अमृतसर का महात्मा विद्यालय

अमृतसर का महात्मा विद्यालय


यहां दानवीरों के पैसों से पढ़ाई कर रहे 350 बच्चे, स्कूल के पासआउट स्टूडेंट्स ही बनते हैं टीचर


अमृतसर / कॉलेज और यूनिवर्सिटियों के दौर में अमृतसर में एक ऐसा भी स्कूल है, जहां हकीकत में जाति-धर्म से ऊपर उठकर बच्चों को गुरुकुल परंपरा से शिक्षा दी जाती है। महात्मा के नाम से जाने जाने वाले इस स्कूल को कोई सरकारी ग्रांट मिलती है। बस दान के पैसे से आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को शिक्षा, सेवा, समर्पण, नैतिकता राष्ट्रीयता और मानव, जीव सेवा, पर्यावरण संभाल तथा स्वच्छता की पढ़ाई की जाती है।


यहां से निकलने वाले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, प्रिंसिपल, लेक्चरर और अन्य सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थानों में सेवाएं दे रहे हैं। इसकी खूबसूरत बात ये है कि यहां के कई बच्चे पासआउट होने के बाद यहीं पढ़ाने लगते हैं जिन्हें वेतन भी दिया जाता है। स्कूल लड़कियों की पढ़ाई और शादी ब्याह में भी मदद करता है।


सिलाई मशीन, कपड़े, बर्तन देकर शादी में मददगार बनता है स्कूल


1963-64 में गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा देने का सिलसिला शुरू हुआ था। बच्चों को दोनों वक्त का खाना, ड्रेस, स्टेशनरी, इलाज सभी फ्री दी जाती है और जरूरत पड़ने पर परिवार की भी मदद की जाती है। यहां पर पढ़ी लड़कियों की शादी में स्कूल प्रबंधन की ओर से सिलाई मशीन, कपड़े, बर्तन अन्य जरूरत के सामान भी दिए जाते हैं।


स्कूल में 180 लड़कियां भी हासिल कर रहीं शिक्षा


स्कूल श्री विनायक नि:शुल्क पाठशाला, जिसे महात्मा का स्कूल के नाम से जाना जाता है। स्कूल की संचालिका स्वामी माधवानंद पुरी ने बताया कि यहां कुल 17 टीचर हैं और उसमें से 10 यहीं के पढ़े हैं। बच्चों की बात करें तो इनकी संख्या 350 है जिसमें से 180 लड़कियां हैं। नर्सरी से 8वीं तक के इस स्कूल में परंपरागत से लेकर आधुनिक दौर की पढ़ाई करवाई जाती है।


राइट टू एजूकेशन की कसौटी पर खरा स्कूल


स्कूल में राइट टू एजूकेशन का पालन शत-प्रतिशत होता है। यहां परिवारों के बच्चे और बच्चियां शिक्षा ग्रहण करते हैं जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं। यहां पढ़ने वाले बच्चों में हिंदू, सिख, मुस्लिम और इसाई सभी धर्मों के बच्चे शामिल हैं। सुबह प्रार्थना से लेकर शाम को पढ़ाई खत्म होने के बीच बच्चों को आरती, शबद गायन, देशभक्ति और अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है।