स्मार्टनेस पर भारी मंदी, 1700 करोड़ के एवज में केन्द्र ने मंजूर किए सिर्फ 500 करोड़

स्मार्टनेस पर भारी मंदी, 1700 करोड़ के एवज में केन्द्र ने मंजूर किए सिर्फ 500 करोड़



भोपाल / भोपाल-इंदौर समेत प्रदेश के सात शहरों को स्मार्ट बनाने की राह में पैसा रोड़ा बन सकता है। राज्य सरकार की खराब माली हालत प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी रुकावट बन गई है। स्थिति यह है कि प्रदेश के अगले वित्तीय वर्ष के संभावित बजट पर विभागवार चर्चा के दौरान अफसरों ने स्मार्ट सिटी के लिए 1700 करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव दिया। वित्त विभाग के अधिकारियों ने इस पर अड़ंगा लगा दिया और केवल पांच सौ करोड़ रुपए देने की सहमति दी। दरअसल, केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी के लिए भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, सागर और सतना का चयन किया है। योजना की अवधि पांच साल है। इन शहरों को स्मार्ट बनाने पर 23 हजार 229 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। केंद्र व राज्य इस राशि का 17-17 प्रतिशत ही मुहैया कराएंगे। यह कुल 34 फीसदी होता है।
हर साल केंद्र व राज्य सरकार प्रत्येक शहर को 100-100 करोड़ रुपए देंगे। इस तरह एक शहर को पांच साल में एक हजार करोड़ रुपए मिलेंगे। बाकी राशि की व्यवस्था संबंधित स्मार्ट सिटी कॉर्पोरेशन को खुद करना होगी। राज्य ने इसके लिए जो प्लान बनाया है उसके मुताबिक वल्र्ड बैंक, केएफडब्ल्यू, एडीबी, हुडको जैसे वित्तीय संस्थानों से 21 प्रतिशत लोन लिया जाएगा। यह कॉर्पोरेशन चुकाएगा। इसके अलावा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी व अन्य से 26 प्रतिशत पैसा जुटाने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं जमीन के एवज में कुल लागत का तीन फीसदी पैसा इकट्ठा किया जाएगा। बताया जा रहा है केंद्र की ओर से नियमित तौर से सातों शहरों को 100-100 करोड़ रुपए जारी किया जा रहा है। दिक्कत राज्य सरकार के साथ हो रही है। पिछले साल सतना स्मार्ट सिटी के लिए केंद्र से 196 करोड़ रुपए राज्य के खजाने में आ गए थे। इसमें से 60 करोड़ रुपए ही राज्य ने सतना को दिए। इसी तरह जबलपुर स्मार्ट सिटी को 98 करोड़ रुपए नहीं दिया गया। भोपाल का भी इतना पैसा रोक लिया।
पुराना 300 और नया 1400 करोड़ रुपए मांगा: नगरीय विकास विभाग के लिए बजट की जरूरत पर चर्चा के दौरान अधिकारियों ने अगले वित्तीय वर्ष में सात शहरों के लिए 1400 करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव दिया था। साथ ही पुराना बकाया 300 करोड़ रुपए जारी करने के लिए कहा था। इसे वित्त विभाग ने स्वीकार नहीं किया। महज 500 करोड़ रुपए दे पाने की सहमति जताई। गंभीर बात यह है कि इसमें केंद्र और राज्य की ओर से दिया जाने वाला पैसा शामिल है। ऐसे में दिक्कत भोपाल, इंदौर जैसे शहरों को होगी, जो अब तक मिली राशि में से ज्यादातर खर्च कर चुके हैं।
भोपाल को जितना मिला खर्च भी कर दिया
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के चार साल में भोपाल को 654 करोड़ ही मिले हैं। यह राशि खर्च भी हो चुकी है जबकि 1400 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट शुरू कर दिए हैं। ऐसे में कॉर्पोरेशन को बाकी राशि की व्यवस्था के लिए बॉन्ड, लोन, पीपीपी जैसे विकल्पों का सहारा लेना होगा। जमीन बेचना होगी। यही हाल प्रदेश के छह अन्य शहरों का रहेगा। हालांकि, भोपाल ने जमीन बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कुल सात एकड़ के तीन प्लॉट और स्मार्ट हाट व कॉमर्शियल टॉवर की दुकानें, ऑफिस बेच कर करीब 800 करोड़ रुपए जुटाने का प्लान बनाया है।
कहां कितनी लागत के प्रोजेक्ट
इंदौर : 5099 करोड़
जबलपुर : 3998 करोड़
ग्वालियर : 2403 करोड़
उज्जैन : 2318 करोड़
सागर : 1683 करोड़
सतना : 1530 करोड़
भोपाल : 3441 करोड़