नवांशहर / अब शहर के विभिन्न चौराहों, इमारतों आदि पर बिना मंजूरी के विज्ञापन फलेक्स बोर्ड नहीं लग सकेंगे। फट्टी बस्ता चौक जिस पर किसी न किसी बहाने फलेक्स बोर्ड लगाकर कब्जा किया जाता है को भी आजादी मिलेगी। सब कुछ सही रहा तो इसी सप्ताह दौरान ही शहर में विज्ञापन संबंधी ठेका लेने वाली फर्म की ओर से काम शुरू कर दिया जाएगा।
कौंसिल की तरफ से संबंधित फर्म के साथ करार संबंधी शर्तों को फाइनल टच दिया जा रहा है। जिसके बाद फर्म द्वारा जमीनी स्तर पर काम शुरू कर दिया जाएगा। बता दें कि नगर कौंसिल की तरफ से शहर में विज्ञापन बोर्ड-फ्लेक्स-बैनर आदि लगाने संबंधी टेंडर काल किए गए थे। जिसमें लुधियाना की एक फर्म की तरफ से करीब 40 लाख रुपए नगर कौंसिल को देने का टेंडर भर दिया था।
जानकारी के अनुसार नगर कौंसिल क्षेत्रों में लगने वाले विज्ञापन संबंधी होर्डिंग्स, बैनर, फ्लेक्स, कनौपी आदि के अलावा एडवरटाइजमेंट प्वाईंट्स (करीब 20)पर होर्डिंग्स लगाने के लिए भी जगह दी जानी है। यह प्वाईंट अलग-अलग लोकेशन पर होंगे। बताया जा रहा है कि कौंसिल क्षेत्र में अगर दुकानों पर बोर्ड लगाए गए हैं, तो उसके लिए भी संभावित रूप से बोर्ड का साईज निर्धारित किया जा सकता है।
दुकान आदि पर दुकान से संबंधित प्रडक्ट-सामान के विज्ञापन के अलावा अतिरिक्त विज्ञापन बोर्ड लगाने पर दुकानदार की ओर से ठेकेदार को भुगतान करना पड़ सकता है। यही नहीं शहर में रिहायशी क्षेत्रों पर अगर विज्ञापन फ्लेक्स लगती हैं तो ठेकेदार द्वारा तय की गई फीस संबंधित को चुकानी पड़ सकती है।
यही नहीं इस तरह के मामले को लेकर नगर कौंसिल की तरफ से भी सख्ती की जा सकती है। जिसके तहत कौंसिल रिहायशी इमारत पर विज्ञापन लगाने को इमारत का कमर्शियल इस्तेमाल मानते हुए इमारत को कामर्शियल इमारत संबंधी हाउस टैक्स लगा उसे उग्राह सकती हैं।
नगर कौंसिल की आमदनी में होगी बढ़ोतरी
नगर कौंसिल को सेशन में अभी तक शहरी क्षेत्र में लगे विज्ञापनों से करीब डेढ़ लाख रुपए ही आमदनी हुई है। जबकि ठेकेदार द्वारा काम शुरू करने पर यह आमदनी करीब 40 लाख रुपए सालाना हो जाएगी। जो मौजूदा समय की आमदनी से 27 गुना अधिक है। यही नहीं विज्ञापनों का ठेका कम से कम 5 सालों के लिए दिया जा रहा है, जिसके चलते यह आमदनी आने वाले पांच सालों तक जारी रहेगी। जिससे नगर कौंसिल को एक रेगुलर आमदनी होनी शुरू हो जाएगी।
विज्ञापन का काम ठेके पर देकर ही होगी कौंसिल को आमदनी
कौंसिल स्थानीय लोगों की ओर से स्थानीय लोगों में से चुने गए पार्षदों पर आधारित हाउस होता है। जानकारों की मानें तो वे किसी न किसी राजनीतिक पार्टियों से जुड़े होते हैं इसलिए वे अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए किसी विज्ञापन या विज्ञापन फर्म को वे रियायत दे सकते हैं। यहीं कौंसिल को विज्ञापन से कम आमदनी मिलने की मुख्य वजह है। कौंसिल को अगर विज्ञापन से कमाई करनी है तो यह काम ठेके पर ही देना उचित होगा। ठेेकेदार भले ही किसी विज्ञान फर्म को रियायत दे मगर उसे सरकार या कौंसिल को बनती मासिक किश्त या कहें तय की गई राशि देनी ही पड़ेगी।
नगर कौंसिल के सुपरिंटेंडेंट अमरदीप सिंह का कहना है कि यह कार्य इसी हफ्ते में फाइनल हो जाएगा। जिसके बाद ठेकेदार फर्म की तरफ से शहर में विज्ञापन संबंधी काम देखा जाएगा।
अमरदीप सिंह, कौंसिल सुपरिटटेंडेंट