निगम का कॉलम

टाउन हॉल-हरीश चन्द्रा शहर की इज्जत पर लगा दाग


शहर बेहाल है। चलने लायक सड़कें नहीं बची और पीने लायक पानी। शहर की सोने की नदी में घरों की गंदगी और कॉलोनियों व सड़कों पर सीवर बह रहा है। बेलगाम तोडू दस्ता उसी के आशियाने को निशाना बना रहा है जहां से 'इंतजाम' नहीं होता। होर्डिंग्स से लेकर तलघरों का खेल किसी से छिपा नहीं है। न्यायालय भी 50 हजार का जुर्माना ठोक चुका है और हर सुनवाई में खरी-खोटी सुना रहा है। मुंसीपाल्टी की लाल बिल्डिंग के कोने-कोने में विकास के बजाय 'अपने इंतजाम' की ही बातें होने लगी हैं। बड़े साहब को न केवल एक-एक बातें पता हैं बल्कि कुछ काम तो उन्हीं के इशारे पर किए जाते हैं। इसलिए सुविधा के बदले 'सेवा' की डिमांड करने वालों को खुली छूट दे रखी है। कोई बड़ा अफसर और सरकार का नुमाइंदा शहर में आने से बचने लगा है। खबरियों की मानें तो मुंसीपाल्टी की इतनी शर्मनाक स्थिति कभी नहीं रही।


 

दिल्ली दरबार में क्या खेला खेल


चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात। सफाई के मामले में यह कहावत मुंसीपाल्टी में चरितार्थ होने लगी है। साफ सफाई की परीक्षा से पहले पूरी ताकत झोंक दी गई थी। ईको ग्रीन के वाहन भी सड़कों पर दौड़ते दिख रहे थे। लेकिन दिल्ली की टीमों के जाते ही शहर फिर कचरा होने लगा है। पिछले सप्ताह अचानक मोड़ आया। मुंसीपाल्टी के प्रशासक एमबी ओझा और निगमायुक्त संदीप माकिन दिल्ली पहुंचे। सरकारी दौरा यह बताया कि वे ईको ग्रीन को चेतावनी देने पहुंचे थे। लेकिन इस पर हर किसी को अचरज हुआ। क्योंकि ईको ग्रीन एक संस्था है और संस्था के पदाधिकारियों से चर्चा करने दो आईएएस दिल्ली क्यों जाएंगे। एक फोन पर ही ईको ग्रीन के नुमाइंदे दौड़े-दौड़े चले जाएंगे। खबरियों ने बताया कि दोनों अधिकारी ईको के बहाने 'महाराज' से नमस्ते करने पहुंचे थे।


 

नौकरी करना सीख जाओ नहीं तो भगा दूंगा


शहर में 'अमृत' के लिए हंगामा मचा है। अधिकारी कभी लड़ते-झगड़ते, ठेकेदारों को आंखें तरेरते हैं और कभी गले लग जाते हैं। पहले अमृत के लिए पार्षद भी उतावले थे। पार्षदी चली गई तो माननीय विधायकों का ही एक छत्र राज हो गया है। पूर्व वाले मुन्नाा भैया मुरार नदी में बिजी हैं। ग्वालियर के तोमर साहब गंदे पानी की चिंता से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। लेकिन दक्षिण के पाठक जी तय नहीं कर पा रहे कि वे कौन सा बड़ा मुद्दा पकड़ें। इसलिए कभी स्मार्ट सिटी में घुस जाते हैं तो कभी ट्रैफिक सुधारने खड़े हो जाते हैं। कभी किताबों की बैंक तो कभी उद्योग नगरी और एजूकेशन हब की बातें करने लगते हैं। पिछले सप्ताह में 'अमृत' के लिए लाल-पीले हो गए। वे हर अधिकारी से यही कहते हैं कि नौकरी करना सीख जाओ नहीं तो बस्तर, जगदलपुर भिजवा दूंगा। हालांकि वे सवा साल में अदने से कर्मचारी के साथ ऐसा नहीं कर सके हैं।


पार्क में सेंधमारी, चुप्पी साध गए बंसल जी


ग्वालियर विधानसभा के माननीय की नाराजगी के बाद मुंसीपाल्टी के पार्क विभाग वाले बंसल जी का दबदबा थोड़ा कम हुआ है। विभाग के बड़े साहब ने उनके ऊपर 'प्रेम के पचौरी' को बैठा दिया है। उनका बचपना और जवानी मुंसीपाल्टी में बीती है और अब बुढ़ापा भी मुंसीपाल्टी में ही कटेगा। इसलिए 'प्रेम के पचौरी' के दांव-पेंच से हर कोई नहीं बच सकता। बड़े साहब भी आजकल 'प्रेम के पचौरी' पर ही फिदा बंसल जी को जब लगने लगा कि ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं है इसलिए कुछ समय मौन ही रहना सीख लिया है। वे ज्यादा इधर-उधर ताका-झांकी नहीं कर रहे। माननीयों की बैठक में आते हैं लेकिन शांत बैठने में ही भलाई समझते हैं। इसका लाभ 'प्रेम के पचौरी' ले रहे हैं। हर छोटी-बड़ी फाइल पर मनमर्जी से ही साइन करते हैं।