मां बेटी को नहीं दे पा रही किडनी, पत्नी को लिवर देने के लिए पति परेशान

; छत्तीसगढ़ में अंगदान की पॉलिसी ही नहीं



रायपुर /  छत्तीसगढ़ राज्य बनने के 20 साल बाद भी यहां ऑर्गन डोनेशन यानी अंगदान की पॉलिसी नहीं बनी। इस वजह से किसी को भी दूसरे की जिंदगी बचाने के लिए किडनी या लिवर जैसे महत्वपूर्ण अंगाें का दान करने में दिक्कतें आ रही हैं।


चाहे मां अपने बच्चे को या पति अपनी पत्नी की जिंदगी बचाने के लिए अंगदान करना चाहता है, उन्हें मेडिकल बोर्ड के कठिन मापदंडों को पूरा करना पड़ रहा है। अंगदान की मंजूरी के लिए मेडिकल कॉलेज के 8 डाॅक्टरों का बोर्ड बनाया गया। उनकी मंजूरी के बाद ही कोई छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के किसी भी अस्पताल में जाकर ट्रांसप्लांट करवा सकता है। मेडिकल बोर्ड एक-एक, डेढ़-डेढ़ साल केवल औपचारिकता में गुजार रहा है। बोर्ड में अभी किडनी ट्रांसप्लांट के 20 से ज्यादा और लिवर के 8 मरीज चक्कर काट रहे हैं।


रायपुर के पं. जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में हर हफ्ते बोर्ड की बैठक होना है, लेकिन यहां महीने में दो बार ही बैठक हो पा रही है। उसमें एकाध मरीज के ट्रांसप्लांट की ही मंजूरी दी जा रही है। ऐसे में सालभर में केवल 10 से 12 मरीज ही ट्रांसप्लांट करवा पा रहे हैं। अफसरों का कहना है बोर्ड का नियम है, जब तक पूरे के पूरे 8 मेंबर हाजिर नहीं होंगे, तब तक किसी भी मरीज के आवेदन को मंजूरी नहीं दी जा सकती। मंजूरी के दस्तावेज में सभी सदस्यों की उपस्थिति के साथ हस्ताक्षर जरूरी है।


मेडिकल कॉलेज और अंबेडकर अस्पताल में आयोजित होने वाली बैठक के रिकाॅर्ड खंगालने से पता चला कि ज्यादातर बैठकों में एक-दो सदस्य किसी न किसी कारण से अनुपस्थित रहते हैं, इस वजह से आवेदन लंबित होते जा रहे हैं। महीने में एक-दो बार ही ऐसा होता है, जब सभी की हाजिरी होती है। इसी वजह से केवल एकाध आवेदन पर ही फैसला किया जा रहा है। इस स्थिति में सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलू ये है कि मरीज की सेहत पर ही नहीं बल्कि आर्थिक स्थिति पर भी बोझ पड़ता है। 


गंभीर मरीजों को लेकर बार-बार चक्कर


मेडिकल कॉलेज में किडनी दान के 20 आवेदन अटके हैं। इनमें कुछ केस में तो मां और पिता तथा पति-पत्नी जैसे करीब के रिश्तेदार अपने शरीर का अंग दान करने को तैयार हैं। उसके बाद भी मंजूरी नहीं मिल रही है। लीवर ट्रांसप्लांट के लिए आठ मरीजों के आवेदन हैं। डाॅक्टरों की रिपोर्ट तैयार है। डाक्टरों ने जल्द अंग प्रत्यारोपण की सलाह दी है। यही वजह है कि अर्जी लेकर मरीज के परिजन बार-बार चक्कर काट रहे हैं। बोर्ड की हर बैठक में उन्हें मरीज के साथ अंग दान करने वाले को भी लाना पड़ता है। इस तरह कई किस्म की परेशानी झेलने के बाद भी किसी न किसी पेंच के कारण उन्हें मंजूरी नहीं मिल पा रही है। 


मंजूरी देने के पहले ऐसे परखते हैं बोर्ड के सदस्य


मरीज और अंग दान करने वाले की पूरी मेडिकल हिस्ट्री को सामने रखकर बोर्ड के सदस्य उनकी काउंसिलिंग करते है। उनसे पूछा जाता है कि वे अपनी मर्जी से किडनी या लीवर दे रहे हैं अथवा नहीं। मरीज से उनका रिश्ता पूछा जाता है। उनके सवाल जवाब से कमेटी संतुष्ट होने के बाद आर्गन ट्रांसप्लांट की मंजूरी देती है।


केस-दो : मनेंद्रगढ़ के राजेश दो साल से डायलिसिस पर है। डाॅक्टराें ने जांच के बाद कह दिया जान बचाने के लिए किडनी ट्रांसप्लांट जरूरी है। ट्रांसप्लांट भी जल्द से जल्द करवाने काे कहा है। देरी हाेने से मरीज की जान काे खतरा हाे सकता है। उसके बाद भी राजेश के परिवार वाले किडनी ट्रांसप्लांट के लिए धक्के खा रहे हैं। मेडिकल कॉलेज का बोर्ड एक न एक कागज की कमी बताकर टाल रहा है। राजेश के परिवार वाले हताश हो चुके हैं। 


बोर्ड के पेंच में एक साल से चक्कर काट रही मां 


शमीम खान (बदला हुआ नाम)अपनी 41 साल की बेटी शाहिदा (बदला हुआ नाम) को किडनी दान नहीं कर पा रही हैं। शाहिदा शादी होकर मप्र गई है। वहीं उसे ब्लड कैंसर होने का पता चला। लंबे समय से बीमार रहने के कारण उसकी किडनी इतनी कमजोर हो गई कि डाॅक्टरों ने कह दिया ट्रांसप्लांट नहीं कराया तो जीवन खतरे में पड़ सकता है। शाहिदा को बिलासपुर मायके लाया गया। अब मां अपनी किडनी देने को तैयार है, लेकिन बोर्ड के पेंच के कारण उन्हें एक साल से चक्कर काटना पड़ रहा है। 


प्रदेश में पॉलिसी लागू होने से ये फायदे


प्रदेश में ऑर्गन डोनेशन पॉलिसी लागू होने से अंगदान की प्रक्रिया सरल होगी। ब्रेन डेड मरीजों के शरीर के जरूरी अंग जैसे किडनी, लिवर, हार्ट, स्किन व आंख दान लिए जा सकेंगे। अभी प्रदेश में यह पॉलिसी नहीं बनी है। इसकी मांग डॉक्टर कर रहे हैं, ताकि जरूरतमंद मरीजों को अंग लगाया जा सके।


शरीर के अंग बेचने का शक, इसलिए इतनी सख्ती


छत्तीसगढ़ समेत देश के कई राज्यों में शरीर का अंग बेचने के केस सामने आ चुके हैं। बोर्ड का गठन इसलिए किया गया है, ताकि बारीकी से जांच कर ये सुनिश्चित किया जा सके कि शरीर के अंग बेचने का सौदा तो नहीं हो रहा है। इस वजह से कई तरह के दस्तावेज मंगवाए जाते हैं। 
 


मंजूरी के लिए जरूरी दस्तावेज


अंगदान करने वाले डोनर व मरीज की पूरी मेडिकल हिस्ट्री।


दोनों की ब्लड रिपोर्ट और मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट।


बोर्ड संतुष्ट होने के बाद ही मंजूरी


सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट की मंजूरी दी जाती है। बोर्ड तय करता है कि डोनर को लालच तो नहीं दिया गया है। बोर्ड द्वारा संतुष्ट होने के बाद ही मंजूरी दी जाती है। लिवर डोनेशन की पॉलिसी अभी नहीं बनी है। -डॉ. एसएल आदिले, डीएमई


जागरूक करने की जरूरत


सुपेबेड़ा में लोगों में किडनी की बीमारी से सरकार चिंतित है। प्रदेश में किडनी ट्रांसप्लांट के केस भी कम हो रहे हैं। इसे बढ़ावा देने व लाेगाें काे जागरूक करने की जरूरत है। -निहारिका बारीक, स्वास्थ्य सचिव



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