नई दिल्ली / 20 मार्च की सुबह निर्भया के चारों दोषियों का फांसी के फंदे पर लटकना तकरीबन तय है। अगर सब ठीक ठाक रहा तो सात वर्ष से ज्यादा लंबी लड़ाई के बाद निर्भया की मां आशा देवी का संघर्ष पूरा हो जाएगा। इस दाैरान उन्होंने तमाम कठिनाइयों का सामना किया। उन्होंने भास्कर से बातचीत में कहा, महिला दिवस के मौके पर आज विभिन्न कार्यक्रमों में महिला सशक्तिकरण की बातें होगीं, लेकिन सच्चाई यह है कि महिलाएं तो पहले से सशक्त हैं। सिर्फ हमें (महिलाओं) अपने आपको पहचानने की जरूरत है। दुख इस बात का है अब भी महिलाओं के साथ होने वाले अपराध नहीं रुक रहे हैं। कानून व्यवस्था की खामियां इसकी जिम्मेदार हैं। निर्भया केस इसका बड़ा उदाहरण है। मेरी बेटी के साथ बर्बरता की गई और उसकी जान चली गई। चारों दोषियों को फांसी की सजा हुई, लेकिन जिस तरह तीन बार फांसी की तारीख बदली, वह हैरान करने वाला है। मैं हर दिन कोर्ट में एक उम्मीद के साथ जाती थी, लेकिन शाम को निराशा के साथ लौटती। खैर, अब पूरी उम्मीद और विश्वास है कि इस बार ऐसा नहीं होगा और निर्भया के चारों दरिंदे तय दिन फांसी के फंदे पर लटकेंगे। वास्तव में इंसाफ की तसल्ली उसी दिन होगी। इससे समाज में एक बड़ा संदेश भी जाएगा कि कानून को हाथ में लेने वाला कोई भी दरिंदा नहीं बचेगा। इस संघर्ष में मेरा साथ वकील, मीडिया, पुलिस की ओर से पूरा मिला। बेशक ये सभी लोग अपना अपना काम कर रहे थे, लेकिन वे सभी भावनात्मक रूप से हमें इंसाफ पाने का ढांढस बंधाते रहे। थोड़ा मलाल इस बात का रहेगा कि निर्भया का एक दोषी जो नाबालिग था, वह बच गया। यहीं पर कानून को बदलने की जरूरत है। जब नाबालिग को पहले से पता होगा कि उस पर सख्त कार्रवाई होने वाली नहीं, तो वह डरेगा कैसे।
इंसाफ की तसल्ली उसी दिन होगी, जब चारों दरिंदे तय दिन फांसी के फंदे पर लटकेंगे : आशा देवी