प्रदर्शन के कारण सिर्फ आधा किमी रास्ता बंद

, पर रोजाना 4 लाख लोग परेशान



नई दिल्ली /  नागरिकता संशोधन कानून और  एनआरसी के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में स्थानीय लोगों के विरोध-प्रदर्शन को सोमवार को एक महीना पूरा हो गया। इसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इसका नेतृत्व कोई बड़ा नेता नहीं कर रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे सभी नेता हैं और सीएए के खिलाफ एकजुट हैं। पिछले महीने की 15 तारीख को यहां प्रदर्शन शुरू हुए थे। इसका असर केवल स्थानीय नहीं,  दिल्ली और आसपास के लोगों पर भी पड़ रहा है।


 शाहीन बाग-कालिंदी कुंज रोड बंद है। रोका गया रास्ता सिर्फ आधा किमी का है, लेकिन यह जगह आवागमन के लिहाज से अहम है। यह रास्ता नोएडा के जरिए फरीदाबाद को दक्षिण दिल्ली से जोड़ता है। करीब चार लाख लोग रोजाना इस रास्ते का इस्तेमाल करते हैं। जाम के कारण 10 मिनट की दूरी तय करने में डेढ़ घंटे लग रहे हैं। बदरपुर, फरीदाबाद के लोग नोएडा जाने के लिए आश्रम-डीएनडी का रास्ता पकड़ने को मजबूर हैं। इधर, व्यापारियों का कहना है कि शाहीन बाग में करीब 100 बड़े शोरूम- दुकानें हैं। प्रदर्शन के कारण ये भी चार हफ्ते से बंद हैं।


इससे इस बाजार को रोजाना करीब 2 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। लगातार बंद के कारण शोरूम-दुकान कर्मचारियों को भी नौकरी जाने का डर सता रहा है। मजदूर काम छोड़कर गांव लौटने लगे हैं। सरिता विहार के लोग रास्ता खुलवाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर कालिंदी कुंज रोड नहीं खुला तो वे मथुरा रोड बंद कर देंगे।


हाईकोर्ट: रोड खुलवाने के लिए याचिका पर आज होगी सुनवाई


शाहीन बाग-कालिंदी कुंज रोड खुलवाने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई के लिए दिल्ली हाईकोर्ट सोमवार को राजी हो गया। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में मंगलवार को सुनवाई करेगा।  याचिका हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच के सामने आई थी।  एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी ने यह याचिका दायर की है।


जेएनयू: छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष से हिंसा मामले में पूछताछ हुई


दिल्ली पुलिस ने सोमवार को जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष आइशी घोष, पंकज और वास्कर विजय से 5 जनवरी को कैंपस में हुई हिंसा के मामले में पूछताछ की। बयान दर्ज किए गए हैं। वहीं, एबीवीपी की राष्ट्रीय महासचिव निधि त्रिपाठी ने कहा- यह कहना गलत है कि जेएनयू में छात्रों का प्रदर्शन केवल फीस वृद्धि को लेकर किया गया छात्र आंदोलन था। दरअसल, यह जेएनयू पर नक्सली हमला था। इसकी भूमिका पिछले साल 20 अक्टूबर को ही लिखी जा चुकी थी, जो 5 जनवरी की हिंसा के रूप में सामने आई।  उन्होंने कहा- जेएनयू हिंसा को लेकर हर तरफ चर्चा हो रही है मगर इसे केवल 5 जनवरी के हिंसक घटनाक्रम तक ही सीमित कर दिया गया। जबकि यह केवल उतना ही नहीं है।