जालसू नानक रेलवे स्टेशन; यहां कोई कर्मचारी नहीं, ग्रामीण टिकट देते हैं

, देखरेख भी करते हैं



पवन पारीक / राजस्थान में नागौर का जालसू नानक रेलवे स्टेशन। यह संभवत: देश का पहला रेलवे स्टेशन है, जहां कोई रेलवे अधिकारी या कर्मचारी नहीं है। फिर भी यहां 10 से ज्यादा ट्रेनें रुकती हैं। ग्रामीण टिकट काटते हैं और चंदा जुटाकर हर माह करीब 1500 टिकट खरीदते हैं।


दरअसल, जालसू नानक गांव के हर घर में फौजी हैं। उनकी सुविधा के लिए सरकार ने 43 साल पहले 1976 में गांव में स्टेशन की सौगात दी। वर्तमान में गांव के 160 से ज्यादा बेटे सेना, बीएसएफ, नेवी, एयरफोर्स और सीआरपीएफ में हैं। जबकि 200 से ज्यादा रिटायर्ड फौजी हैं। पूर्व सरपंच गिरवर सिंह ने बताया कि 2005 में जोधपुर रीजन में कम आमदनी वाले स्टेशनों को बंद कर दिया था। यह स्टेशन भी बंद हो गया। इसके बाद रिटायर्ड फौजियों और ग्रामीणों ने धरना देकर विरोध किया तो रेलवे ने 11वें दिन स्टेशन तो शुरू कर दिया, लेकिन ग्रामीणों के सामने हर महीने 1500 टिकट और प्रतिदिन 50 टिकट बिक्री की शर्त रख दी।


पंचायत ने हॉल और बरामदा, ग्रामीणों ने चंदा जुटा प्याऊ बनवाया


1976 में रेलवे स्टेशन स्वीकृत होने के बाद रेलवे ने यहां एक लकड़ी की कुटिया बना ट्रेनों का ठहराव शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने टिकट वितरण तो शुरू कर दिया। लेकिन 2001 तक इस स्टेशन पर कोई सुविधा नहीं थी। तब तत्कालीन सरपंच सुशीला कंवर ने पंचायत मद से यहां एक हॉल और बरामदा बनाकर डीआरएम की मौजूदगी में रेलवे को सुपुर्द किया। ग्रामीणों ने चंदे से प्याऊ बनवाया। साथ ही रिटायर्ड फौजियों ने फूलों का बगीचा तैयार किया।


चंदे के ब्याज और टिकट कमीशन से देते है मानदेय


विंडो संचालक रह चुके रतन सिंह ने बताया कि ग्रामीणों ने स्टेशन संचालन के लिए 1 लाख 50 हजार रुपए का चंदा कर रखा है। यह राशि गांव में ब्याज पर दी गई है। इससे हर माह 3 हजार रु. ब्याज मिलता है। वहीं, 1500 टिकट बिक्री के चलते बुकिंग संभालने वाले ग्रामीण को 15% कमीशन मिलता है। इस राशि से मानदेय भुगतान किया जाता है।



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