आह्लादित कर गया पिता-पुत्र की धुनों का आत्मीय स्पर्श

इंदौर। मुक्तसर किस्सा कुछ यूं है कि अपने जमाने के मशहूर संगीतकार सचिनदेव बर्मन पार्क की एक बेंच पर बैठे थे तभी कुछ युवा उनके करीब से गुजरे। एक युवा ने दूसरे से कहा ये एसडी बर्मन हैं, संगीतकार आरडी बर्मन के पिता। ये सुनकर सचिनदा के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई। घर जाकर बेटे राहुल देव बर्मन को गले लगा लिया और कहा कि किसी भी पिता के लिए सबसे बड़ी खुशी का दिन वो होता है, जब उसकी पहचान बेटे के नाम से होती है। आज मेरी जिंदगी का सबसे खुशी का दिन है। पिता-पुत्र की इसी अद्भुत जोड़ी की धुनों से सजे हजारों गीत उनके गुजर जाने के दशकों बाद भी फिजा में गूंज रहे हैं। शनिवार को भी शहर में संगीत के दो बड़े कार्यक्रम हुए जिनमें इन्हीं दोनों संगीतकारों की धुनों के आत्मीय स्पर्श ने मुरीदों को आह्लादित कर दिया।


 

ट्रम्पेटमेनिया विद किशोर सोढ़ा


संगीत संस्था 'सारेगामा' और 'संगीत कला संदेश' के बैनर तले आनंदमोहन माथुर सभागार में आयोजित 'ट्रम्पेटमेनिया विद किशोर सोढ़ा' के खास आकर्षण आरडी बर्मन के खास म्यूजिशियन किशोर सोढ़ा थे। दो दशक से भी लंबे समय तक आरडी की धुनों को अपने ट्रम्पेट वादन से पुरअसर बनाने वाले कलाकार को सुनना असीम आनंद की अनुभूति से गुजरने जैसा एहसास रहा। उन्होंने एक के बाद एक सुरीली स्वरलहरियां छेड़कर सुधि श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। सोढ़ा ने सबसे ज्यादा काम आरडी के साथ किया है, इसलिए सबसे ज्यादा धुनें भी उन्होंने पंचमदा की ही सुनाईं। इसकी शुरुआत उन्होंने 'शोले' फिल्म के गीत की धुन के साथ की। इसके बाद उन्होंने 'फिर वही रात है ... रात है ख्वाब की, ओ हंसिनी, गुलाबी आंखें जो तेरी देखीं, क्या यही प्यार है' और 'मेरा प्यार शालीमार' जैसे गीतों की स्वरलहरियां छेड़ीं।


 

मुंबई और इंदौरी कलाकारों की उम्दा गायकी


मुंबई के गायक रवींद्र शिंदे और इंदौर की सोनाली कुलकर्णी तथा आकांक्षा जाचक जैसे गायक कलाकारों ने भी किशोर सोढ़ा का बखूबी साथ निभाया। इन कलाकारों ने अपने हिस्से आए 'बच के रहना रे बाबा, क्या जानो सजन होती है क्या गम की शाम, दिलवर मेरे कब तक मुझे ऐसे ही तड़पाओगे, पिया तू अब तो आजा, मैं हूं डॉन, आ देखें जरा किसमें कितना है दम' और 'दम मारो दम' जैसे गीत मस्ती भरे अंदाज में पेश किए। अभिषेक गावड़े और संजीव गवते के समन्वय और संयोजन में कार्यक्रम का संचालन संजय पटेल ने किया। संगीत संयोजन नीतेश-भोला का था।


उधर जाल सभागार में संस्था 'स्वरदा' के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम 'रंगीला रे' संगीतकार एसडी बर्मन की सुरीली धुनों से सजे गीतों पर केंद्रित था। इसमें मुख्य स्वर सतीश केसवानी, सुयश मोहरील, नरेंद्र शर्मा, रवि मराठे, सपना केकरे, मेघा अकर्ते, सीमा पापड़ीवाल, रचना वैद्य, डिंपल जोशी जैसे कलाकारों के थे। जिन्होंने एसडी के हर मूड के गीतों को सलीके से पेश किया। इन कलाकारों के गाए 'चांद फिर निकला मगर तुम न आए, मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू, वक्त ने किया क्या हंसी सितम, शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब, अब तो है तुमसे हर खुशी अपनी, तेरे-मेरे सपने अब एक रंग हैं, रंगीला रे तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन, फूलों के रंग से दिल की कलम से, है अपना दिल तो आवारा न जाने किसपे आएगा, तेरी दुनिया में जीने से, रूप तेरा मस्ताना, पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, पिया तोसे नैना लागे रे' और 'मेरे साजन हैं उस पार' जैसे शानदार गीतों का नजराना पेश किया। संगत की जिम्मेदारी रवि सालके, सागर बेन, सचिन परमार, अनूप कुलपारे और अमोल कारखानिस जैसे कलाकारों ने संभाली। कार्यक्रम का संचालन मोना ठाकुर ने किया।