लोक अदालत में फर्जी पॉलिसी से किया आठ लाख रु. का समझौता
बीमा पॉलिसी फर्जी होने का पता चलनेे पर फैसले को चुनाैती दी गई अाैर हाईकाेर्ट ने पहली बार लोक अदालत के फैसले को खारिज कर दिया
इंदौर / लाेक अदालत में भी फर्जीवाड़ा हो गया। पिछले साल आयोजित नेशनल मेगा लोक अदालत में मोटर एक्सीडेंट के एक मामले में पीड़ित पक्ष ने फर्जी मोटर इंश्याेरेंस की फोटोकाॅपी लगा दी थी। कंपनी ने भी जल्दबाजी में जांच नहीं की और 8 लाख रुपए में समझौता कर राजीनामा दस्तावेज पर साइन कर दी। बाद में पता चला कि पाॅलिसी फर्जी है। इस पर राजीनामे को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने यह फैसला रद्द कर दिया है। संभवत: एेसा पहली बार हुआ, जब लोक अदालत के फैसले को चुनौती दी गई और हाईकोर्ट ने भी उसे रद्द कर दिया। जबकि हाईकोर्ट लोक अदालत के फैसलों की अपील नहीं सुनती। पीड़ित पक्ष को बीमा एजेंट ने ही धोखाधड़ी कर फर्जी मोटर इंश्याेरेंस की फोटो काॅपी दी थी। पीड़ित पक्ष इसे नहीं देख पाया था।
अधिवक्ता अक्षांश संजय मेहरा के मुताबिक 15 सितंबर 2017 को नागेश्वर नामक व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। वह दोस्त के साथ बाइक पर पीछे बैठकर जा रहे थे। तभी ट्रक ने टक्कर मार दी थी। परिजनाें ने क्लेम का दावा पेेश किया था।
ऐसे हुआ खुलासा : कंपनी काे नहीं मिली पाॅलिसी
8 दिसंबर 2018 को हुई लोक अदालत में यह मामला समझौते के लिए रखा गया था। नेशनल इंश्याेरेंस कंपनी ने क्लेम के लिए मूल पाॅलिसी तलाशी, जो नहीं निकली। इस पर हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी। हाई कोर्ट को बताया कि परिजन ने जिस पॉलिसी की फाेटो काॅपी दी, वह पॉलिसी कंपनी ने कभी जारी की ही नहीं। कंपनी के बैंक खाते का स्टेटमेंट भी कोर्ट को बताया कि न चेक न कैश से पैसा जमा किया गया। हाईकोर्ट ने समझौता रद्द करते हुए निचली अदालत में फिर से केस चलाए जाने के आदेश दिए।