जेल में काला पीलिया 50 फीसदी कैदियों को हेपेटाइटिस-सी



अमृतसर / सेहत विभाग जेल में कैदियों की हेल्थ सक्रीनिंग करा रहा है, जिसमें 50 प्रतिशत से करीब कैदी हेपेटाइटिस-सी यानी काला पीलिया से पीड़ित पाए जा रहे हैं। एक माह पहले शुरू हुए स्क्रीनिंग प्रोजेक्ट में अभी तक 160 कैदी हेपेटाइटिस-सी के पॉजीटिव पाए गए हैं। इन मरीजों का इलाज जेल में ही फ्री किया जा रहा है।


विशेषज्ञों के अनुसार हेपेटाइटिस-सी सामान्यतः संक्रमित इंजेक्शन लगाने में इस्तेमाल होने वाली नीडल्स और रेजर या शेविंग उपकरणों के साझे उपयोग से होता है। लीवर में वायरल संक्रमण से होने वाली सूजन को हेपेटाइटिस कहते हैं। यह लीवर कैंसर का सबसे बड़ा कारण है।



एक महीने में 360 की स्क्रीनिंग, 160 काला पीलिया से पीड़ित: विभाग ने दिसंबर 2019 में एक प्राइवेट संस्था के साथ मिलकर जेलों में बंद कैदियों में से हेपेटाइटिस-सी के मरीजों को खोजने के लिए प्रोजेक्ट शुरू किया। सेहत विभाग बैरक और कमरों के अनुसार जेल में बंद कैदियों की स्क्रीनिंग कर रहा है। हर मरीज का सैंपल लेकर सिविल अस्पताल में जांच के लिए लाया जा रहा है। पिछले महीने शुरू हुए प्रोजेक्ट में अभी तक 360 मरीजों की स्क्रीनिंग की गई और सैंपल लिए गए। इनमें से 160 मरीज पॉजीटिव आए हैं।



70-80% मरीजों में लक्षण नहीं दिखते: सिविल अस्पताल के डॉ. मनजिंदर सिंह के अनुसार हैपेटाइटिस 5 प्रकार, ए, बी, सी, डी और ई, का होता है। हर साल भारत में लगभग ढाई लाख लोग इस बीमारी से मौत का शिकार बनते हैं। 70 से 80 फीसदी लोगों में हेपेटाइटिस के लक्षण नहीं दिखाई देते, इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है। इससे लीवर में सूजन हो जाती है। वजन भी कम होने लगता है। हैपेटाइटिस बी अौर सी लाखों लोगों में क्रॉनिक रोग फैलाते हैं और एक साथ मिलकर लीवर सिरोसिस और कैंसर का कारण बनते हैं।



जेल में कैपेसिटी से अधिक कैदी: क्षमता 2260 की, इस वक्त 3400 


2015 में पूर्व अकाली सरकार के समय नई केंद्रीय जेल को शुरू किया गया था। इसकी कैपेसिटी 2260 है, लेकिन यह हर समय ओवरलोड ही रही। इस वक्त भी यहां 3400 कैदी हैं। जेल के अत्यधिक भर जाने के कारण कुछ माह पहले कई कैदियों को फरीदकोट जेल में स्थानांतरित किया गया था। इतना ही नहीं इस जेल में गैंगस्टरों की बढ़ रही तादात के बाद भी कई कैदी दूसरी जेलों में भेजे गए थे, जिनमें से जग्गू भगवानपुरिया भी एक रहा।



इससे पहले टीबी ने दिखाया था असर: इससे पहले जेल में टीबी के मरीजों की संख्या में काफी इजाफा देखने को मिला था। वर्ष


]2019 में तो पूरे साल में 27 केस टीबी के सामने आए, जिनमें से 21 का इलाज पूरा हो गया। उन्हें टीबी मुक्त कर दिया गया था। वहीं अभी 7 मरीजों में टीबी का इलाज चल रहा है। इनमें से 1 मरीज इसी साल डिटेक्ट किया गया। वहीं दूसरी तरफ 7 में से 1 मरीज मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का है। इसके बाद टीबी के मरीजों के लिए अगल वार्ड भी तैयार की गई।



मुफ्त इलाज करवा रहे : सिविल सर्जन


सेहत विभाग की तरफ से शुरू किए गए इस प्रोजेक्ट के तहत पॉजीटिव आते ही मरीज का इलाज मुफ्त शुरू किया जा रहा है। तीन महीनों तक मुफ्त दवा दी जाती है। इस बीच अगर कैदी को छुट्टी हो जाती है या वे छुट्टी पर जाता है तो उसे कार्ड बना दिया जाएगा। इसके बाद वह बाहर से भी दवा ले सकते हैं।