गाय के गोबर से बन रही धूपबत्ती और हवनकंडी, हर माह हो रही 50 हजार की कमाई विदेशों में भी पहुची


गाय के गोबर से बन रही धूपबत्ती और हवनकंडी, हर माह हो रही 50 हजार की कमाई विदेशों में भी पहुची







ग्वालियर / शहर में डेयरियों से निकलने वाला गोबर नगर निगम के लिए सिरदर्द बना हुआ है क्योंकि इसका उपयोग लोगों को नहीं पता है। इस गोबर को लोग नालियों में बहाते हैं, जिससे सीवर लाइनें चोक होती हैं। लेकिन सराफा बाजार जैसे व्यस्त क्षेत्र में बनी दो गायों की छोटी सी गोशाला से गोबर का जरा भी कचरा बाहर नहीं जाता है।

इस गोबर में जड़ी बूटियों को मिलाकर धूपबत्ती और हवनकंडी बनाई जाती है। बाजार में इसकी कीमत 875 रुपए प्रतिकिलो है, इससे हर माह लगभग 50 हजार रुपए की कमाई हो रही है। सराफा बाजार स्थित हवेली श्रीनाथ में बनी यह धूपबत्ती, राजस्थान, सहित दुबई, अमेरिका और नाइजीरिया तक में पहुंच चुकी है।

सराफा बाजार में लगभग 200 साल पुरानी हवेली श्रीनाथ में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है। इस मंदिर में शुरू से ही गाय को पालने की परंपरा रही है। वर्तमान में यहां पर ब्रजेश नागर गायों की सेवा कर रहे हैं। यहां पर दो गाय है, जिसमें एक गिर दूसरी मारवाड़ी प्रजाति की देशी गाय हैं। प्रतिदिन 5 से 7 किलो गोबर निकलता है। इस गोबर में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां मिलाकर धूपबत्ती और हवन कंडी बनाई जाती है। जिसे पैकेजिंग कर मार्केट में चुनिंदा दुकानों पर बिकने के लिए भेज दिया जाता है। बाजार में पहुंचने पर गोबर से बनी धूपबत्ती और हवनकंडी की कीमत 875 रुपए प्रतिकिलो हो जाती है।

50 हजार के करीब होती है माह की कमाई:-

ब्रजेश नागर ने बताया कि प्रतिमाह उनके करीब 400 से 450 बड़े पैकेट धूपबत्ती के बिक जाते हैं जबकि छोटे पैकेट 1000 के करीब बिकते हैं। बड़े पैकेट की बाजार में कीमत 70 रुपए है। जबकि छोटे पैकेट की कीमत 20 रुपए की है। बड़े पैकेट में 80 ग्राम धूपबत्ती निकलती हैं।

जलाने पर होता है यज्ञ का अहसास:-

इस धूपबत्ती का उपयोग लोग सबसे अधिक पूजा में करते हैं। गोबर के साथ मिलाई गई जड़ी बूटियों के कारण इसमें से सुगंध आती है। यह सुगंध ऐसी है जैसे घर में शुद्व देशी गाय के घी एवं हवन सामग्री से यज्ञ किया गया हो।

बांस जलाना हिंदू संस्कृति के खिलाफ:-

बांस जलाना हिंदू संस्कृति के खिलाफ माना जाता है। माना जाता है कि बांस जलाने पर अत्याधिक मात्रा में जहरीली गैसें निकलती हैं। इस कारण बांस का उपयोग हिंदू संस्कृति में अंतिम क्रिया तक में नहीं किया जाता है। लेकिन अगरबत्ती की डंडी बांस की होती है इसके कारण अगरबत्ती को पूजा के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। साथ ही इसमें रसायनिक सुगंध का उपयोग भी किया जाता है जो कि पूर्णरूप से वर्जित है।

इनका कहना है:-

गाय के गोबर से मैंने धूपबत्ती एवं हवनकंडी बनाने का कार्य वर्ष 2015-16 में प्रारंभ किया था। वर्तमान में मेरी धूपबत्ती ग्वालियर समेत राजस्थान में बिक रही है। राजस्थान में यह कोटा, बूंदी, सवाई माधौपुर में बिकती है। जबकि विदेश में रहने वाले परिचितों ने इसे अमेरिका, नाइजीरिया एवं दुबई तक में मंगवाया है। वहां से भी अक्सर जब कोई आता है तो उनके लिए पहले ही 100 से 200 पैकेट तैयार करके रखते हैं।

-ब्रजेश नागर धूपबत्ती एवं हवनकंडी उत्पादक-




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