महिलाएं अपनी आवाज न बुलंद करें, इसलिए उन्हें रखते हैं अशिक्षित

ग्वालियर । आज जीवन में जो चमत्कारी और क्रांतिकारी समय है, वह सोशल मीडिया के कारण है। आज सशक्त समाज है, लेकिन महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी पहचान बनाने की है। आज समाज को महिलाओं पर दया भी आती है और तिरस्कार का भाव भी। दोनों के अपने-अपने कारण है। यह बात महिला एवं बाल विकास विभाग के बिटिया उत्सव में सोमवार को मुस्लिम महिलाएं: बयान, हालात एवं चुनौतियां विषय पर डॉ. नाजिया नईम ने संबोधित करते हुए कही। डॉ. नईम ने कहा कि आखिर महिलाएं भी अलग-अलग होती हैं क्या? क्या हिंदू महिलाएं और मुस्लिम महिलाएं अलग-अलग हैं? दोनों के ही सामने पहचान की चुनौती है। मैं खुदा से सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगी कि 'जिंदगी दी है तो हुनर भी देना, पांव दिए हैं तो चलने का हुनर भी देना'।


डॉ. नईम ने कहा कि महिलाओं को अशिक्षित रखा जाता है। समाज को लगता है कि यदि महिलाएं पढ़-लिख लेंगी तो फिर अपनी आवाज बुलंद करेंगी। अपने हक मांगने लगेंगी। वहीं सोशल वर्कर नाइश हसन ने कहा कि महिलाओं के सामने पहचान बनाना चुनौती है, इस सोच को शाहीन बाग ने तोड़ कर रख दिया है। वे शाहीन बाग में बैठकर सिर्फ एक सवाल नहीं उठा रही हैं, बल्कि अपने भीतर एक डेमोक्रेसी काट रही हैं। उन्होंने कहा कि मैं नहीं मानती हूं कि हम महिलाएं एक बराबर होती हैं क्योंकि जो मैंने सहा है वो आपने नहीं सहा होगा। बोलती हुई महिला किसी को अच्छी नहीं लगती है, खासकर जब वह एक मुस्लिम महिला हो।


 

फिल्मों पर हुई बात, नाटक से दिया संदेश


अनारकली ऑफ आरा फिल्म के निर्देशक अविनाश दास ने बेटियों का जमाना विषय पर अपने विचार रखे। वहीं महिला कवित्रियों ने काव्य पाठकर अपनी नारी सशक्तिकरण की रचनाएं सुनाईं। रचनाओं में नारी की पीड़ा का भाव भी था तो समाज में उनकी भूमिका का महत्व भी। शाम को गालव सभागार में त्रिकर्षी, समूह भोपाल के कलाकारों ने रूद्राली नाटक का मंचन किया।