, वन्य जीवों का मांस भी बिक रहा खुलेआम
बिलासपुर / सरकंडा के चांटीडीह में सब्जी मंडी के अलावा जीव-जंतुओं का भी अवैध कारोबार हो रहा है। यहां 100 रुपए के दो कछुए, खरगोश की जोड़ी 600 रुपए में आसानी से उपलब्ध है तो वन्य जीवों का मांस भी खुलेआम बिक रहा है। यह पूरा कारोबार पिछले चार सालों से बदस्तूर जारी है, लेकिन अधिकारी देखकर भी मौन हैं। मिलीभगत ऐसी कि पुलिस से लेकर वन विभाग के अधिकारियों तक का पैसा बंधा है। खास बात यह है कि शहर के बड़े अफसर तक यहां से खरीद कर ले जाते हैं। भास्कर के स्टिंग ऑपरेशन में खुद दुकानदार इस बात को स्वीकार करता है।
जानिए कैसे होती है मूक वन्यप्राणियों की बैखौफ बिक्री
प्रतिबंध के बाद भी यह कारोबार लंबे अर्से से धड़ल्ले से चल रहा है। दुकान में छोटा खरगोश 600 रुपए जोड़ी मिलता है। इसी तरह तक कबूतर, तीतर, बटेर 400-400 रुपए जोड़ी में बेचे जा रहे हैं। दुकान में कछुए भी हैं। 100 रुपए में दो मिलते हैं। दुकान में इनके मांस भी बेचे जा रहे हैं। दुकानदार से इस संबंध में बातचीत की। उसने यह ताे नहीं बताया कि इन्हें वह कहां से लाता है पर उसे यह जरूर पता है कि यह तस्करी व अपराध की श्रेणी में आता है फिर भी उसे कार्रवाई का डर नहीं है। उसका कहना है कि पुलिस से लेकर ऊपर के अफसर तक उसके ग्राहक हैं।
दुकान के बाहर बकायदा जालीदार बड़े पिंजरे में इन्हें सजा रखा है। दिनभर में वह 4 खरगोश, कम से कम 10 जोड़ी कबूतर, इसी तरह 5 जोड़ी कछुए अाराम से बेच लेता है। वह इनके मांस की भी बिक्री आर्डर पर करता है। इसमें उसे दोगुनी कमाई होती है। चांटीडीह सब्जी मंडी में हर दिन हजारों लोग जाते हैं। इनमें अफसर से लेकर शहर के कई वन्यजीव प्रेमी भी शामिल होते हैं पर किसी ने इस पर रोक लगाने की कोशिश नहीं की। सरकार ने इनकी चोरी, तस्करी पर रोक लगाने के लिए कड़े कानून बनाएं है। इसमें कम से कम दो साल की सजा का प्रावधान है।
मरवाही क्षेत्र से मंगवाते हैं वन्यप्राणि
दुकानदार से वन्यप्राणियों की आवक के बारे में पता लगाया। ये मरवाही क्षेत्र से आते हैं। दो साल पहले वन विभाग की टीम ने रतनपुर के एक ढाबे से 15 कछुए जब्त किए थे। इसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई। चोरी छिपे और मेटाडोर व 407 में भरकर इन्हें रात में लाया जाता है।
कछुआ विलुप्त प्रजाति का दुर्लभ जीव : कछुआ विलुप्त प्रजाति का दुर्लभ जीव है। इसकी तस्करी पर रोक है। कछुए का मांस खाने वालों की बड़ी संख्या है तथा होटल ढाबों में यह 200 रुपए तक प्रति प्लेट बेची जाती है।पशु, पक्षी की खरीद फरोख्त पर 1 से 4 साल तक की सजा
सहायक वन परिक्षेत्र अधिकारी जितेंद्र साहू के मुताबिक भारतीय कछुआ बेचने पर भारतीय वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 अनुसूची एक के तहत तीन साल की सजा और 25 हजार के जुर्माने का प्रावधान है। खरगोश शेड्यूल चार का जानवर है। इसे बेचने, मारने या प्रताड़ित करने पर एक साल की सजा और 10 हजार रुपए जुर्माना की कार्रवाई की जाती है। तीतर और बटेर अनुसूची चार के वन्यप्राणी हंै। इन्हें बेचने और प्रताड़ित करने पर तीन साल की सजा और 25 हजार रुपए जुर्माना की कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई सूचना है तो तत्काल वन विभाग को दें कार्रवाई भी तत्काल की जाएगी।
जांच कराई जाएगी वन्यप्राणियों की खरीद फरोख्त नहीं की जा सकती। ये जहां भी बेचे जा रहे हैं, जांच करवाता हूं। अगर भारतीय वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम की अनुसूची के वन्यप्राणी हैं तो जरूर कार्रवाई की जाएगी।
सत्यदेव शर्मा, डीएफओ बिलासपुर