योजनाओं को लेकर बनी असमंजस की स्थिति

योजनाओं को लेकर बनी असमंजस की स्थिति



भोपालखाली खजाने के चलते गंभीर आर्थिक तंगी से जूझ रही कमलनाथ सरकार प्रदेश में चल रही 2 हजार योजनाओं को बंद करना चाह रही है। इसके लिए सरकार ने योजनाओं के परीक्षण की जिम्मेदारी कुछ अफसरों को सौंपी थी। उन्हें 20 फरवरी तक रिपोर्ट देनी थी, मगर ऐसा हो नहीं सका। इससे योजनाओं पर सस्पेंस बढ़ गया है। बता दें कि सरकार नए वित्तीय वर्ष में अनुपयोगी योजनाएं बंद करने की तैयारी कर रही है। कौन सी योजनाएं बंद करना है और कौन सी चालू रखना है, वित्त विभाग ने इसके परीक्षण की जिम्मेदारी वरिष्ठ अधिकारियों को सौंपी है। इसके लिए वरिष्ठ अधिकारियों के विभागवार पांच समूह बनाए गए हैं। ये समूह वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए विभिन्न विभागों और क्षेत्रों की योजनाओं पर विचार कर वित्त विभाग को रिपोर्ट नहीं सौंप पाए हैं। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि एक-दो दिन में सभी समूहों की रिपोर्ट आ जाएंगी। गौरतलब है कि 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल 31 मार्च, 2020 को पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही प्रदेश में संचालित सभी 2170 सरकारी योजनाएं स्वत: बंद हो जाएंगी। इन सभी योजनाओं की वैधता 31 मार्च तक है। इसे देखते हुए सरकार योजनाओं का परीक्षण करा रही है कि कौन सी योजनाएं अपने मूल स्वरूप में चलाई जाएं, कौन सी योजनाओं में बदलाव किया जाए और कौन सी अनुपयोगी योजनाएं बंद की जाएं। योजनाओं का अफसरों के पांच समूह परीक्षण कर रहे हैं। ऊर्जा एवं अधोसंरचना समूह में एसीएस, एम. गोपाल रेड्डी को समन्वयक, सामाजिक क्षेत्र समूह में एसीएस मनोज श्रीवास्तव, कृषि एवं सहयोगी क्षेत्र समूह में एसीएस इकबाल सिंह बैस, शिक्षा एवं स्वास्थ्य समूह में एसीएस केके सिंह को और अतिरिक्त राजस्व उपार्जन समूह में एसीएस वित्त अनुराग जैन को समन्वयक बनाया गया है। ये समूह अलग-अलग बैठकें कर योजनाओं की समीक्षा कर चुके हैं। कृषि एवं सहयोगी क्षेत्र समूह में शामिल अफसरों ने बैठक कर विभागीय योजनाओं का परीक्षण किया।
इन योजनाओं पर खतरा
ऐसी योजनाएं जिनके संचालन में केंद्र और राज्य सरकार के फंडिंग का रेशो क्रमश: 60:40 प्रतिशत है।
वर्षों से चल रही अनुपयोगी हो चुकी योजनाएं।
योजनाएं जिनसे न के बराबर लोगों को लाख पहुंच रहा है और सरकार को उन पर राशि खर्च करना पड़ रही है।
योजनाएं जो केंद्र सरकार ने 15 या 20 साल पहले चालू की थीं और वैधता पूरी होने के बाद राज्य सरकार उनके संचालन पर पैसे खर्च कर रही है।
सरकार के पास योजनाओं के लिए पैसा ही नहीं
बताया जाता है कि अधिकारियों की हुई अलग-अलग बैठकों में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई कि जिन योजनाओं को आगे जारी रखना है, उसके लिए राशि की व्यवस्था कहां से होगी। वर्ष 2020-21 मध्यप्रदेश के लिए और मुश्किल भरा होने वाला है, क्योंकि विकास कार्यों के लिए बमुश्किल 20 से 22 हजार करोड़ रुपए बचेंगे। जबकि 19-20 में यह राशि लगभग चौतीस हजार करोड़ रुपए थी। केंद्र सरकार द्वारा 14 हजार करोड़ रुपए की कटौती किए जाने के कारण यह स्थिति बनी है। एक अप्रैल से अधिकारियों कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति शुरू हो जाएगी, उसके लिए अतिरिक्त राशि की भी व्यवस्था करना पड़ेगी।



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