केन्द्र की गाइडलाइन बदलकर खेती के नाम पर पांच सौ करोड़ हजम कर गए अफसर व दलाल

केन्द्र की गाइडलाइन बदलकर खेती के नाम पर पांच सौ करोड़ हजम कर गए अफसर व दलाल



भोपाल। प्रदेश का कृषि विभाग एक बार फिर चर्चा में है। इस बार भी वह अपने विभाग के अफसरों की कार्यप्रणाली की वजह से चर्चा में आया है। विभाग के अफसरों व दलालों ने मिलकर न केवल केन्द्र की गाइडलाइन बदल दी, बल्कि खेती के नाम पर पांच सौ करोड़ की राशि भी डकार ली। दरअसल परंपरागत कृषि योजना के तहत केंद्र सरकार ने 2015 में किसानों को बीज के साथ जैविक खाद मुहैया कराने के लिए फंड व गाइडलाइन जारी की थी। जिसके तहत किसानों को सेसबानिया बीज दिया जाना था। सेसबानिया बीच हरी खाद का अच्छा स्रोत होता है। इसे प्रदेश के कृषि विभाग के अफसरों ने अपने हिसाब से बदल डाला। कृषि विभाग ने इसके बाद अपने आदेश में लिखा था कि परंपरागत कृषि के लिए सेसबानिया रोष्ट्रेटा मुहैया कराया जाए। जबकि, रोष्ट्रेटा बीज की प्रदेश में पैदाबार ही नही होतीं है। यह खेल 2015 से 2018-19 तक लगातार चलता रहा। जिसके चलते केंद्र और राज्य का 500 करोड़ रुपए से ज्यादा का फंड दलालों और अधिकारियों की जेब में चला गया। इस दौरान किसानों को नकली ढेंचा बीच थमा दिया गया। इससे उनको फायदा होने की नुकसान और हो गया।
कृषि उत्पादन बढ़ाने शुरु की थी योजना
केंद्र सरकार ने कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना की शुरुआत की थी। इसमें डीबीडी के जरिए किसानों को 12 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर के मान से अनुदान का प्रावधान किया गया है। एक एकड़ पर दो हजार रुपए का बीज डाला जाता है, जो नि:शुल्क दिया जाता है। इस फंड में 60 फीसदी हिस्सा केंद्र और 40 फीसदी हिस्सा राज्य का होता है। इसका पैसा तत्कालीन अफसरों और दलालों ने अपने पास रख लिया। 2015 से 2018 तक 538 करोड़ का फंड दिया गया। इसका टेंडर जियोलाइफ एग्रीटेक इंडिया को दिया गया था।
योजना शुरू होते ही बनाई थी कंपनी
कृषि विशेषज्ञ केदार सिरोही कहते हैं कि जियोलाइफ एग्रीटेक इंडिया कंपनी को तत्काल बनाई गई थी। यह कृषि से जुड़ा एक दाना भी नहीं पैदा करती है। रोष्ट्रेटा बीज जो भारत में भी पैदा नहीं होता है। ये बात हमने इंडिया काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च से भी प्रमाणित कराई है। रोष्ट्रेटा करीब सवा सौ रुपए किलो आता है, जिसे आयात करना पड़ता है। इसके नाम पर 25 रुपए किलो का खाद-बीज बांटा गया है। यदि इस योजना पर अभी रोक नहीं लगाई गई तो इसके तहत आने वाले सालों में 41०० करोड़ रुपए सीधे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएंगी।
आदिवासी जिलों में कागजो पर खर्च कर दिए 100 करोड़
इस येाजना के तहत प्रदेश के आदिवासी जिलों में 100 करोड़ से अधिक खर्च कर दिए गए। 2018-19 में 20 जिलों के लिए पिछड़ी जनजाति बैगा, सहारिया, भारिया के किसानों को कोदा, कुटकी, ज्वार, बाजरा के उत्पादन और उनकी मार्केटिंग के लिए 100 करोड़ रुपए कागजों में देना दिखा दिए गए। आदिवासी विधायक फंदेलाल मार्को यह मामला विधानासभा में भी उठा चुके हैं। जिस पर कृषि मंत्री सचिन यादव ने भी माना था कि इसमें गड़बड़ी हुई है। उन्होंने जांच कमेटी बनाकर पूरे मामले की जांच कराने का आश्वासन भी दिया था।



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