लेखक
डॉ हेमन्त कुमार जैन
सहायक प्राध्यापक , मेडिसिन
मेडिकल कॉलेज दतिया मप्र
जनजागरूकता के लिए लिखा गया लेख
सही नही है हर मरीज का बोतल या इंजेक्शन से इलाज ।
प्रायः देखा गया है खासकर हमारे संभाग ग्वालियर एवं चम्बल में, जिसमें मुख्यतः लेखक ने मुरैना , ग्वालियर , भिंड , दतिया जैसी जगहों पर विभिन्न इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मेडिकल कॉलेज तक सेवाएं दी हैं और दे रहे हैं , मरीज और उनके परिजनों की धारणा है कि किसी भी परिस्थिति में अगर मरीज को चिकित्सक ने अगर इंजेक्शन या बोतल नही लगाई तो इलाज सही नही किया या वो सोचते हैं कि बोतल लगते ही मरीज के शरीर में ताकत आ जायेगी या आ जाती है ।
कई बार चिकित्सकों से मरीज स्वयं या परिजन जिद करते हुए पाए जाते हैं कि हमारे मरीज को बोतल लगा दो भले ही चिकित्सक का मत यह हो कि मरीज मात्र कुछ गोलियों एवं कैप्सूल्स से सही हो जाएगा |
सरकारी अस्पतालों में तो कई मरीजो को बोतल लगवाने के लिए भर्ती होने की जिद करते हुए देखा जा सकता है या भर्ती भर्ती मरीजों के परिजन यह शिकायत करते हुए मिल जाएंगे कि हमारे मरीज को कल से बस एक बोतल लगी है कोई इलाज नही हुआ है |
वैसे लेखक का यह मत निजी है और मरीज एवं उनके परिजनों का यह अधिकार है कि इलाज का कौन सा तरीका उन्हे पसंद है फिर भी दवा के किस तरीके से क्या फायदा और क्या नुकसान हो सकता है यह बताना लेखक का उद्देश्य है |
आइये बात करते हैं दवा किस तरह और किस माध्यम से मरीज के मर्ज के लिए दी जा सकती है
1 मुख से
2 मांस द्वारा अर्थात इंजेक्शन द्वारा
3 नसों के माध्यम से
4 अन्य
मुख द्वारा दवा देने के तरीकों में गोली , कैप्सूल्स , सिरप एवं टॉनिक मुख्य हैं , इन तरीकों से मरीज को दवा देने पर मरीज को इन्फेक्शन की संभावना खासकर रक्तजनित की संभावना नही होती हालांकि दवा देने का यह तरीका उन मरीजों के लिए उचित नही हैं जो मुख द्वारा दवा लेने में सक्षम नही हैं एवं अत्यंत गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित है |
मांस द्वारा अर्थात इंजेक्शन से दवा उन मरीजो के लिए उचित है जो मुख से दवा नही ले सकते या फिर गंभीर अवस्था में हैं ,हालांकि कुछ परिस्थितियों में इस माध्यम से दवा देने पर दवा देने की जगह पर इन्फेक्शन (पक जाने) की स्थिति बन जाती है जो चिकित्सक द्वारा सही तरीका न अपनाने से होता है |
नसों द्वारा दवा इंजेक्शन या बोतल के माध्यम से दी जा सकती है , इस श्रेणी का उपयोग उन मरीजो के लिए किया जाता है जो गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हों जिसमें मुख्यतः बीमारी के कारण रक्त चाप का अत्यधिक उतार या चढ़ाव होना , रक्त शर्करा का कम या ज्यादा होना , शरीर में जीवन के आवश्यक ऑक्सिजन का स्तर कम हो जाना , शरीर में पानी की गंभीर कमी , मरीज का किसी प्रकार के शॉक से ग्रषित होना अर्थात सीमित शब्दो में कहा जाए तो नसों द्वारा दवा अत्यंत गंभीर मरीजो के लिए सुरक्षित रखी जानी चाहिए |
अगर चिकित्सकों द्वारा इस माध्यम का उपयोग अगर सामान्य मरीजों पर किया जा रहा है तो यह मेडिकल एथिक्स के खिलाफ है तथा मानवीय भी नही है क्यों कि हम मरीज के शरीर को बाहरी संक्रमण के लिए खुला छोड़ रहे हैं ।
ग्रामीण इलाकों में कम प्रशिक्षित चिकित्सक मरीज के शरीर को परीक्षण किये बिना कई बार बोतल लगा देते हैं जिससे उनकी स्तिथि और बिगड़ जाती है और मरीज की जान पर बन आती है ।
इसलिए कुछ परिस्थियों को छोड़ कर नसों द्वारा इलाज लेना और देना घातक हो सकता है ।
कुछ बीमारियां जिन में नसों द्वारा सेलाइन या ग्लूकोस नही दिया जाना चाहिए
1 रक्ताल्पता यानी एनीमिया
2 सामान्य ज़ुकाम ,खांसी ,बुखार जिसमें रक्तचाप सामान्य हो
3 दस्त एवं उल्टियाँ होना जिसमें मरीज का रक्त चाप एवं होश सामान्य हो ।
4 दिल के मरीज जिनके ह्रदय सही कार्य ना कर रहा हो
5 किडनी फ़ेल्यर के मरीज
6 फेफड़ों से संबंधित बीमारियां जैसे अस्थमा , ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी
7 लकवा
8 शरीर में सूजन होने पर इत्यादि ।
डॉ हेमन्त कुमार जैन
सहायक प्राध्यापक , मेडिसिन
मेडिकल कॉलेज दतिया मप्र
जनजागरूकता के लिए लिखा गया लेख
सही नही है हर मरीज का बोतल या इंजेक्शन से इलाज ।
प्रायः देखा गया है खासकर हमारे संभाग ग्वालियर एवं चम्बल में, जिसमें मुख्यतः लेखक ने मुरैना , ग्वालियर , भिंड , दतिया जैसी जगहों पर विभिन्न इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर मेडिकल कॉलेज तक सेवाएं दी हैं और दे रहे हैं , मरीज और उनके परिजनों की धारणा है कि किसी भी परिस्थिति में अगर मरीज को चिकित्सक ने अगर इंजेक्शन या बोतल नही लगाई तो इलाज सही नही किया या वो सोचते हैं कि बोतल लगते ही मरीज के शरीर में ताकत आ जायेगी या आ जाती है ।
कई बार चिकित्सकों से मरीज स्वयं या परिजन जिद करते हुए पाए जाते हैं कि हमारे मरीज को बोतल लगा दो भले ही चिकित्सक का मत यह हो कि मरीज मात्र कुछ गोलियों एवं कैप्सूल्स से सही हो जाएगा |
सरकारी अस्पतालों में तो कई मरीजो को बोतल लगवाने के लिए भर्ती होने की जिद करते हुए देखा जा सकता है या भर्ती भर्ती मरीजों के परिजन यह शिकायत करते हुए मिल जाएंगे कि हमारे मरीज को कल से बस एक बोतल लगी है कोई इलाज नही हुआ है |
वैसे लेखक का यह मत निजी है और मरीज एवं उनके परिजनों का यह अधिकार है कि इलाज का कौन सा तरीका उन्हे पसंद है फिर भी दवा के किस तरीके से क्या फायदा और क्या नुकसान हो सकता है यह बताना लेखक का उद्देश्य है |
आइये बात करते हैं दवा किस तरह और किस माध्यम से मरीज के मर्ज के लिए दी जा सकती है
1 मुख से
2 मांस द्वारा अर्थात इंजेक्शन द्वारा
3 नसों के माध्यम से
4 अन्य
मुख द्वारा दवा देने के तरीकों में गोली , कैप्सूल्स , सिरप एवं टॉनिक मुख्य हैं , इन तरीकों से मरीज को दवा देने पर मरीज को इन्फेक्शन की संभावना खासकर रक्तजनित की संभावना नही होती हालांकि दवा देने का यह तरीका उन मरीजों के लिए उचित नही हैं जो मुख द्वारा दवा लेने में सक्षम नही हैं एवं अत्यंत गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित है |
मांस द्वारा अर्थात इंजेक्शन से दवा उन मरीजो के लिए उचित है जो मुख से दवा नही ले सकते या फिर गंभीर अवस्था में हैं ,हालांकि कुछ परिस्थितियों में इस माध्यम से दवा देने पर दवा देने की जगह पर इन्फेक्शन (पक जाने) की स्थिति बन जाती है जो चिकित्सक द्वारा सही तरीका न अपनाने से होता है |
नसों द्वारा दवा इंजेक्शन या बोतल के माध्यम से दी जा सकती है , इस श्रेणी का उपयोग उन मरीजो के लिए किया जाता है जो गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हों जिसमें मुख्यतः बीमारी के कारण रक्त चाप का अत्यधिक उतार या चढ़ाव होना , रक्त शर्करा का कम या ज्यादा होना , शरीर में जीवन के आवश्यक ऑक्सिजन का स्तर कम हो जाना , शरीर में पानी की गंभीर कमी , मरीज का किसी प्रकार के शॉक से ग्रषित होना अर्थात सीमित शब्दो में कहा जाए तो नसों द्वारा दवा अत्यंत गंभीर मरीजो के लिए सुरक्षित रखी जानी चाहिए |
अगर चिकित्सकों द्वारा इस माध्यम का उपयोग अगर सामान्य मरीजों पर किया जा रहा है तो यह मेडिकल एथिक्स के खिलाफ है तथा मानवीय भी नही है क्यों कि हम मरीज के शरीर को बाहरी संक्रमण के लिए खुला छोड़ रहे हैं ।
ग्रामीण इलाकों में कम प्रशिक्षित चिकित्सक मरीज के शरीर को परीक्षण किये बिना कई बार बोतल लगा देते हैं जिससे उनकी स्तिथि और बिगड़ जाती है और मरीज की जान पर बन आती है ।
इसलिए कुछ परिस्थियों को छोड़ कर नसों द्वारा इलाज लेना और देना घातक हो सकता है ।
कुछ बीमारियां जिन में नसों द्वारा सेलाइन या ग्लूकोस नही दिया जाना चाहिए
1 रक्ताल्पता यानी एनीमिया
2 सामान्य ज़ुकाम ,खांसी ,बुखार जिसमें रक्तचाप सामान्य हो
3 दस्त एवं उल्टियाँ होना जिसमें मरीज का रक्त चाप एवं होश सामान्य हो ।
4 दिल के मरीज जिनके ह्रदय सही कार्य ना कर रहा हो
5 किडनी फ़ेल्यर के मरीज
6 फेफड़ों से संबंधित बीमारियां जैसे अस्थमा , ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी
7 लकवा
8 शरीर में सूजन होने पर इत्यादि ।