प्रमोशन से वंचित कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर बनाया जाएगा प्रभारी

प्रमोशन से वंचित कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर बनाया जाएगा प्रभारी



भोपाल / प्रदेश में करीब पौने चार साल से कर्मचारियों की पदोन्नति पर प्रतिबंध लगा होने से वे परेशान हैं। कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, इसलिए राज्य सरकार पदोन्नति के विकल्प तलाश रही है। इनमें से एक विकल्प कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर वरिष्ठ पदों की जिम्मेदारी देना भी हो सकता है। मंत्रालय में शनिवार को हुई उच्च स्तरीय बैठक में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ. गोविंद सिंह को इस सुझाव का परीक्षण कर एक हफ्ते में रिपोर्ट सौंपने को कहा है। बैठक में कर्मचारियों को सशर्त पदोन्नति देने की बात भी उठी।
प्रदेश में 31 मार्च से कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति शुरू हो जाएगी, जिसे देखते हुए मुख्यमंत्री ने बैठक बुलाई थी। इसमें सामान्य प्रशासन, वित्त एवं विधि विभाग के अधिकारियों सहित महाधिवक्ता शशांक शेखर भी मौजूद थे। सीएम नाथ ने सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई के लिए पहल और मामले की मजबूती से पैरवी करने को कहा है। बैठक में मंत्री डॉ. सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से सशर्त पदोन्नति करने की इजाजत नहीं मिलने और पदोन्नति में आरक्षण मामले का फैसला नहीं आने तक कर्मचारियों को क्रमोन्नति देकर बड़े पदों की जिम्मेदारी सौंपने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि जैसे आईएएस, आईपीएस और राच्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों को क्रमोन्नति देकर बड़े पदों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, वैसे ही अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को भी अंतरिम व्यवस्था होने तक बड़े पदों की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इस पर मुख्यमंत्री ने सामान्य प्रशासन विभाग के अफसरों से पूछा और फिर एक हफ्ते में इसका परीक्षण करने को कहा कि सरकार ऐसा कर सकती है या नहीं।
यह है मामला
अप्रैल, 2016 में मप्र हाईकोर्ट ने प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगाने आदेश दिया था। इसके विरोध में राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट में मामले की डबल बेंच सुनवाई कर रही थी। इसमें एम. नागराज बनाम भारत संघ प्रकरण को आधार बनाकर सुनवाई की जा रही थी। इस बीच एम नागराज प्रकरण को चुनौती दी गई। जिससे डबल बेंच ने इस मामले को पांच सदस्यीय खंडपीठ में भेज दिया। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच ने पिछले साल 26 सितंबर के निर्णय में कहा कि पदोन्नति में आरक्षण दिया जाना संवैधानिक बाध्यता नहीं है। राज्य चाहे तो आरक्षण दे सकता है। पीठ के इस फैसले के बाद एक बार फिर से मामला सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में चला गया।