आयकर विभाग की रेड पर भी कार्रवाई नहीं

सोसायटियों में बड़े लोगों का काला धन लगा था; , सहकारिता विभाग आंखें मूंदे रहा



जयपुर / राजस्थान में 16 हजार करोड़ का फाइनेंशियल फ्रॉड हो जाए तो सवाल उठना लाजिमी है कि क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटियां लोगों को ठग रही थीं, तब सरकारी मशीनरी क्या कर रही थी? इन सोसायटियों की मॉनिटरिंग करने वाले सहकारिता विभाग ने क्यों कुछ नहीं किया? आम आदमी की 1 लाख से ऊपर की ट्रांजैक्शन पर नजर रखने वाले आयकर विभाग को 2-2 करोड़ के ट्रांजैक्शन क्यों नहीं दिखे?


सवालों के जवाब स्पष्ट हैं। सरकारी विभागों की मिलीभगत के बिना ऐसा घोटाला होना संभव ही नहीं था। एसओजी की चार्जशीट में इन विभागों के अधिकारियों का जिक्र तो नहीं है, मगर संकेत जरूर हैं कि इन सोसायटियों में कई रसूखदारों का काला धन लगा था। यही नहीं, सरकारी विभागों में भी इन सोसायटियों ने पैठ बनाई हुई थी। जब फर्जीवाड़ा खुलने लगता तो रसूखदार पोल खुलने के डर से खामोश रहते और गरीबों की आवाज दबाने की कोशिश करते।


4 सवाल, जो बताते हैं कि कैसे सरकारी मशीनरी की मिलीभगत से हुआ राजस्थान का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा


1. केंद्र या राज्य, किसी भी ऑडिट में क्यों नहीं पकड़े गए घपलेबाज
हर क्रेडिट सोसायटी का ऑडिट होता है। प्रदेश का को-ऑपरेटिव डिपार्टमेंट व केंद्र सरकार का को-ऑपरेटिव रजिस्ट्रार ऑडिट करता है। लेकिन ये घपलेबाज जिस तरह से हर ऑडिट में बच निकले उससे यही स्पष्ट होता है कि इन तीन क्रेडिट सोसायटी के मामले में को-ऑपरेटिव विभाग मेहरबान रहा। सोसायटी संचालकों की मोटी तनख्वाह या फर्जी बिलों से कैश विदड्रॉल कुछ भी विभाग की नजर में नहीं आया।


2. दो राज्यों में एनओसी, कारोबार 28 राज्यों में कैसे फैला लिया
आदर्श क्रेडिट सोसायटी ने राजस्थान के बाद गुजरात में लाइसेंस मांगा था, मगर वहां की सरकार ने मना कर दिया। मध्य प्रदेश में कारोबार की अनुमति केंद्रीय को-ऑपरेटिव रजिस्ट्रार से मिल गई। जांच में सामने आया कि कंपनी का काम 28 राज्यों में फैला हुआ था। 2 राज्यों की परमिशन के बावजूद इतने राज्यों में कंपनी ने कारोबार कैसे फैलाया और केंद्रीय को-ऑपरेटिव रजिस्ट्रार को ये नजर क्यों नहीं आया।


3. 2010 में इनकम टैक्स रेड भी पड़ी, कार्रवाई क्यों नहीं हुई
2010 में इनकम टैक्स विभाग ने आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी के यहां रेड की थी। केंद्रीय को-ऑपरेटिव रजिस्ट्रार और राजस्थान के को-ऑपरेटिव रजिस्ट्रार को शिकायत की गई लेकिन जिम्मेदार आंखें मूंदे रहे। नौ साल तक आम लोग ठगे जाते रहे और को-ऑपरेटिव सोसायटियां अपनी जेबें भरती रहीं। सरकारी विभागों ने कुछ भी नहीं किया। अगर 2010 में ही कार्रवाई हो जाती तो घोटाला उसी समय रुक जाता।


4. धारा 80-पी की छूट का भी नाजायज फायदा कैसे उठाया
इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80 पी में क्रेडिट सोसायटियों को छूट मिली हुई है कि प्रॉफिट पर टैक्स नहीं लगता। इसी का फायदा उठाकर इन कंपनियों ने अपने वार्षिक लेखे-जोखे में घालमेल किया। ये कंपनियां इन्वेस्टरों को फर्जी प्रॉफिट दिखाती थी। गरीबों को यह कह कर लुभाया जाता कि सोसायटी लाभ कमा रही है। इस धारा का इस्तेमाल इन सोसायटियों ने गरीबों को झूठे सपने दिखाकर लूटने में किया।