लखनऊ में 48 दिन से धरना दे रही 55 साल की महिला प्रदर्शनकारी की मौत, 13 दिन में यह दूसरी मौत

लखनऊ / नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में बीते 48 दिन से लखनऊ के घंटाघर परिसर में धरना दे रही फरीदा (55) की शुक्रवार रात मौत हो गई। साथी महिलाओं ने कहा- गुरुवार को बारिश में भीगने से वह बीमार हो गई थी। इसके बाद उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां उसकी कार्डियक अरेस्ट से मौत हुई है। बीते 13 दिनों में ये दूसरी मौत है। इससे पहले 23 फरवरी को 20 वर्षीय तैयबा की मौत हो गई थी। उसने भी बारिश में भीगने के बाद बीमारी के कारण दम तोड़ा था। वह बीए अंतिम वर्ष की छात्रा थी।


शुरुआत से प्रदर्शन में शामिल रहीं फरीदा


दिल्ली के शाहीन बाग की तर्ज पर बीते 17 जनवरी से नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ के घंटाघर परिसर में महिलाएं धरने पर बैठी हैं। प्रदर्शनकारी रूबीना ने बताया कि, डालीगंज निवासी फरीदा शुरुआत से इस प्रदर्शन से जुड़ी हुई थीं। वह रात में भी घंटाघर परिसर में ही रहती थीं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि, घंटाघर में टेंट लगाने की मांग प्रशासन से की गई थी। लेकिन हमारी दलीलों को खारिज कर दिया गया। सभी प्रदर्शनकारी खुले आसमान के नीचे बैठकर प्रदर्शन कर रहे थे। यदि टेंट लग गया होता तो फरीदा व तैयबा की जान नहीं जाती। 


सपा ने दो-दो लाख के चेक सौंपे


रविवार को समाजवादी पार्टी नेत्री जूही सिंह की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने फरीदा और तैय्यबा के घरों का दौरा किया। मृतकों के परिवारों को दो-दो लाख रूपए का चेक सौंपे। वहीं, महिला प्रदर्शनकारियों ने भी फरीदा को श्रद्धांजलि देने के लिए घंटाघर परिसर में विशेष प्रार्थना की। प्रदर्शनकारियों ने कहा- वह यहां की एक नियमित प्रदर्शनकारी थीं और इस विरोध में उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह आंदोलन फरीदा व तैयबा जैसी महिलाओं के कारण अब तक जीवित है।


समाजिक संगठनों ने दिया समर्थन


इस बीच, विश्व महिला दिवस के मौके पर कई सामाजिक संगठन भी रविवार शाम घंटाघर परिसर में एकत्रित हुए। सभी ने देश में महिलाओं की एकता और शक्ति की सराहना की। सीएए के विरोध का भी समर्थन किया गया। लोगों ने कहा- महिलाएं घरों से बाहर आएं और संविधान की रक्षा करें। अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ (एआईडीडब्ल्यूए) की पदाधिकारी मधु गर्ग ने कहा- देश में महिलाएं हमेशा से ही क्रांतियों में सबसे आगे रही हैं और समाज को बेहतर बनाने के लिए विरोध करती हैं। अब भी अपने तरीके से महिलाएं ऐसा ही कर रही हैं।