देश में पहले भी हो चुकी है एक साथ चार लोगों को फांसी


देश में पहले भी हो चुकी है एक साथ चार लोगों को फांसी


जाने क्या था मामला







नई दिल्ली / निर्भया के चारों दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाया जाएगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दोषियों को जल्द फांसी पर लटकाने की केंद्र सरकार व दिल्ली सरकार की याचिका को खारिज करते हुए कहा, दोषियों को अलग अलग नहीं, बल्कि एक साथ ही फांसी दी जाएगी। कोर्ट ने दोषियों को सात दिन के भीतर उपलब्ध विकल्पों का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया। इसके बाद डेथ वारंट जारी करने की प्रक्रिया शुरू होगी। अगर चारों दोषियों को एक साथ फांसी होती है तो भारत में यह दूसरा मामला होगा जब एक साथ चार दोषियों को एक ही दिन फांसी दी जाएगी, जानिए कौन सा है वो मामला....

यह पहली बार नहीं है जब एक ही दिन चार दोषियों को मृत्युदंड दिया जाएगा। इससे पहले 1983 में पुणे में सनसनीखेज जोशी-अभयंकर हत्या मामले में चार दोषियों को एक साथ यरवदा केंद्रीय जेल में फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कन्होजी जगताप और मुनावर हारून शाह को 25 अक्टूबर 1983 को फांसी दी गई थी।

नशे के आदी थे हत्यारे:-

जोशी-अभयंकर सिलसिलेवार हत्याओं में उन्होंने जनवरी 1976 और मार्च 1977 के बीच 10 हत्याएं की थीं। मामले में आरोपी सुभाष चंडक गवाह बन गया था। हत्यारे पुणे के अभिनव कला महाविद्यालय में वाणिज्यिक कला के छात्र थे। वे सभी नशे के आदी थे और दो पहिया वाहन सवारों से लूटपाट करते थे।

हत्याओं से महाराष्ट्र में छा गई थी दहशत:-

पहली हत्या 16 जनवरी 1976 को हुई थी। हत्या के शिकार हुए प्रसाद हेडगे कातिलों के सहपाठी थे। उनके पिता कॉलेज के पीछे एक रेस्तरां चलाते थे। हत्यारों ने फिरौती के लिए अपहरण किया था। इन कातिलों ने 31 अक्टूबर 1976 और 23 मार्च 1977 के बीच नौ और लोगों की हत्याएं की। ये लोग घर में घुसकर घरवालों को आतंकित कर महंगा सामान लूटते थे और फिर लोगों की हत्या कर देते थे। इस तरह की हत्याओं से समूचे महाराष्ट्र में दहशत छा गई थी।

शाम 6 बजे के बाद घरों से बाहर नहीं निकलते थे लोग:-

सहायक पुलिस आयुक्त के तौर पर सेवानिवृत्त हुए शरद अवस्थी भी उस वक्त अदालत में मौजूद थे जब इन कातिलों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी। उन्होंने बताया कि मुझे याद है कि जब आरोपियों को मौत की सजा सुनाई गई उस समय अदालत परिसर में भारी भीड़ थी। सजा सुनाए जाने के बाद चारों दोषियों को अदालत से बाहर ले जाया गया। उस समय किशोर रहे पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता बालासाहेब रूनवाल ने कहा कि हत्याओं से लोगों के बीच इतनी दहशत पैदा हो गयी कि लोग शाम छह बजे के बाद घरों से निकलने से कतराने लगे थे।