देश प्रेम, सेना प्रेम लोगों के लिए सिर्फ दिखावा है

देश प्रेम, सेना प्रेम लोगों के लिए सिर्फ दिखावा है


जनता को भ्रमित करके उल्लू सीधा करने का एकमात्र साधन है





हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी भारत - पाकिस्तान सीमा पर गुलमर्ग के पास गस्त करते हुए बर्फ में फिसल गए, आज उनको गुम हुए लगभग एक महिना हो गया है। 


सियाचिन में माइनस 26 डिग्री में तैनात भारतीय जवान की मौत हो गई, उत्तराखंड निवासी जवान रमेश बहुगुणा सियाचिन सेक्टर में तैनात थे, स्वर्गीय बहुगुणा के परिवार का कहना है कि उनकी मृत्यु ऑक्सीजन की कमी और अत्यधिक ठण्ड लगने के कारण हुई है। ठण्ड से बचने के लिए उपयुक्त कपडे और ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था क्यों नहीं थी ।



ये दोनो दुर्घटनाएं कुछ लोगों के लिए सिर्फ राजनीति करने का माध्यम और बाकियों के लिए सिर्फ एक अखबार के कोने में छुपी हुई खबर है । 


मेरे लिए ये दोनों घटनाएं मेरी उस मान्यता को सिद्ध करती हैं कि देश प्रेम, सेना प्रेम अधिकतर लोगों के लिए सिर्फ दिखावा है, मूर्ख, धर्मभीरु, जज़्बाती, जनता को भ्रमित करके अपना उल्लू सीधा करने का एक साधन मात्र है। 


जब कोई सैनिक शहीद होता है (खासकर चुनाव के मौसम में) तो पूरा शहर, अलग अलग दलों के नेता और समाज के प्रतिष्ठित लोग शहीद के घर जाते हैं बड़े देश प्रेम के नारे, शहीद की शहादत को अमर रखने के वायदे किये जाते हैं, और ठीक उसके दो महीने बाद उस शहीद की  विधवा, या बूढ़े माँ - बाप पेंसन - बच्चों के एड्मिसन के लिए धक्के  खा रहे होते हैं, सरकारी दफ्तर का घूसखोर बाबू उनको  ऐसे देखता है कि खा जायेगा।  शहीद के पडोसी, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले अपने अपने ढंग से उसका फायदा उठाने का  प्रयास करते हैं और नारे लगाने वाले  कभी पूछने भी नहीं जाते कि परिवार का क्या हाल है। 
ऊपर लिखी दोनों घटनाओं में फ़िल्मी हीरोइन की शादी में ठुमके लगाने, क्रिकेटर की ऊँगली पर चोट लगने पर ट्वीट करने वाले से लेकर कड़ी निंदा वाले, कनाडा निवासी भारतभक्त, हमारे मोहल्ले पड़ोस के नेता - मंत्री संत्री सब के मुँह में दही जम गया है।

आखिर ऐसा क्यों

क्यों पायलट अभिनन्दन के लिए ट्रम्प को मध्यस्त बनाने वाली सरकार हवलदार राजेंद्र सिंह नेगी के मामले में मौन हैं।अगर मैं कह दूँ कि कल दिल्ली का वोट का बटन इतनी जोर से दबाइये कि उसका करंट हर उस व्यक्ति की आत्मा को झंझोर दे जो सेना के  नाम पर बड़े बड़े वायदे करके सत्ता के शीर्ष पर पहुँचते हैं, देश के हर छोटे - बड़े कस्बे में  पार्टी कार्यालय खुल जाते हैं पर सियाचिन में तैनात सैनिक के लिए गर्म जैकेट नहीं  खरीद पाते हैं।  तो कुछ लोग बुरा मान जाएंगे।