अजीब है यहां होली की परंपरा, 60 फीट ऊंचे स्तंभ पर उल्टे लटक कर फेंकते हैं नारियल

सिवनी। होली के दूसरे दिन जहां भारत भर में हर जगह रंग-गुलाल उड़ते हैं, वहीं मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के केवलारी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत पांजरा में नजारा ही कुछ अलग होता है। यहां न होली खेली जाती है और न ही रंग गुलाल उड़ता है। यहां 60 फीट ऊंचे स्तंभ 'मेघनाद' में पर युवक बारी-बारी झूलते हैं।  रंगों का त्योहार को इस तरह मनाने की यह अनोखी परंपरा आदिवासी सभ्यता से जुड़ी हुई है। पांजरा गांव में हर साल मेघनाद मेले का आयोजन किया जाता है। आस्था और मन्नतों से जुड़े इस मेले में मेघनाद के प्रतीक स्वरूप 60 फीट ऊंचा लकड़ी का स्तंभ लगाया जाता है। इस दिन का यहां के लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। आसपास के ग्राम क्षेत्रों से गाजे-बाजे के साथ झूमते-नाचते वीर आते हैं। वीर हकड़े बिर-रे... ओ-ओ-ओ कहते हुए आते हैं। जिनकी मन्नतें पूरी होती हैं ऐसे वीर 60 फीट ऊंचे मेघनाद की मचान में चढ़ाकर उल्टे होकर घूमते हैं। चक्कर पूरे होने पर वीर ऊपर से नीचे नारियल फेंकते हैं। वीर का इससे भार उतर जाता है। यह सिलसिला कई वर्षों से चला आ रहा है। संतान प्राप्ति, विवाह, बीमारी सहित किसी भी परेशानी का निदान मेघनाद की पूजा ही होती है। मन्नत पूरी होने पर वीर फडेरा बाबा की विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। इस दौरान मेघनाद के नीचे वीर को विभिन्न व्यंजनों के साथ मुर्गे की बलि दे उसके मांस का भोग भी लगाया जाता है। पांजरा गांव का यह मेघनाद मेला एशिया में सबसे बड़ा है जिसके मुख्य स्तंभ में 28 खूंटी लगाई जाती है। इन्हीं के माध्यम से युवक ऊपर चढ़ता व उतरता है। इसके ऊपरी हिस्से में तीन लोग खड़े हो सके इसके लिए एक मचान तैयार किया जाता है। ये जितना आकर्षक है उतना खतरनाक भी होता है, लेकिन बरसों की आस्था हर साल यहां 60 फीट ऊंचे स्तंभ में देखने मिलती है। धुरेड़ी के दूसरे दिन जहां लोग रंग गुलाल से बचने के लिए पुराने वस्त्र पहनते हैं। वहीं पांजरा गांव और उसके आसपास के करीब एक दर्जन से अधिक गांव के लोग स्वच्छ और नवीन वस्त्र पहनकर मेघनाद मेला में आते हैं। मेघनाद मेले में जिले के दूर दराज के गांव के साथ साथ प्रदेश के अन्य राज्यों से भी लोग मेघनाद मेले में आदिवासी वीर के हैरत अंगेज दृश्य को देखने के लिए आते हैं।