परिवार की जिम्मेदारी के साथ चलाती है ट्रेनें

रतलाम । रेलवे में कभी कार्यालयों एवं स्टेशनों की ड्यूटी तक सीमित महिलाएं अब ट्रेन चलाने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं। रतलाम मंडल में चार महिला लोको पायलट एवं दो गार्ड के रूप में कार्यरत हैं। बच्चों की परवरिश, पारिवारिक जिम्मेदारी के साथ ही वे रनिंग ड्यूटी भी बेहतर ढंग से कर रही हैं। इस काम में परिवार व रेल प्रशासन का पूरा सहयोग उन्हें मिल रहा है।


पश्चिम रेलवे द्वारा एक से दस मार्च तक अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कैंपेन के तहत इन्हें विशेष ड्यूटी दी जा रही है। गत दिनों रतलाम से गोधरा तक मालगाड़ी (क्रमांक आरटीएमडीसीसी पावर नंबर 28622) की कमान महिला कर्मचारियों को दी गई थी। ट्रेन का नाम भी महिला स्पेशल दिया गया। इसमें प्रमुख रूप से लोको पायलट बीना मुरलीधरन, सहायक लोको पायलट पूजा बोरासी व गार्ड के रूप में दीपिका बैरागी ट्रेन लेकर रवाना हुई थीं। हरी झंडी बताने का काम भी स्टेशन मास्टर माया यादव ने किया। यह पहला मौका था जब रतलाम रेल मंडल में मालगाड़ी ले जाने लेकर हरी झंडी दिखाने वाला पूरा स्टाफ महिलाओं का ही था। जबकि पूर्व में महिला लोको पायलट के साथ एक पुरुष कर्मचारी को भी शामिल किया जाता रहा।


 

दो साल में कई अनुभव रहे


रेलवे में महिला गार्ड दीपिका बैरागी शर्मा का कहना है कि महिलाओं के लिए यह नौकरी भले ही चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसमें आगे आना चाहिए। देशभर से महिलाएं रनिंग ड्यूटी कर रही हैं। शुरुआत में परिचालन के दौरान थकान व मौसम की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अब इसका भी अभ्यास हो गया है। महिला गार्ड होने की वजह से सुबह या दोपहर में बुकिंग दी जाती है, लेकिन सिग्नल नहीं मिलने पर कई बार रात भी हो जाती है। स्वजन का सहयोग मिल रहा है। वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा भी प्रोत्साहित किया जाता है। एक अन्य गार्ड उषा खंडेरवाल का कहना है कि गार्ड कैटेगरी में महिलाओं के लिए अच्छे अवसर हैं। गाड़ी चलती रहे तो किसी तरह की समस्या नहीं रहती है। गाड़ी खड़ी रहने पर अकेलापन लगता है। स्टेशनों पर स्टाफ, ट्रैक मेंटेनेंस स्टाफ रहने से डर वाली कोई बात नहीं है।


 

एक साल में सैकड़ों किलोमीटर का सफर


रेलवे में दो महिला लोको पायलट तथा दो सहायक लोको पायलट कार्यरत हैं। इन्होंने कार्य को लेकर पुरुषों को पीछे छोड़ा है। रतलाम मुख्यालय पर कार्यरत बीना मुरलीधरन ने बताया कि 19 दिसंबर 2018 को उन्होंने पहली बार लोको पायलट की ड्यूटी संभाली थी। तब उनके साथ क्रू के रूप में पुरुष कर्मचारी को भेजा गया था। 3 मार्च 2020 को पूरी गाड़ी महिलाएं ही लेकर गोधरा की ओर रवाना हुईं। अब आत्मविश्वास पूरी तरह कायम है। एक साल में सैकड़ों किलोमीटर गाड़ी चलाई है।


हर काम चुनौती के रूप में स्वीकारें


वरिष्ठ सहायक लोको पायलट पूजा बोरासी का कहना है कि बेटे रुत्विक वर्मा की परवरिश में पति अरविंद वर्मा का भी योगदान रहता है। वे भी रेलवे में कार्यरत हैं। परिवार के अन्य लोग रेलवे में रनिंग ड्यूटी को भलीभांति समझते हैं। महिलाएं किसी भी फील्ड में रहें, कुछ तो परेशानी रहती ही है। उन्हें हर काम को चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए।