इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- आरोपियों के पोस्टर लगाना प्राइवेसी में गैरजरूरी दखल, यूपी सरकार सभी पोस्टर 16 मार्च से पहले हटाए

प्रयागराज / इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि सीएए हिंसा के आरोपियों के बैनर-पोस्टर 16 मार्च से पहले हटाए जाएं। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपियों के पोस्टर लगाना उनकी निजता में सरकार का गैरजरूरी दखल है। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने कहा कि यूपी सरकार हमें यह बता पाने में नाकाम रही कि चंद आरोपियों के पोस्टर ही क्यों लगाए गए, जबकि यूपी में लाखों लोग गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। बेंच ने कहा कि चुनिंदा लोगों की जानकारी बैनर में देना यह दिखाता है कि प्रशासन ने सत्ता का गलत इस्तेमाल किया है।  इसी बीच, उत्तर प्रदेश सरकार के सूत्रों ने कहा- राज्य सरकार इलाहाबाद कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी, जिसमें अदालत ने उन होर्डिंग्स को हटाने के आदेश दिए थे, जिन पर लखनऊ में हुए प्रदर्शन के दौरान हिंसा करने वालों की तस्वीरें लगाई गई हैं। राज्य सरकार ने 19 दिसंबर को लखनऊ में हुई हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने के लिए 57 लोगों को दोषी माना था और रिकवरी के लिए इनके पोस्टर लगाए थे। कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था और रविवार को भी सुनवाई की थी। 


पोस्टर लगाना सरकार के लिए भी अपमान की बात- हाईकोर्ट


हाईकोर्ट ने रविवार को सुनवाई के दौरान कहा था- कथित सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की सरकार की कार्रवाई बेहद अन्यायपूर्ण है। यह संबंधित लोगों की आजादी का हनन है।ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे। पोस्टर लगाना सरकार के लिए भी अपमान की बात है और नागरिक के लिए भी। किस कानून के तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर लगाए गए? सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की इजाजत के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है।


पुलिस ने जिनके बैनर लगाए, उन्होंने फैसले पर कहा- देश या राज्य तानाशाही से नहीं चलेगा


1) श्रवण राम दारापुरी: पूर्व आईपीएस दारापुरी ने कहा- फैसले से साफ हो गया कि देश में योगी सरकार की अराजकता का नहीं, कानून और संविधान का राज चलेगा। लोकतंत्र की जीत हुई, तानाशाही की हार हुई है। पोस्टर लगने के बाद हम लोगों की जान को खतरा है। अगर हमारी जान को कोई भी हानि होती है तो इसकी जिम्मेदार उत्तर प्रदेश सरकार होगी।


2) सदफ जफर: कांग्रेस नेता व एक्ट्रेस सदफ ने कहा, "ये संविधान और कानून की जीत है। कोर्ट का साफ संदेश है कि राज्य हो देश, यह तानाशाही से नहीं चलेंगे। देश संविधान और कानून से चलेगा। यह ऐतिहासिक फैसला एक नजीर है कि किसी की आवाज को दबाया नहीं जा सकता है। होर्डिंग लगने के बाद मुझे धमकी मिल रही है। हमारी निजता का हनन किया गया।'


3) दीपक मिश्रा कबीर: समाजसेवी दीपक मिश्र ने कहा- सरकार ने जो किया था, वह सरासर गलत है। इसकी पुष्टि हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में कर दी है। कोर्ट का फैसला देश में संविधान और कानून का राज साबित करता है।


4) मोहम्मद शोएब: रिहाई मंच के प्रमुख मोहम्मद शोएब कहा, "सरकार ने सार्वजनिक तौर पर हमारी निजता का हनन किया है। इसके बाद अगर किसी की जानमाल को खतरा होगा, इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।' रिहाई मंच पर मुस्लिम संगठन पीएफआई से जुड़े होने का आरोप है।

यूपी सरकार ने 57 लोगों को 88 लाख की रिकवरी का नोटिस भेजा था
19 दिसंबर, 2019 को जुमे की नमाज के बाद लखनऊ के चार थाना क्षेत्रों में हिंसा फैली थी। ठाकुरगंज, हजरतगंज, कैसरबाग और हसनगंज में तोड़फोड़ करने वालों ने कई गाड़ियां भी जला दी थीं। राज्य सरकार ने नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से कराने की बात कही थी। इसके बाद पुलिस ने फोटो-वीडियो के आधार पर 150 से ज्यादा लोगों को नोटिस भेजे। जांच के बाद प्रशासन ने 57 लोगों को सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी माना। उनसे 88 लाख  62 हजार 537 रुपए के नुकसान की भरपाई कराने की बात कही गई। लखनऊ के डीएम अभिषेक प्रकाश ने कहा था- अगर तय वक्त पर इन लोगों ने जुर्माना नहीं भरा, तो इनकी संपत्ति कुर्क की जाएगी।


होर्डिंग में शामिल लोग बोले- मॉब लिंचिंग का खतरा


जिन लोगों की तस्वीरें होर्डिंग में लगाई गई हैं उनमें पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी, एक्टिविस्ट सदफ जफर और दीपक कबीर भी शामिल हैं। कबीर ने कहा- सरकार डर का माहौल बना रही है। होर्डिंग में शामिल लोगों की कहीं भी मॉब लिंचिंग हो सकती है। दिल्ली हिंसा के बाद माहौल सुरक्षित नहीं रह गया है। सरकार सबको खतरे में डालने का काम कर रही है।


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