14 करोड़ लोगों की मां बोली है पंजाबी, दक्षिणी एशिया में बोली जाने वाली भाषाओं में है तीसरी सबसे बड़ी

जालंधर / हिंदी साहित्य के इंदु यानि चंद्र माने जाते भारतेंदु हरिश्चन्द्र का एक दोहा भाषायी आंदोलन की दुनिया में सबसे ज्यादा प्रिय है। दोहे 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल'। का मतलब है मातृभाषा की उन्नति के बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है और अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है। आज हम पंजाब की प्रथम भाषा पंजाबी से जुड़ी कई सारी रोचक बातें बताने जा रहे हैं। दरअसल, 3 मार्च से पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की 8वीं और 12वीं की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। शुरुआत पंजाबी भाषा (जनरल) और पंजाब की हिस्ट्री एंड कल्चर के पेपर से हो रही है। परीक्षा में गिने-चुने 24 घंटे भी नहीं बचे और यह वो वक्त होता है, जब विद्यार्थी सबसे ज्यादा बिजी होते हैं। परीक्षा से एक दिन पहले से लेकर परीक्षा के लिए घर से निकलने तक पढ़ा हुआ सबसे ज्यादा रिमाइंड रहता है। इसी मकसद से दैनिक भास्कर प्लस ऐप्प दक्षिण एशिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली पंजाबी भाषा के इतिहास, इसके विभिन्न भागों-उपभागों और ऐसी ही तमाम जानकारी उपलब्ध करा रहा है। भारत के संविधान में देश की कुल 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है, जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार 19,569 मातृभाषाएं हैं। कुल आबादी के 96 प्रतिशत लोग 22 संवैधानिक भाषाओं को ही मातृभाषा के रूप में बोलते हैं, यानि कहा जा सकता है कि देश के लगभग हर प्रांत की अपनी अलग भाषा है, जैसे बंगाल की बंगाली, हरियाणा की हरियाणवी और पंजाब की भाषा पंजाबी। इंडो-आर्यन भाषा पंजाबी भारत में हिंदी और बंगाली के बाद, दक्षिणी एशिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।वर्तमान समय में इंग्लैंड में सबसे अधिक बोली जाने वाली दूसरी भाषा और कनाडा में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा पंजाबी ही है। भाषाओं से संबंधित एक विशवग्यानकोश ऐथनोलोग के अनुसार पंजाबी सारी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली दसवीं भाषा है। वहीं, विशेषज्ञों की मानें तो पंजाबी लगभग 14 करोड़ लोगों की मातृभाषा या मां बोली है। मां बोली से मतलब उस ध्वनि से है, जब बच्चा अपनी मां को बोलते सुनकर जो शब्द बोलना सीखता है। 14 करोड़ के आंकड़े की बात करें तो सबसे ज्यादा 10 करोड़ के करीब पंजाबी बोलने वाले पाकिस्तान में हैं। 3 करोड़ के करीब भारतीय पंजाब और इसके अलावा दुनिया के कोने-कोने में बसे एक करोड़ लोग भी पंजाबी बोलने और लिखने में सक्षम हैं।


पंजाबी का मूल और इससे निकली उपभाषाएं
पंजाबी के विभिन्न माहिरों के पंजाबी भाषा के मूल को लेकर विभिन्न तर्क हैं। कुछ का कहना है कि पंजाबी एक इंडो-आर्यन भाषा है, जबकि कुछ पंजाबी भाषा का मूल संस्कृत को नहीं मानते। ज्यादातर का मानना है कि पंजाबी का जन्म सप्तसिंधु के इलाके से हुआ है। पहले इसे सप्तसिंध भी कहा जाता था। अब बात आती है कि क्या सारे पंजाबी बोलने वाले 14 करोड़ लोगों की जुबान एक जैसी है। इसका जवाब है नहीं। भाषा विज्ञान के अनुसार दुनियाभर में मशहूर मुहावरा 'कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वानी' का सार भी यही कहता है। ठीक इसी तरह पंजाबी की भी कई उपभाषाएं हैं, जो अलग-अलग इलाकों में बोली जातीं हैं। इनमें से मुख्य हैं माझी, दोआबी, मालवे से संबंधित, पुआधी, पोठोहारी, मुलतानी और डोगरी जिसे पहाड़ी भाषा भी कहा जाता है। इनमें से माझी बोली पंजाबी की टकसाली (पुरानी) भाषा है।


शाहमुखी और गुरुमुखी दो लिपियां


अब बात आती है इस भाषा के विकास की। देखा जाए तो पंजाबी की दो लिपियां हैं शाहमुखी और गुरुमुखी। शाहमुखी उतरते पंजाब (बंटवारे के बाद पाकिस्तान में चले गए पंजाब) की पंजाबी लिपि है, जबकि चढ़ते पंजाब (भारतीय पंजाब) की लिपि गुरुमुखी है। इन दोनों में अक्षरों की बनावट का फर्क है। पंजाबी में पहली रचना 9वीं शताब्दी के करीब अद्दहमाण की स्नेह रासय है, जो कई लिपियों का मिश्रण है। इसके बाद शाहमुखी में बाबा शेख फरीद जी की रचनाएं और गुरमुखी में गुरु नानक देव जी की पट्टी है।


कितने अक्षर हैं पंजाबी वर्णमाला में?
माहिरों के अनुसार पैंतीस अक्षर का सबसे पहला सबूत गुरु नानक की पट्टी में मिलता है। उसमें पैंतीस ही अक्षर हैं। उसमें फर्क सिर्फ इतना है कि 'ਉ, ਅ, ਈ' वाली तरतीब अलग थी। उसमें 'ਅ, ਈ, ਉ' लिखा जाता था। बाद में गुरु अंगद देव जी ने यह तरतीब बदल कर 'ਉ, ਅ, ਈ' की। इन 35 में से कोई अक्षर लुप्त तो नहीं हुए, बल्कि फारसी के 6 अक्षर अन्य जुड़ गए, जिनके पैर में बिन्दी होती है। इन अक्षरों के साथ इसकी संख्या 35 से 41 कर दी, हालांकि इसे अभी भी 35 ही कहा जाता है।


पंजाबी मातृभाषा को दुनिया में पहुंचाने वाले
गुरुओं के अलावा नाथों, जोगियों, बुल्लेशाह, वारिस शाह, शाह हुसैन, कादरयार, शाह मुहम्मद, दामोदर आदि कवियों ने अपनी कविता का माध्यम पंजाबी को बनाया जबकि भाई वीर सिंह, नानक सिंह, गुरदयाल सिंह, संत सिंह सेखों, अजीत कौर, दलीप कौर टिवाना, अमृता प्रीतम, सुरजीत पात्र, शिव कुमार 'बटालवी' और हरभजन सिंह जैसे लेखकों ने इसी भाषा सदका अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के शिखरों को छुआ है। गीत-संगीत की दुनिया में भी आसा सिंह मस्ताना, आलम लौहार, लालचंद यमला जट्‌ट, गुरदास मान, कुलदीप माणक, हंसराज हंस, सुखविंदर सिंह और सतिंदर सरताज जैसे नामी कलाकारों ने पंजाबी मातृभाषा के गीतों को देश-विदेशों में प्रसिद्ध किया। 


बदल रहा है ट्रेंड, पंजाबी बोलने से कतराने लगे लोग
ताजा हालात की बात करें तो पंजाबी को अपनी पढ़ी लिखी पीढ़ी से ही खतरा पैदा होता जा रहा है। आज पंजाबी की जगह अंग्रेजी लेती जा रही है। भारत के पढ़े-लिखे पंजाबी भी पंजाबी नहीं बोलते, बल्कि अंग्रेजी बोलते हैं। हालांकि गुरुओं की यह भाषा कभी मिट नहीं सकती, लेकिन आज बहुत-से लोग पंजाबी बोलने में झिझक महसूस करते हैं। ये अच्छे संकेत नहीं हैं। अंग्रेजी या अन्य भाषाएं सीखना बुरी बात नहीं, लेकिन अपनी मातृभाषा को भुला देना जरूर गलत है।


देश के गृहमंत्री के बयान का समर्थन करके फंसे गुरदास मान
बीते महीनों पंजाबी के लोक गायक गुरदास मान भी एक अच्छे-खासे विवाद में फंस गए थे। दरअसल, 14 सितंबर 2019 को हिंदी दिवस पर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने बयान दिया था कि पूरे देश में एक भाषा होनी चाहिए। इसके ठीक एक सप्ताह बाद 21 सितंबर को जब गुरदास मान कनाडा के बीसी के एब्सफोर्ड में शो करने गए हुए थे तो वहां मीडिया की तरफ से किए गए सवाल पर मान ने कहा था, ‘पूरे देश में एक ही भाषा होनी चाहिए, जिसे सभी समझ सकें। जहां पंजाबी हमारी मातृ भाषा है, वहीं हिंदी भी हमारी मौसी है, इसलिए उसका भी उतना ही सम्मान होना चाहिए।’ इसके बाद कनाडा से लेकर भारत और दुनिया के दूसरे हिस्सों में पंजाबी लोगों ने गुरदास मान का काफी विरोध किया। यहां तक कि अकाल तख्त की तरफ से भी मान को माफी मांगने पर मजबूर करने की कोशिश की गई। यह अलग बात है कि उन्होंने साफ कहा कि माफी किस बात की मांगूं, जब मैंने कोई गलत बात कही ही नहीं है।