नई दिल्ली / घोंडा चौक के नजदीक जहां दंगे के दौरान आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हो रही थीं, वहीं हिन्दू मोहल्ले के बीच रहने वाले कुछ मुस्लिम परिवार गहरे सदमे में थे। ऐसे समय में इन परिवारों की जान बचाने के लिए हिन्दुओं ने भाईचारे की मिसाल पेश की। वे उनके लिए सुरक्षा कवच बनकर खड़े हो गए। इन परिवारों को घर से बाहर नहीं निकलने की सलाह दी गई, जिसके बाद उनके सभी बाहर के काम आस पड़ोस के लोगों ने ही किए। ऐसे ही एक मुस्लिम परिवार ने दहशत में गुजारे गए कुछ दिन की पूरी कहानी बयान की। घोंडा चौक भक्तन मौहल्ले में असगर अली पत्नी अली फात्मा, दो बेटे और दो बेटी के साथ रहते हैं। वह चौक पर ही जूस की रेहड़ी लगाकर परिवार का पालन-पोषण करते हैं। यहां वह करीब बीस साल से हिन्दू परिवार के घर किराए पर रह रहे हैं। इनका बड़ा बेटा दसवीं और छोटा नौंवी कक्षा में पढ़ता है। अगसर अली ने बताया 24 फरवरी को दोपहर बाद अचानक से चौक पर माहौल गर्म हो गया। उपद्रवी लोग बवाल काटने लगे। वह जिस माैहल्ले में रहते हैं, वहां पांच छह परिवार की मुस्लिमों के हैं। साम्प्रदायिक तनाव के बीच पड़ोस में रहने वाले हिन्दू भाईयों ने ही उनके परिवार की रक्षा की। वे उनके लिए सुरक्षा कवच बनकर खड़े हो गए और घर से बिल्कुल बाहर नहीं निकलने की सलाह दी। इसके बाद पड़ोस में रहने वाली राधा अम्मा ने उनके घर के बाहर वाले सभी काम किए। किसी पड़ोसी ने बाहर से सब्जी लाकर दी तो कोई दूध लाया। असगर अली का कहना है यहां रहते हुए दाे दशक का समय गुजर चुका है लेकिन उन्हें कभी बाहरी होने की फीलिंग महसूस नहीं हुई। वे और आसपास के लोग हर किसी के सुख-दुख में जाते हैं। वहीं, दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले उनके बड़े बेटे मोहम्मद गाजी ने कहा केवल वही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार दहशत की वजह से सो नहीं सका। माहौल थोड़ा ठंडा हो जाने पर पिता ने बुधवार दिन में दोनों भाई और दोनाें बहनों को दिल्ली से बाहर भेज दिया। दोनों भाई रहने के लिए बुलंदशहर आ गए, वहीं बहनें शिकारपुर में अपनी खाला के घर आ गई। मोहम्मद गाजी का कहना है उनके परिजनों ने बच्चों की चिंता को देखते हुए दिल्ली से बाहर भेज दिया था, ताकि वहां बोर्ड परीक्षा की आगे की तैयारी कर सकें। खैर, अब माहौल ठीक हो गया है, इसलिए दोनाें भाई शुक्रवार को वापस अपने घर लौट आएंगे।
नमाज पढ़कर बाहर निकला, तो भीड़ में से किसी ने मारी गोली, अभी तक चेहरे में फंसी
नूर-ए-इलाही इलाके में रहने वाले जुल्फीकार सोमवार से गुरुतेग बहादुर अस्पताल में भर्ती हैं। चेहरा पूरी तरह से सूजा हुआ है और खौफजदा हैं। उनका कहना है कि हिंसा में उन्हें गोली लगी थी जिसे अभी तक नहीं निकाला गया। इसके कारण उन्हें बहुत परेशानी हो रही है। जुल्फीकार ने सोमवार की खौफनाक रात का जिक्र करते हुए कहा कि रात में घर पर नमाज पढ़ने के बाद बाहर निकला तो लोगों की भीड़ दिखाई दी। अचानक से मेरे चेहरे के पास अवाज हुई। मुझे दिखाई और सुनाई देना बंद हो गया। किसी ने एंबुलेंस बुलाई तो करीब आधे घंटे बात आई। भीड़ ने एंबुलेंस को पूरी तरह से तोड़ दिया था।
मोहल्ले में सिर्फ 4 हिंदू परिवार, मंदिर की सुरक्षा में जुटे मुस्लिम
मौजपुर के विजय पार्क मोहल्ले में हिंदुओं के सिर्फ चार परिवार रहते हैं। इलाके में एक मंदिर है। मंदिर के पुजारी हरिशंकर ने कहा- हमारा इलाका दंगों से प्रभावित था। इस बीच मुस्लिमों ने हमसे कहा कि डरें नहीं। उसके बाद उन लोगों ने पूरी रात मंदिर की सुरक्षा की। हिंदू परिवारों को भरोसा दिलाया। मैं 25 साल से मंदिर में रह रहा हूं। हमेशा यहां के लोग मिल-जुलकर रह रहे हैं। हर हालात में हमारा साथ दिया। वहीं इस मोहल्ले में रह रहे परिवार वालों ने कहा कि पिछले 40 साल में इतनी अधिक दहशत में कभी नहीं रहे। हालांकि आसपास के पड़ोसियों ने घर आकर कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है। हम आप लोगों के साथ है।
पीट-पीटकर आग में डाल दिया 58 साल का बुजुर्ग, बचा सिर्फ कमर से नीचे का हिस्सा
शिव विहार इलाके में एक 58 साल के बुजुर्ग को पीट-पीटकर आग में डाल दिया। कुछ लोगों ने उसे बचाने की कोशिश तो की लेकिन शव के नाम पर कमर से नीचे का हिस्सा ही मिला है। बुजुर्ग अनवर की नृशंस हत्या के बारे में उनके भाई सलीम ने आंसू भरी आंखों से बयां किया। सलीम गुरुवार को गुरुतेग बहादुर अस्पताल में शव लेने पहुंचे थे। सलीम ने बताया कि शिव विहार में मंगलवार सुबह करीब 9 बजे उनके भाई अनवर अपने घर पर थे। माहौल तनावपूर्ण बना हुआ था। अचानक से लोगों की भीड़ घर की तरफ आई। उनके हाथों में लाठी-डंडे थे। घर में घुसते ही उन्होंने तोड़फोड़ शुरू कर दी। पशुओं को खोलकर भगा दिया और भाई से मारपीट शुरू कर दी।
दर्दनाक: पत्नी पैर पकड़ कर लगाती रही पति की जान बख्शने की गुहार, नहीं पसीजा उपद्रवियों का दिल, पीटते हुए नीचे ले गए, नाले में मिली लाश
तरुण सिसोदिया|हिंसा प्रभावित भागीरथी विहार इलाके में मंगलवार देर रात 50 से ज्यादा उपद्रवी लाठी-डंडे लेकर एक मकान में घुसे और तीसरी मंजिल पर जा पहुंचे। यहां मुशर्रफ अपनी पत्नि, बहन और दो बच्चों के साथ रहते थे। उपद्रवियों ने यहां पहुंच मुशर्रफ से मारपीट करनी शुरू कर दी। मुशर्रफ को पीटते देख उनकी पत्नी, बहन और बच्चे रोने लगे। इन्होंने उपद्रवियों के पैर पकड़ उन्हें छोड़ने की गुहार भी लगाई लेकिन वह नहीं माने और पीटते हुए नीचे ले गए। बुधवार सुबह परिवार को उनकी लाश नाले में मिली। गुरुवार को जीटीबी अस्पताल पहुंचे मुशर्रफ के परिजनों ने अपनी आपबीती बताई। जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी के बाहर अपने पति का शव मिलने का इंतजार कर रही मुशर्रफ की पत्नी मलिका की आंखों में आंसू थे।
रोते हुए उसने कहा हमने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था, फिर हमारे साथ ऐसा क्यूं हुआ। मलिका ने उस भयावह रात को याद करते हुए कहा कि मेरे पति काम से लौटे थे। सबने मिलकर खाना खाया। अचानक से तेज-तेज गेट बजने की अवाज आई और गेट टूट गया। 50 से ज्यादा लोग थे। पति को पीटने लगे। जमीन पर गिर गए तो उन्हें लात और डंडों से पीटा। मैं, मेरे दोनों बच्चे और नंद वहीं थीं। हमने मारपीट करने वालों के पैर पकड़ उन्हें छोड़ने के लिए कहा लेकिन मेरे पति को नहीं छोड़ा। उन्हें उठाकर ले गए। हमने पुलिस को बहुत फोन किए, लेकिन कोई नहीं आया। सुबह में हमने उन्हें ढूंढने शुरू किया तो बताया कि उनकी लाश नाले में मिली है। मलिका ने कहा कि हमें वहां रात बितानी भारी पड़ी। जान बचाने के लिए मैं और मेरी ननद को सिंदूर तक लगाना पड़ा। वर्ना हमें भी जान से हाथ धोना पड़ता। हमारे बच्चों कपड़े उतरवाकर उनके प्राइवेट पार्ट भी देखे गए। दूसरे बच्चों के प्राइवेट पार्ट भी इसी तरह देखे जा रहे थे।