कोरबा । नगर पालिक निगम में सत्ता खोने के बाद भाजपा पार्षदों में अब नेता प्रतिपक्ष बनने की होड़ मच गई है। अब तक नरेंद्र देवांगन, हितानंद अग्रवाल, सुफल दास तथा फिरत साहू का नाम प्रमुखता से सामने आया है। शनिवार को वरिष्ठ नेताओं की सहमति उपरांत जल्द ही नेता प्रतिपक्ष के नाम की घोषणा की जाएगी। निगम चुनाव में 31 वार्ड में जीत हासिल करने के बाद भाजपा सत्ता के करीब पहुंच गई, पर महज एक मत से महापौर की कुर्सी हाथ से निकल गई। निगम की सत्ता में कांग्रेस ने दोबारा कब्जा कर लिया। सत्ता खोने के बाद भाजपा में अब नेता प्रतिपक्ष बनने को लेकर कवायद तेज हो गई है। मार्च माह के अंतिम सप्ताह में बजट पारित कराने सामान्य सभा आयोजित की जाएगी, इसके पहले निगम भाजपा नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति कर देगी। चुनाव जीत कर आए कई पार्षद इस पद के लिए अपने स्तर पर जोर लगा रहे हैं, पर प्रमुखता से तीन नाम आगे चल रहा है। इसमें पूर्व संसदीय सचिव के भाई नरेंद्र देवांगन, दोबारा चुनाव जीत कर पहुंचे हितानंद अग्रवाल तथा सुफल दास महंत शामिल हैं। वार्ड क्रमांक 16 के नरेंद्र देवांगन सभापति पद के लिए खड़े हुए थे, पर उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। बावजूद इस पद हेतु नरेंद्र लामबंद कर रहे हैं। इधर सभापति की दौड़ से चूके वार्ड क्रमांक 35 के पार्षद हितानंद अग्रवाल ने नेता प्रतिपक्ष पद हेतु अपने स्तर पर जोर आजमाइश लगा रहे हैं और वरिष्ठ पदाधिकारियों से लगातार संपर्क में जुटे हैं। यही स्थिति वार्ड क्रमांक आठ के सुफल दास व वार्ड क्रमांक 45 के पार्षद फिरत राम साहू की है। इन चारों पार्षदों में किसके सिर पर नेता प्रतिपक्ष का ताज सजेगा, इसका खुलासा शनिवार को होगा। टीपी नगर भाजपा कार्यालय में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं नगर निगम प्रभारी सच्चिदानंद उपासने की उपस्थिति में शनिवार को बैठक आयोजित की गई है। भाजपा जिलाध्यक्ष अशोक चावलानी ने बताया कि वरिष्ठ पदाधिकारियों की सहमति से नेता प्रतिपक्ष का नाम तय किया जाएगा, ताकि सभी पार्षदों में आपसी सामंजस्य बना रहे और पार्टी निगम के सदन में प्रमुखता से अपना दबाव बना सके।गुटबाजी की वजह से आपसी खींचातानी
महापौर कुर्सी छिनने के बाद भी भाजपा पार्षदों में एकजुटता बनती दिखाई नहीं दे रही है। पार्टी से जुड़े जानकारों का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष को लेकर पार्षदों में आपसी खींचतान मची हुई है और यह नजारा चयन प्रक्रिया के दौरान भी दिखाई देगा। महापौर व सभापति चुनाव के दौरान आपसी गुटबाजी के कारण भाजपा को सबसे ज्यादा पार्षद होने के बाद भी दोनों पद खोना पड़ा था।