गोल्डन आइलैंड की खूबसूरती में अधूरी सड़क का 'दाग'

कोरबा । टिहरीसरई की खूबसूरती को देखते हुए प्रशासन ने उसे गोल्डन आइलैंड का नाम तो दे दिया, पर वहां तक पहुंचने में पर्यटकों को परेशानी न हो, इसकी समुचित व्यवस्था नहीं की। पीएमजीएसवाई ने 9.80 किलोमीटर सड़क बनाई, पर आबादी से बाहर होने के कारण आगे का मार्ग कच्चा ही छोड़ दिया। नियम-कायदों के अड़ंगे से आखिर के करीब दो किलोमीटर के मार्ग का निर्माण कार्य रुक गया, जो सैलानियों का उत्साह कम करने काफी है। सही मायनों में यह अधूरी सड़क गोल्डन आइलैंड की खूबसूरती में दाग का आभाष करा रहा है। बांगो बरॉज के जलभराव क्षेत्र में शुमार गोल्डन आइलैंड कटघोरा वनमंडल के केंदई परिक्षेत्र का हिस्सा है। यह स्थल जिला मुख्यालय से करीब 81 किलोमीटर की दूरी और बिलासपुर-अंबिकापुर राष्ट्रीय राज्य मार्ग से करीब 12 किलोमीटर अंदर अवस्थित है। हरियाली से घिरी अपार जलराशि में जब सूरज की अनगिनत किरणें पड़ती हैं, तो ढेर सारे द्वीपों की हरित छटा वाली झील में एक स्वर्णिम आभा बिखरती है। यही वजह है जो इस अनुपम पर्यटन स्थल को गोल्डन आइलैंड (स्वर्णिम भूमि) का नाम दिया गया। इस स्थल की ख्याति कोरबा से लेकर प्रदेश व देश के अनेक क्षेत्रों तक फैली और वहां के पर्यटक भी पहुंचे, पर यहां के पहुंच मार्ग की दशा पर्यटन के अनुकूल नहीं की जा सकी। फलस्वरूप आज भी गोल्डन आइलैंड के अंतिम दो किलोमीटर का मार्ग इतना खराब है, जो सैलानियों के लिए काफी मुश्किल हो जाता है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) से राष्ट्रीय राजमार्ग पर केंदई मोड़ से केंदई बसाहट होते हुए टिहरीसरई तक पक्की सड़क बना ली गई, पर उसके आगे गोल्डन आइलैंड के स्पॉट तक करीब दो किलोमीटर मार्ग आज भी बदहाल पड़ा है। अफसरों का कहना है कि आगे की सड़क बनाने के लिए अन्य मद की राशि की जरूरत है।



16 साल पहले बनी, सुधार किया पर आगे नहीं बढ़ाया


पीएमजीएसवाई से राष्ट्रीय राजमार्ग पर केंदई मोड़ से केंदई बसाहट तक पांच किलोमीटर व बसाहट से टिहरीसरई के बीच 4.80 किलोमीटर समेत कुल 9.80 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया गया। इसके लिए पहले चरण के पांच किलोमीटर में 76 लाख रुपये व उसके बाद टिहरीसरई तक 4.5 किलोमीटर सड़क के लिए एक करोड़ तीन लाख 65 हजार रुपये की लागत खर्च की गई। यह निर्माण कार्य वर्ष 2003-04 में किया गया। इसके बाद वर्ष 2010-11 में पुनः इस 9.80 किलोमीटर सड़क का मरम्मत कार्य भी किया गया, लेकिन सिर्फ दो किलोमीटर की सड़क इसलिए छोड़ दी गई, क्योंकि पीएमजीएसवाई के नॉर्म्स में आबादी रहित क्षेत्र को शामिल नहीं किया जा सकता था।



पूर्व कलेक्टर अशोक अग्रवाल की खोज


टिहरीसरई का ये गोल्डन आइलैंड सात मई वर्ष 2007 से 15 फरवरी 2010 के बीच पदस्थ रहे जिले के तत्कालीन कलेक्टर अशोक अग्रवाल की खोज है, जहां की खूबसूरती आज भी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। पर्यटन की दृष्टि से यह एक बड़ी खोज थी, जिसके लिए एसईसीएल की मदद से रेस्ट हाउस व कई संसाधन भी जुटाए गए। यह पर्यटन स्थल बुका व सतरेंगा के लगभग बीच के डुबान क्षेत्र में स्थित है, जहां पानी के बीच एक टापू पर से होते हुए जलमार्ग से सतरेंगा तक आया जा सकता है। शुरू में इसे विकसित करने के प्रस्ताव बने पर बाद में प्रशासन का सारा फोकस बुका व सतरेंगा की ओर डायवर्ट हो गया। इस दिशा में कारगर पहल की जरूरत पिछले डेढ़ दशक से महसूस की जा रही।


दूसरी बार रिसर्फेसिंग कार्य, प्रशासन की पहल अपेक्षित


पीएमजीएसवाई ने 16 साल पहले सड़क का निर्माण किया व उसके बाद सात साल बाद इस मार्ग का मरम्मत कार्य भी कराया। नौ साल बाद पुनः रिसर्फेसिंग का कार्य किया जा रहा, जो वर्तमान में जारी है। पीएमजीएसवाई के अधिकारियों का कहना है कि वे विभाग के नियम-कायदों में बंधे हैं, जबकि एसईसीएल के अफसरों के अनुसार अगर प्रशासन की ओर से प्रस्ताव रखे जाएं, तो वे एनएच से लेकर पर्यटन स्थल तक की पूरी सड़क व अन्य संसाधनों के लिए राशि प्रदान कर सकती है। अब जरूरत है तो सिर्फ जिला प्रशासन की ओर से पहल करने की। आज भी गोल्डन आइलैंड पर्यटकों को आपनी ओर आकर्षित कर रहा है पर वहां तक पहुंचने की मुश्किलों के चलते रुझान कम होता जा रहा।