ये 91 महिलाएं हैं, आरक्षित वर्ग की होने के बावजूद मेरिट में आईं, इसलिए नहीं मिली नियुक्ति

इंदौर । महिला सशक्तिकरण के बुलंद नारों के बीच प्रदेश के 91पीएससी उम्मीदवारों की योग्यता को इसलिए नजरअंदाज कर दिया गया क्योंकि वे महिलाएं हैं और वो भी आरक्षित वर्ग की। अनुसूचित जाति या पिछड़ा वर्ग की इन महिला उम्मीदवारों ने असिस्टेंट प्रोफेसर चयन परीक्षा 2017 में भाग लिया था। नतीजे आए थे तो इन 91 महिलाओं के अंक अपने-अपने विषय में पुरुष उम्मीदवारों से भी ज्यादा थे। ये महिलाएं मेरिट में थीं तो इन्हें अनारक्षित वर्ग की सीटें दी गईं। यहीं पर कुछ लोगों ने आपत्ति ली और कहा कि महिलाएं हैं तो सिर्फ महिलाओं के लिए आरक्षित अपने वर्ग की सीटों का चयन किया जाए। उच्च शिक्षा विभाग ने भी बिना सोचे-समझे इनके नियुक्ति आदेश रोक दिए।


पीएससी ने असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा कुल 41 विषयों में आयोजित की थी। इसमें चयनित हुए 2700 उम्मीदवारों के नियुक्ति आदेश जारी हुए तीन महीने बीत चुके हैं। सिर्फ इन 91 महिलाओं को रोका गया है जिनके अंक नियुक्ति पाने वाले इन उम्मीदवारों में से ज्यादातर के मुकाबले अधिक हैं। आरक्षित वर्ग की ये महिलाएं अपने मेधावी होने की सजा पा रही हैं। अन्य सभी प्रोफेसर बनकर सरकारी नौकरी करने लगे हैं। एक पीड़ित उम्मीदवार डॉ. महजबी अंसारी कहती हैं कि हम सभी 91 महिलाएं वे हैं जो अपने-अपने विषयों की चयन परीक्षा में पहले, दूसरे स्थान पर हैं या शीर्ष 10 में हैं। अंकों के आधार पर हक बनता है और नियम भी यही कहता है कि ज्यादा अंक आए, उसे अनारक्षित वर्ग की सीट दे दी जाए। एक अन्य पीड़ित उम्मीदवार डॉ. श्वेता हार्डिया कहती हैं कि उच्च शिक्षा विभाग की मनमानी देखिए यदि चयन या आरक्षण का फॉर्मूला बदला भी जाए तो भी यह होता कि जो कम अंक वाले उम्मीदवार हैं, वे चयन सूची से बाहर होते। हम मेरिट वाली महिलाएं तो फिर भी बाहर नहीं होती। इसके बावजूद कम अंक वालों को नियुक्ति पत्र जारी कर दिए गए। हमें ही रोका गया है क्योंकि हम महिला होकर ज्यादा अंक ले आईं। अब अफसोस है कि यदि हम मेरिट में नहीं आतीं तो हमें भी नियुक्ति दे दी जाती। 5 जनवरी को हमने भोपाल में धरना दिया। उच्च शिक्षा मंत्री से मिले। हमे रैली निकालने की अनुमति भी नहीं दी गई। अब कोर्ट में मामला जाने की बात कहकर नियुक्ति टाली जा रही है।


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