बात उन इलाकों की, जहां सोची-समझी साजिश के साथ हिंसा हुई, दंगाइयों ने स्कूलों को भी नहीं बख्शा

नई दिल्ली / दिन शनिवार। रात के नौ बजने को हैं। उत्तर-पूर्वी दिल्ली का शिव विहार इलाका पूरी तरह से अंधेरे में डूब चुका है। यहां हुई हिंसा और आगजनी के बाद से इलाके में बिजली नहीं है और कर्फ्यू अब भी पूरी सख्ती से लागू है। पुलिस की गाड़ियों और मीडिया के कैमरों से पैदा हो रही रोशनी के अलावा चारों ओर अंधेरा है। इसी अंधेरे में टॉर्च लिए कुछ लोग एक गली से निकलते हुए दिखाई पड़ते हैं। ये छिद्दरलाल तोमर और उनके परिवार के लोग हैं, जो हिंसा के बाद अपना घर छोड़कर चले जाने को मजबूर हुए हैं। अपने रिश्तेदारों के घर पर शरण लेकर रह रहे ये लोग रात के अंधेरे में डरते-छिपते अपना कुछ जरूरी सामान ढूंढने अपने घर लौटे हैं। छिद्दरलाल बताते हैं, ‘‘24 तारीख की वो रात हमने कैसे काटी, सिर्फ हम ही जानते हैं। यहां हिंदुओं के घरों को एक-एक कर निशाना बनाया जा रहा था। कोई हमारी मदद को नहीं आया। हमारा घर गली में कुछ पीछे है, इसलिए पूरा जलने से बच गया। हमारा परिवार रातभर ऊपर छिपा रहा। 25 की सुबह जब पुलिस आई, तब हमें यहां से निकाला गया। शिव विहार तिराहे के पास ही रहने वाले सुजीत तोमर कहते हैं, ‘‘यहां पूरी प्लानिंग के साथ हिंसा की गई। बाजार में वही दुकानें जलाई गईं, जो हिंदुओं की थी। बाहर एक बिल्डिंग आप देख सकते हैं, जिसमें नीचे एक मुस्लिम की दुकान थी और ऊपर हिंदू परिवार रहते थे। इस बिल्डिंग में नीचे की दुकान सुरक्षित है, जबकि ऊपर के घर जला दिए गए। उसके पास की ही दूसरी बिल्डिंग में दिलबर नेगी को जलाकर मार दिया गया, राहुल सोलंकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। राहुल मेरे बचपन का दोस्त था।’’


पांच मंजिला स्कूल की छत से बम फेंके जा रहे थे
हिंसा के पूर्व नियोजित होने की जो बात सुजीत कह रहे हैं, वही बात शिव विहार के लगभग सभी लोग दोहराते हैं। पेशे से इंजीनियर अजीत कुमार बताते हैं, ‘‘यहां पास में ही राजधानी पब्लिक स्कूल है, जो किसी फैसल नाम के आदमी का है। इस स्कूल को दंगाइयों ने अपना ठिकाना बनाया था। स्कूल की छत से पत्थर, पेट्रोल बम और गोलियां तक चलाई जा रही थीं। उनकी तैयारी इतनी ज्यादा थी कि उन्होंने स्कूल की छत की मुंडेर के नाप का लोहे का एक फ्रेम बनवाया था और उस पर ट्यूब का रबर लगाकर उसका इस्तेमाल बड़ी-सी गुलेल की तरह कर रहे थे। पांच मंजिला स्कूल की छत से वे पेट्रोल बम दूर-दूर तक मार रहे थे। इसी स्कूल के बगल में डीआरपी पब्लिक स्कूल भी है, जिसके मालिक पंकज शर्मा है। उन्हें बुरी तरह जला दिया गया, जबकि राजधानी स्कूल में मामूली तोड़-फोड़ हुई।’ शिव विहार से बृजपुरी की तरफ बढ़ने पर यह बात और मजबूती से महसूस होती है कि यहां हुई हिंसा पूर्व नियोजित थी। यहां के डी ब्लॉक में जली हुई इमारतों के सामने ही दो बड़े-बड़े ड्रम गिरे हुए दिखाई पड़ते हैं, जिनकी जांच यहां पहुंची फोरेंसिक की टीम कर रही है। इस टीम के साथ ही 27 साल के करण कपूर खड़े हैं और अपने जल चुके घर की जांच में इस टीम की मदद कर रहे हैं। वे बताते हैं, ‘‘25 फरवरी को करीब तीन बजे सैकड़ों दंगाई मुस्तफाबाद की ओर से यहां आए। वे एक बैलगाड़ी पर ये ड्रम लादकर लाए थे, जिसमें कोई फ्यूल भरा था। ये क्या था, इसी की जांच फोरेंसिक वाले कर रहे हैं। इसके अलावा वे लोग ईंट-पत्थर, हथियार और पेट्रोल बम भी बैलगाड़ी में भरकर लाए थे।’’


फोरेंसिक टीम के सदस्य ने कहा- हिंसा की तैयारी कई दिनों से थी
फोरेंसिक टीम के एक सदस्य नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं, ‘‘जो चीजें बरामद हुईं और जिस तरह दंगाई ड्रमों में भरकर ईंधन यहां लाए, उससे साफ होता है कि वे कितनी तैयारी से आए थे। ये सब एक दिन में नहीं जुटाया जा सकता। तैयारी कई दिनों से की गई थी।’’ बृजपुरी के इस इलाके में भी शिव विहार की ही तरह लोगों की धार्मिक पहचान के आधार पर उनके घर और दुकान जलाए गए हैं। यहां रहने वाले राजेश कपूर कहते हैं, ‘‘दंगाइयों ने एक-एक कर हम सबके घर जला डाले। हमने छतों से पिछली तरफ कूदकर अपनी जान बचाई। दंगाइयों ने पहले दुकानों के शटर तोड़कर उनमें लूटपाट की और फिर आग लगाई। मेरे अलावा पास के ही चेतन कौशिक और अशोक कुमार का घर भी पूरी तरह जला दिया गया।’’


दंगाइयों ने स्कूलों को भी नहीं छोड़ा
इन घरों से कुछ ही दूरी पर अरुण मॉडर्न पब्लिक स्कूल भी है। यहां पहुंचते ही दिल्ली में हुए इन दंगों की सबसे बदसूरत तस्वीर दिखती है। दुनिया के घोषित युद्धक्षेत्रों में भी स्कूल और अस्पताल जैसी इमारतों पर हमले न करने की न्यूनतम नैतिकता का पालन आतंकवादी भी करते हैं। लेकिन यहां दंगाइयों ने स्कूल को भी नहीं छोड़ा और जलाकर राख कर दिया। हालांकि, यहां कहीं भी किसी मंदिर पर हमला नहीं किया गया और दंगे की चपेट में आए मुस्लिम बहुल इलाकों में मौजूद मंदिर भी पूरी तरह से सुरक्षित है। शिव विहार और बृजपुरी में जिस तरह से एक समुदाय और निशाना बनाकर सोची-समझी हिंसा की गई, ठीक वैसे ही खजूरी खास में दूसरे समुदाय को निशाना बनाया गया। खजूरी खास एक्सटेंशन की गली नंबर 4, 5 और 29 में मुस्लिम समुदाय के लोगों निशाना बनाया गया। यहां बनी फातिमा मस्जिद के साथ ही दंगाइयों ने मुस्लिम समुदाय के सभी 35 घरों को जला दिया। ये सभी लोग अब अपने घर छोड़कर जा चुके हैं। इनमें से कई लोग अब चंदू नगर में शरण लेकर रह रहे हैं। मोहम्मद मुनाजिर ऐसे ही एक व्यक्ति हैं। वे बताते हैं, ‘‘खजूरी में सोमवार से ही माहौल बिगड़ने लगा था लेकिन उस दिन तक हम सुरक्षित थे। मोहल्ले के हिंदू भाइयों हमें भरोसा भी दिलाया था कि हम लोग आपको कुछ नहीं होने देंगे। लेकिन 25 की सुबह दंगाइयों ने चारों तरफ से हमारे घरों में पेट्रोल बम मारना शुरू कर दिया। मोहल्ले के हिंदू परिवार उस वक्त अपने घरों से जा चुके थे। बचाने वाला कोई नहीं था और एक-एक कर हम सबके घर ढूंढ-ढूंढकर जला दिए गए।’’


एक समुदाय की गाड़ियां जलाई गईं
खजूरी के इस इलाके में भी दंगाइयों ने कितने सोचे-समझे तरीके से हिंसा की, इसका सबूत मोहल्ले की पार्किंग में हुई आगजनी से मिल जाता है। इस पार्किंग में मोहल्ले के सभी लोगों की गाड़ियां खड़ी होती थीं। लेकिन 25 की सुबह ही हिंदू परिवार के लोगों ने यहां से अपनी गाड़ियां निकाल ली थीं। लिहाजा, जब इस पार्किंग में आग लगाई तो उसमें सिर्फ एक ही समुदाय की गाड़ियां जलीं। श्यामलाल कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहे फिरोज कहते हैं, ‘‘मैं खजूरी में ही पैदा हुआ और वहीं पला-बढ़ा हूं। मोहल्ले के हम दोस्तों में कभी हिंदू-मुसलमान का फर्क नहीं रहा। लेकिन इस बार जाने ऐसा क्या हुआ कि कई साल के रिश्ते टूट गए। सोनू और मैं तो बचपन से साथ पढ़े हैं और अब भी एक ही कॉलेज में जाते हैं। लेकिन 25 की सुबह उसने भी अपनी स्कूटी पार्किंग से निकाली और मुझे नहीं बताया कि यहां कुछ होने वाला है। मुझे भरोसा ही नहीं हो रहा कि उसने सब कुछ जानते हुए भी मुझे कोई जानकारी नहीं दी। कल जब मैं अपने जले हुए घर को देखने गया तो सोनू मोहल्ले में ही था। वो मुझसे नजरें भी नहीं मिला पा रहा था।’’ खजूरी खास एक्सटेंशन की फातिमा मस्जिद के चारों तरफ हिंदू समुदाय के लोगों के घर हैं। इस मस्जिद पर जो सबसे पहले हमले हुए, वो इन्हीं आसपास के घरों की छतों से किए गए। ऐसे कई वीडियो भी सामने आए हैं जिनमें इन घरों की छत से मस्जिद पर पेट्रोल बम मारते दंगाई साफ देखे जा सकते हैं। इस मस्जिद के पास ही रहने वाले नफीस अली कहते हैं, ‘‘हमला करने वाले कई दंगाई बाहर के थे, क्योंकि उन्हें हम नहीं पहचानते। लेकिन उनके साथ यहां के लोग भी मौजूद थे। गली के पान वाले को मैंने खुद देखा था दंगाइयों के साथ मस्जिद पर पत्थर चलाते हुए। ऐसे ही लोगों ने दंगाइयों को यह भी बताया कि कौन-सा घर हिंदू का है और कौन मुसलमान का।’’


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