बोर्ड पर खुलेआम पाँचवी तक का प्रचार सबको दिखता है बस डीईओ को नजर क्यों नहीं आता


बोर्ड पर खुलेआम पाँचवी तक का प्रचार सबको दिखता है बस डीईओ को नजर क्यों नहीं आता




 





शिक्षा माफियाओं पर मेहरबानी का ये रिश्ता क्या कहलाता

 

शिवपुरी / शहर ही नहीं, बल्कि जिले में शिक्षा को कमाई का जरिया तो बना ही लिया गया है साथ ही शिक्षा माफियाओं ने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर बिना मान्यता के स्कूलों का संचालन विभाग की सरपरस्ती में जारी रख छोड़ा है।

पिछले दो महीने से सुर्खियों में चल रहे जिला शिक्षा विभाग की नाक के नीचे किड्जी (किडजोन) खिन्नी नाके के पास जिस पर पाँचवी कक्षा तक की मान्यता नहीं है, लेकिन न केवल स्कूल पर पाँचवी कक्षा तक के संचालन का बोर्ड लगाकर प्रचार किया जा रहा है, बल्कि इन कक्षाओं में बकायदा बच्चों को एडमिशन देने की बात भी सामने आई है। हैरानी की बात यह है कि मामले में पुलिस से लेकर बीआरसीसी और जिला शिक्षा अधिकारी को शिकायती आवेदन देने के बावजूद आज तक सिर्फ जांच करा लेने का आश्वासन ही जिम्मेदारों ने परोसा है। जब स्कूल पर साफ-साफ पाँचवी तक का बोर्ड लगा हुआ है और शिकायत में भी प्रमाणित तथ्य सौंपे गए हैं बावजूद ऐसी कौन सी चकाचौंध है जिसके कारण जिला शिक्षा अधिकारी और बीआरसीसी को यह अवैध रूप से पाँचवी तक के संचालन का बोर्ड नजर नहीं आ रहा। दो महीने बाद भी उस शिकायत पर विभाग का इतनी जांच तक न कर पाना कि स्कूल पर मान्यता है कि नहीं, तमाम सवाल खड़े कर रहा है और शिक्षा माफिया के साथ कथित रिश्ते को भी उजागर कर रहा है। स्कूलों की मान्यता का लेखा-जोखा विभाग पर ऑनलाईन उपलब्ध है बावजूद इसके अधिकारियों द्वारा जांच कराने का भ्रम फैलाना कहीं न कहीं अवैध रूप से संचालित इन स्कूलों को अभयदान देने की मंशा की ओर इशारा करता है। तय यह भी है कि आमतौर पर सीधे-सीधे कार्य न करने वाले शिक्षा विभाग के ये कर्णधार यूं ही इतने बड़े मामले में गान्धारी की भूमिका में नहीं दिखते। इन आंखों पर पट्टी बांधने का ये क्रम इशारा करता है कि भविष्य से खिलवाड़ करने वाले इस स्कूल संचालक और विभागीय अधिकारियों के बीच अपवित्र गठबंधन बन चुका है और उसी गठबंधन को निभाने के लिए अब तक मामले में चुप्पी साधी जा रही है। इधर मामले की शिकायत पुलिस की चौखट तक भी पहुंच गई और दबी जुबान पुलिस अधिकारी भी मान रहे हैं कि स्कूल में सबकुछ ठीक नहीं है, लेकिन उनके हाथ विभाग की अधिकृत रिपोर्ट न आने से बंधे हुए हैं। ये बात भी किसी से छुपी नहीं है कि जिले में निजी स्कूलों की मान्यता का खेल वर्षों से चल रहा है और विभाग के सबसे बड़े अधिकारी यानि डीईओ और संबंधित विकासखण्ड के बीआरसीसी की भूमिका इस खेल में हमेशा से प्रमुख रही है। मामला कलेक्टर तक भी जा पहुंचा है, लेकिन अब तक ऊपर से नीचे तक सब मुंह पर पट्टी बांधे हुए हैं। 

पत्रकार बताने वाले विज्ञापन प्रतिनिधि की भी मामले में संलिप्तता
इस अवैध रूप से संचालित स्कूल को अभयदान देने और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से सांठगांठ कराने में दलाल की भूमिका में एक कथित पत्रकार का भी नाम सामने आ रहा है। यूं तो यह पत्रकार है ही नहीं, बल्कि एक बड़े अखबार में विज्ञापन उगाने का काम करता है जिसे पत्रकारिता की भाषा में विज्ञापन प्रतिनिधि कहते हैं, लेकिन अधिकारियों के सामने खुद को बड़े अखबार का पत्रकार बताकर अपने स्वार्थ गांठने और दलाली करने का सिलसिला वर्षों से चला रहा है। इस मामले में भी इस विज्ञापन प्रतिनिधि की भूमिका महत्वपूर्ण बताई जा रही है। बताया जाता है कि पूरे मामले के सेटलमेंट के लिए स्कूल संचालक से मोटी राशि इसके माध्यम से ली गई और आश्वास्त किया गया है कि वह अधिकारियों को सेटल कर देगा। इस राशि में आधी राशि यह कथित पत्रकार हड़प गया जबकि आधी राशि में बटोना विभागीय अधिकारियों को कर दिया गया जिसके चलते आंखों पर इसी सुविधा शुल्क की पट्टी बंध गई और वे जांच-जांच का खेल खेल रहे हैं।