गांव से लगे जंगल में विश्राम करते देखा गया बाइसन

कोरबा । तुमान के ग्रामीण उस वक्त हैरत में पड़ गए, जब गांव से लगे रतनजोत प्लांटेशन में एक बाइसन छांव में बैठा विश्राम करते दिखा। भैंसे जैसी चमड़ी पर गाय जैसा सिर और सफेद पैर वाले अजीब जानवर को देख वे भी सोच में पड़ गए, कि आखिर यह है क्या? अपनी जगह पर शांति से बैठे बाइसन की तस्वीरें लेने व उसके साथ सेल्फी खींचने मानों होड़ सी मच गई। बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां एकत्रित हो गए और फिर मौके पर पहुंचे वन अमले ने सुरक्षा की दृष्टि से उसे जंगल की ओर खदेड़ दिया। कटघोरा वनमंडल के जटगा वन परिक्षेत्र के तुमान से लगे जंगल में यह बाइसन अकेले विचरण करते देखा गया। आसपास घूमने के बाद यह रतनजोत प्लांटेशन के पास झाड़ियों की छांव में आकर बैठ गया। संभावना जताई जा रही है कि भोजन-पानी की तलाश में यह आबादी के नजदीक चला गया। रविवार को दिन में तेज धूप के असर से यह थककर वहीं बैठ गया और तब लोगों ने इसे देखा। बाइसन गाय कुल का प्राणी होता है, जिसका वजन एक हजार किलोग्राम तक हो सकता है। इसे कई लोग मोजे यानी जुराबों वाला भैंसा भी कहते हैं, क्योंकि उसके चारों पैर में घुटनों तक के बाल सफेद रंग के होते हैं। गांव के इतने नजदीक ऐसे दुर्लभ प्राणी के दर्शन मिलने से ग्रामीणों में कौतुहल रहा और पूरे दिन इसकी चर्चा पूरे गांव में होती रही। किसी ने इस प्राणी के मिलने की खबर वन विभाग को दी। ग्रामीणों की सूचना पर परिक्षेत्र अधिकारी मोहर सिंह मरकाम, तुमान एवं जटगा डिप्टी रेंजर शांडिल्य एवं वनरक्षक मौके पर पहुंचे। ग्रामीणों को भीड़ न लगाने का सुझाव दिया।


 

चैतुरगढ़ की पहाड़ियों में छह का झुंड


वन विभाग के कटघोरा एसडीओ एके तिवारी (एसीएफ) ने बताया कि पिछले कई साल से बाइसन का एक झुंड चैतुरगढ़ की पहाड़ियों में डेरा जमाया हुआ है। वैसे तो कटघोरा वनमंडल में बाइसन नहीं पाए जाते थे और अचानकमार रिजर्व में ही बहुतायत में हैं। पर किसी वजह से यह झुंड अचानकमार से इस ओर पलायन कर आकर डेरा जमा लिया। कुछ साल पहले उम्रदराज हुए एक बाइसन की मौत हो गई और उसके बाद पहाड़ से गिरकर एक नौजवान बाइसन की भी मौत हो गई थी। सबसे पूर्व में झुंड के सात सदस्यों को देखा गया था, जिसमें दो की मौत के बाद हाल ही में एक बच्चे का जन्म होने से झुंड में फिलहाल छह सदस्य हैं, जिनमें से एक यही बाइसन है, जिसे तुमान से लगे जंगल में रविवार को देखा गया।


 

मवेशी से संक्रमण का डर, खतरे में अस्तित्व


एसडीओ तिवारी का कहना है कि यह एक शानदार जीव है, जिनकी प्रजाति का अस्तित्व भी खतरे में पड़े वन्य प्राणियों की सूची में रखा गया है। इसलिए उनका संरक्षण न केवल वन विभाग, बल्कि आम लोगों के लिए भी एक बड़ी जिम्मेदारी है। यही वजह है जो गांव के नजदीक देखे गए इस बाइसन के आसपास भीड़ न लगाने की समझाइश दी गई। इसके बाद उसे सुरक्षित जंगल की ओर खदेड़ने की कार्रवाई की गई। इसके पीछे एक बड़ी वजह ये रही कि कहीं गांव के साधारण भैंसों, गाय की बीमारियों का संक्रमण उस बाइसन को न हो जाए। इस तरह वह बीमार हो सकता है और इससे बचाना हम सब का दायित्व है।


चारे की तलाश में अकेले विचरण करते हैं


केएन कॉलेज की प्राध्यापक एवं जूलॉजिस्ट प्रो. निधि सिंह ने कहा कि बाइसन स्वभाव से शर्मीले और डरपोक होते हैं। इनकी देखने व सुनने की क्षमता अन्य प्राणियों से अपेक्षाकृत कम होती है। एकाकी नर हुआ तो वह बिना वजह आक्रमण भी कर सकता है। यह हाथियों के झुंड के आसपास भी मिलते हैं और विश्राम प्रेमी होते हैं। मिलन ऋतु के बाद अक्सर नर एकाकी हो जाते हैं और मादाएं झुंड में ही रहती हैं। चारागाह ढूंढ़ते हुए नर भी काफी दूर तक निकल जाते हैं, संभवतः यही वजह है जो यह बाइसन आबादी के करीब आ पहुंचा होगा। इसे गवाल या गौर भी कहते हैं।


छह साल पहले बताती में मिला था


छह साल पहले वर्ष 2014 में कोरबा वनमंडल के कोरबा रेंज में भी एक बाइसन को विचरण करते देखा गया था। तब बताती-कोरकोमा क्षेत्र में अकेले गौर को विचरण करते देखा गया, जिसकी तस्वीर भी खूब वायरल हुई थी। उससे पहले तक कोरबा वनमंडल में हुई पिछली वन्य प्राणी गणनाओं में बाइसन या गौर नहीं पाए गए थे। वन्य प्राणी गणना वर्ष 2014 के पहले चरण के सर्वे के दौरान इस नए वन्य प्राणी के पाए जाने की सूचना वन विभाग को मिली थी। तब की गणना में तेंदुए, सांभर, भालू, मोर सहित अन्य वन्य प्राणियों के मिलने की पुष्टि की गई थी, लेकिन फाइनल रिपोर्ट आज तक नहीं बनी।


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