छतरपुर / जिला अस्पताल में नवजात शिशुओं अाैर बच्चों का इलाज भगवान भरोसे है। मॉर्डन एसएनसीयू में 21 वार्मर हैं। इसमें से 4 वार्मर खराब पड़े हुए हैं। जो 17 वार्मर चालू हालत में हैं उन पर 36 बच्चे भर्ती हैं। ऐसे में डॉक्टर अाैर नर्सिंग स्टाफ को एक-एक वार्मर में दो-दो शिशुओं को भर्ती करते हुए इलाज करना पड़ रहा है। इससे बुरी हालत उन माताओं की है, जिनके बच्चे इस वार्ड में भर्ती हैं। इन बच्चों की माताअाें के लेटने के लिए बने वार्ड में गंदगी अाैर बैक्टीरिया का बाेलबाला है। इस कारण अधिकांश महिलाएं अाैर परिजन वार्ड के बाहर या फिर जमीन पर पड़े रहते हैं।
जिला अस्पताल में रोज 100 से अधिक नवजात शिशु अाैर छोटे-छोटे बच्चे इलाज के लिए आते हैं। एसएनसीयू में 21 वार्मर हैं, जिसमें से 4 वार्मर खराब पड़े हुए हैं। इन बच्चों की देखभाल के लिए अस्पताल प्रबंधन द्वारा 20 लोगों का नर्सिंग स्टाफ यहां स्वीकृत किया गया है।
जब यहां भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या 60 से 70 तक पहुंच जाती है, तब बच्चांे काे इलाज मिल पाना मुश्किल हो जाता है। इसी कारण जिले में शिशु मृत्युदर का अांकड़ा अधिक है। जिले में प्रति एक हजार 0 से एक माह तक शिशुओं में से 63 की मौत हो रही है। वहीं एक माह से 5 वर्ष तक के एक हजार बच्चों में 79 बच्चों की मौत हो रही है। यह स्थिति इसलिए गंभीर है कि हाल ही में कोटा राजस्थान में बड़ी संख्या में हुई बच्चों की मौत की वजह से चिकित्सा व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गए हैं।
एसएनसीयू के अंदर ही दवाअाें का भंडार