नर्मदा की गोद में आई गोदावरी की बेटी, शिक्षा से सींच रही नाविकों और मजदूरों के बच्चों की जिंदगी

इंदौर। यह एक स्त्री ही कर सकती है। वह भी जिसके अंदर दूसरों के लिए पीड़ा हो। इस परपीड़ा ने ही उन्हें नासिक के गोदावरी तट से मंडलेश्वर के नजदीक लेपा गांव में नर्मदा तट पर भेजा है। गोदावरी की यह बेटी महाराष्ट्र से चलकर मध्यप्रदेश में नर्मदा परिक्रमा करने आई तो फिर नर्मदा की गोद में ही रम गई। अब यहां ज्ञान-विज्ञान और शिक्षा से नाविक, मजदूर और गरीब परिवार के बच्चों की जिंदगी सींच रही हैं। मुफ्त स्कूली शिक्षा के साथ ही बच्चों को कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर उन्हें हुनरमंद भी बना रही हैं। इस महायज्ञ में धीरे-धीरे उनके साथ आसपास के कई और लोग भी जुड़ गए हैं।


अपनी जड़ों को छोड़कर बच्चों की जिंदगी संवारने में पिछले 10 साल से जुटी हैं भारती ठाकुर। वे भारत सरकार के रक्षा विभाग में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर काम करती थीं। वर्ष 2005-06 में अमरकंटक से वापस अमरकंटक तक 3200 किलोमीटर की पैदल नर्मदा परिक्रमा की। इस दौरान उन्होंने पाया कि ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का बहुत बुरा हाल है। आठवीं-दसवीं के बच्चों को अपना नाम भी ठीक से लिखते नहीं आता। डिप्टी कलेक्टर पिता की बेटी को ग्रामीण शिक्षा की बदतर हालत ने इतना द्रवित किया कि 10 साल पहले ही सरकारी नौकरी छोड़कर नर्मदा किनारे लेपा गांव को अपनी अगली कर्मस्थली बना लिया। उन्होंने 14 बच्चों से लेपा में स्कूल शुरू किया। नाविकों और मजदूरों के अभावग्रस्त बच्चों को 10वीं तक मुफ्त शिक्षा देना आरंभ किया। आज लेपा के अलावा भट्याण और छोटी खरगोन में ऐसे तीन स्कूल चल रहे हैं। बच्चों को बुनियादी शिक्षा के साथ ही कौशल विकास का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इन सबसे 1700 बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं। हर दिन 400 बच्चों को निशुल्क भोजन भी दिया जाता है। नर्मदा के किनारे होने से शिक्षा का यह मंच अब नर्मदालय बन चुका है।


 

विद्यार्थी ही बना लेते हैं अपने स्कूल का फर्नीचर


भारती बताती हैं कि हम बच्चों को फर्नीचर बनाने का प्रशिक्षण देते हैं। स्कूल के लिए जरूरी फर्नीचर विद्यार्थी ही बना लेते हैं। बच्चों को एथलीट और गीत-संगीत की भी शिक्षा दी जा रही है। हमारे यहां पाठ्यपुस्तकों की कविताओं का देश का पहला ऑर्केस्ट्रा है। इंदौर की शुभदा मराठे बच्चों को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देती हैं। जिस तरह मां अपने किसी बेटे की खूबियों को बताते हुए गर्वित होती है, ठीक उसी तरह भारती कहती हैं कि हमारे स्कूल का विद्यार्थी शंकर केवट भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के ग्रामीण टेक्नोलॉजी सेंटर के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुर्तगाल में सोलर ड्रायर के प्रोजेक्ट का प्रेजेंटेशन देकर आया है।


 

सरकार नहीं, समाज के भरोसे सब कुछ


बच्चों की शिक्षा, भोजन, बस आदि का इंतजाम सरकार के भरोसे नहीं किया जाता। इसके लिए समाज ही आगे आता है। व्यवस्थाओं का खर्च जुटाने के लिए यहां दत्तक योजना चलाई जा रही है। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के दानदाता 12-15 हजार रुपए देकर एक साल के लिए एक बच्चे को दत्तक लेते हैं। इस तरह यहां का खर्च जुटाया जाता है। जीवन बीमा निगम और जनरल इंश्यारेंस कंपनी ने स्कूल भवन बनाया तो हिंदुस्तान पेट्रोलियम और जनरल इंश्योरेंस ने मिलकर बच्चों के लिए बसों का इंतजाम किया। भोजन बनाने वाली महिलाएं और ड्राइवर आदि सब आसपास के गांवों से ही हैं। यहां गोसंवर्धन पर भी काम हो रहा है। देसी नस्ल की 27 गायें हैं जिनका दूध, दही और घी यहां के बच्चों के काम आता है। भारती ठाकुर बताती हैं कि नर्मदा की गोद में रहकर यहां के बच्चों को ही जीवन समर्पित करना चाहती हूं। न कुछ लेकर आई थी, न लेकर जाना चाहती हूं। यहां के बच्चे पढ़-लिखकर बेहतर नागरिक और स्वावलंबी बनें, यही इच्छा है।