला के लिए गुलाल के साथ वृंदावन की खास ठंडाई और गुजिया भी भेजी। रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दान ने कहा कि अभी तक रामलला को विशेष मौकों पर इलायची-दाना का भोग लगता था। अबकी बार उन्हें वृंदावन से आई ठंडाई और गुजिया का भोग लगाया गया। समूचे जन्मभूमि परिसर में पहली बार होली पर खुशी के अद्भुत रंग दिखें।
‘भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न का राज्य रहे ब्रज का अवध से पुराना नाता, अब बांके बिहारी ने शुरू की रंग की नातेदारी’
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ मीडिया के डॉ. धनंजय चोपड़ा के मुताबिक, ‘रसिया आयो तेरे द्वार, खबर दीजौ। यह रसिया पौरी में आयो, जाकी बांह पकर भीतर कीजौ...’ ब्रज का यह गीत आज अवध में गूंज रहा है। बांके बिहारी ने रामलला को गुलाल भेजकर अयोध्या के होरियारे रंग में अपनी आभा भी शामिल कर दी है। बरसों बाद होली चमकती-दमकती नजर आ रही है अयोध्या। सरयू की लहरें भी कुछ अधिक किलोल कर रही हैं, मानों मस्ती में गीत गा रही हों कि ‘ब्रज से आयो गुलाल अबीरा, अवध में होली खेलें रघुबीरा’। हर कोई झूम रहा है, गा रहा है। लग रहा है कि सब के सब अपने रामलला के रंग में डूब जाना चाहते हैं। सरयू गवाह है कि अवध और ब्रज का संबंध बड़ा पुराना है। भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न ने ब्रज पर राज किया था। ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा का पड़ाव जिस गली बारी के शत्रुघ्न मंदिर पर होता है, वह बहुत पौराणिक महत्व रखता है। महोली गांव का कुंड शत्रुघ्न की कथाएं कहता है। यही नहीं, अयोध्या के कनक भवन का नाता उस रसिक समाज से है, जो ब्रज में रहकर बांके बिहारी के रस में डूबा रहता है। ब्रज और अयोध्या के रिश्तों को और बेहतर ढंग से समझना हो तो हमें जयदेव के गीत-गोविंद के पृष्ठों को बहुत रस के साथ दोहराना होगा। और, पहली बार आज जब बांके बिहारी ने गुलाल भेजकर ब्रज और अवध की नातेदारी की याद दिलाई तो पूरी अयोध्या मानों संग-संग गा उठी है कि ‘होली खेलें रघुरैया, अवध में बाजे बधैया।’ बांके बिहारी मंदिर के गुलाल से बिखरी छटा अद्भुत रही। इस होली के मायने कुछ अलग ही हैं क्योंकि राम जन्मभूमि में जल्द ही भव्य मंदिर की नींव पड़ने जा रही है।