पहले भी हुई घोषणाएं,लेकिन जमीनी स्तर पर सब फेल,क्या संभव है पुलिस विभाग में अवकाश

पहले भी हुई घोषणाएं,लेकिन जमीनी स्तर पर सब फेल,क्या संभव है पुलिस विभाग में अवकाश



 





बता दें कि प्रदेशभर के पुलिसकर्मियों को पिछले तीन साल में साप्ताहिक अवकाश देने की 4 घोषणाएं की जा चुकी हैं। पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की चौथी घोषणा के बाद पुलिस को पाक्षिक अवकाश यानि हर 15 दिन में एक बार अवकाश की व्यवस्था लागू होकर बंद हो चुकी है। सालों से थानों के साथ मैदानी पुलिस भी वीकली ऑफ कीमांग करती रही है। सालों पहले पुलिस के लिए बने आयोग भी वीकली ऑफ की सिफारिश कर चुके हैं। सरकार स्तर पर इसकी वकालत भी की गई थी। लेकिन सरकार रहीं और चली गई वीकली ऑफ आज तक नहीं मिला अब सीएम कमलनाथ की घोषणा से फिर पुलिसकर्मियों में वीक ऑफ की उम्मीद जगी है।

भोपाल / लंबे समय से पुलिस विभाग में अवकाश की माँग उठती रही है कई सरकारें आई और गई इसे लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं भी हुईं लेकिन जमीनी स्तर पर सारी योजनाएं और घोषणाएं दम तोड़ती नज़र आई है। हालही में कमलनाथ सरकार ने पुलिसकर्मियों को अवकाश की घोषणा की है अब देखने वाली बात क्या ये घोषणा जमीनी स्तर पर कामयाब होगी या पिछली बार की ही तरह कुछ समय बाद दम तोड़ती नज़र आएगी।
क्योंकि?? सीएम कमलनाथ के पुलिस को वीकली ऑफ दिए जाने के ऐलान के बाद पुलिस मुख्यालय में हड़कंप मचा हुआ है। पुलिस अफसर उलझन में हैं शिवराज के सीएम रहते हुए भी अवकाश शुरू होकर भी बंद हो चुके हैं। ऐसे में जांच अधिकारियों और फोर्स की कमी के बीच कितना संभव हो पाएगा पुलिस को वीकली ऑफ मिल पाना, यह बड़ा सवाल है।


आंकड़ों पर डाले एक नज़र


दरअसल, प्रदेश में 1 लाख 19 हजार 600 पुलिस फोर्स में 70 हजार कांस्टेबल हैं। इनमें करीब 30 प्रतिशत स्टॉफ ही जांच और सुपरविजन से जुड़ा है। कांस्टेबल को अपराधों की जांच के अधिकार नहीं है। सिर्फ हैड कांस्टेबल और उससे ऊपर रैंक के अधिकारी ही जांच के लिए पात्र हैं। ऐसे में जांच से जुड़े पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की कमी और विभाग में 24 हजार पद खाली होने की वजह से वीकली ऑफ मिलना कितना संभव हो पाएगा। इसी बात को लेकर पुलिस मुख्यालय में सीएम कमलनाथ के ऐलान के बाद मंथन चल रहा है।
प्रदेश में कांस्टेबल से टीआई तक के 24671 पद खाली हैं, जबकि बढ़ती आबादी और शहरी विस्तार को ध्यान में रखते हुए पुलिस को सामान्य गति से कामकाज के लिए 30 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मियों की जरूरत है। हर साल औसतन एक हजार पुलिसकर्मी रिटायर हो जाते हैं। बताया जा रहा है कि जब तक हर साल रुटीन भर्ती प्रक्रिया बड़े पैमाने में नहीं चलाई जाएगी, तब तक बल की कमी स्थाई रूप से दूर नहीं की जा सकती है।


पूर्व गृह मंत्री ने सदन में बताया हर 3 दिन में 2 पुलिसकर्मियों की मौत


बीजेपी सरकार के पूर्व गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने सदन में बताया था कि तनाव और बीमारी के कारण हर 3 दिन में औसतन 2 पुलिसकर्मियों की ऑन ड्यूटी मौत हो जाती है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया था कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में पिछले तीन साल में 722 पुलिसकर्मियों की ऑन ड्यूटी मौत हुई है, इनमें से 27 ने आत्महत्या की है, जबकि 109 पुलिसकर्मियों की मौत ऑन ड्यूटी हार्ट अटैक से हुई है।
कुछ मामलों को छोड़कर ज्यादातर मौतों के पीछे अत्यधिक तनाव, बीमारी में ठीक से इलाज नहीं करा पाना और लगातार थकान भरी स्थिति में नौकरी करना, काम के दौरान आला अफसरों की प्रताड़ना और पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पाने का बोझ भी बड़ी वजह रही।


पूर्व में हुई घोषणाओं पर एक नजर


-2014 में तत्कालीन गृहमंत्री बाबूलाल गौर ने ड्यूटी की वजह से पुलिसकर्मी में तनाव होने के चलते उन्हें महीने में एक दिन अवकाश देने का ऐलान किया था।


-2016 में तत्कालीन गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने पुलिसकर्मियों को मासिक और फिर साप्ताहिक अवकाश देने की घोषणा की थी।


-डीजीपी ऋषि शुक्ला ने 13 दिसंबर 2016 को तनावमुक्ति के लिए स्वयं के साथ ही पत्नी और बच्चों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह पर अवकाश देने के निर्देश दिए थे। ऐसा ही आदेश 6 अक्टूबर 2017 को फिर से डीजीपी ने जारी किया है। हालांकि, एक चौथाई जिलों में भी पालन नहीं हो सका।


-भोपाल, देवास और उज्जैन जिलों में पाक्षिक और भोपाल, बुरहानपुर, आगर, शहडोल और देवास में स्वयं के और परिजनों के जन्मदिन पर अवकाश की व्यवस्था शुरू की थी।


-पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने 16 जनवरी 2016 को पुलिस मुख्यालय में आयोजित आईपीएस सर्विस मीट के शुभारंभ करते हुए अवकाश की घोषणा की थी।





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