कवित्रियों ने अपनी रचनाओं से बंधा समां 
मेला रंगमंच पर
ग्वालियर/ मेला रंगमंच पर महिला काव्य मंच द्वारा कवियत्री सम्मेलन का आयोजन किया गया, इसमें महिला कवियों ने एक से बढ़कर एक काव्य रचनाओं का पाठ किया।
माही अग्रवाल ने गणेश वंदना की।
संचालक *आशा पांडेय* ने अपनी भावनाएं इस तरह व्यक्त कीं- पर्वतों को पीसना मरू में महकना चाहती हूं।
डॉ ज्योति उपाध्याय - राष्ट्र प्रेम की बातें भैया, बातन में ही रह गईं भैया, राष्ट्र प्रेम न देत दिखाई, दूर हो गयो एका भैया।
प्रतिभा द्विवेदी - हो जन, गण, मन की पीड़ाओं का अंत, ऐसा हो मेरे भारत का वसंत।
डॉ निशी भदौरिया - पहचान हमारी छोटी सी, चाहत है गगन को छूने की।
डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत - न हुस्न का खिताब रखते हैं, न तख्तो ताज रखते हैं।
डॉ मंजुलता आर्य - कल तक जिनके थे दीवाने, आज उन्हें ही न पहचाने।
प्रेरणा परमार - खाली हाथ आया था, खाली हाथ ही जाएगा, क्या तेरा क्या मेरा, सब यहीं रह जाएगा।
संगीता गुप्ता - क्यूं बेटी बचाएं, क्यूं बेटी पढ़ाएं हम, पौधों को पेड़ बनाएं, तुमसे जलवाएँ हम।
कु. दिव्या यादव - जन-जन के जननायक, जन, गण, मन का जय-जय गान करो।