अब बताना होगा- कितने छात्र 80% नंबर लाएंगे

अब बताना होगा- कितने छात्र 80% नंबर लाएंगे


स्कूल शिक्षा विभाग 1.5 लाख से ज्यादा शिक्षकों से फॉर्म भरवा रहा है


भोपाल / प्रदेश के सरकारी प्राइमरी एवं मिडिल स्कूलों के 1.5 लाख से ज्यादा शिक्षकों के सामने एक नई मुसीबत आ गई है। विभाग इनसे प्रमाण पत्र भरवाकर बाकायदा लिखित में यह गारंटी ले रहा है कि सालाना परीक्षा में उनके स्कूल में कितने विद्यार्थी 80 फीसदी नंबर लाएंगे। इसके लिए इन स्कूलों के हेडमास्टरों एवं शिक्षकों को प्रमाण पत्र दे दिए गए हैं। 15 फरवरी तक उन्हें यह भरकर देना है।


5वीं से लेकर 12वीं कक्षा तक की परीक्षा का रिजल्ट सुधारने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग इस बार कई प्रयोग कर रहा है। यह भी इसी का एक हिस्सा है। इसके लिए विभाग ने जिला एवं राज्यस्तर पर बैठक बुलाकर शिक्षकों से लेकर जिला शिक्षा अधिकारियों तक को इसका खाका तक बता दिया था। पिछले हफ्ते स्कूलों में प्रधानाध्यापकों एवं शिक्षकों को फॉर्म भरने को दिए गए। इसे देखकर वे चौंक गए, इसमें यह साफ लिखा है कि यदि 80 फीसदी से कम परीक्षा परिणाम रहता है तो उसके तीन कारण बताना होंगे।


राज्य शिक्षा केंद्र के दायरे में प्रदेशभर के 98 हजार से ज्यादा प्राइमरी एवं मिडिल स्कूल आते हैं। तय प्रावधान के अनुसार हर प्राइमरी स्कूल में पांचवी कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक होना जरूरी है। हर मिडिल स्कूल में कक्षा आठवीं के लिए 2 या 3 शिक्षक का होना आवश्यक है। इस तरह इन 98 हजार स्कूलों में 1.5 लाख से ज्यादा शिक्षक हैं।


गुस्साए शिक्षक-अध्यापक संगठन बोले- परीक्षा के वक्त ऐसा बंधन रखना गलत
इस मामले को लेकर मप्र शिक्षक कांग्रेस के संरक्षक रामनरेश त्रिपाठी, प्रांताध्यक्ष निर्मल अग्रवाल, जिलाध्यक्ष सुभाष सक्सेना, महामंत्री अलका शर्मा ने कहा कि यह तरीका उचित नहीं है। एक तरफ तो शिक्षकों को साल भर ट्रेनिंग और मीटिंग में व्यस्त रखा। परीक्षा के ऐन मौके पर यह बंधन रखा जा रहा है। स्कूल शिक्षा मंत्री एवं प्रमुख सचिव से मिलकर शिकायत दर्ज कराएंगे। शासकीय अध्यापक संगठन के संयोजक उपेंद्र कौशल एवं जितेंद्र शाक्य, आजाद अध्यापक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष शिवराज वर्मा का कहना है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों से भेदभाव किया जा रहा है। प्राइवेट स्कूलों एवं उनके शिक्षकों को इस दायरे में क्यों नहीं ला रहे।


यह कोई बंधन नहीं है। राज्य स्तर से ऐसे कोई सख्त निर्देश नहीं हैं, लेकिन शिक्षा के अधिकार कानून के तहत शिक्षकों से यह जानकारी मांगी जा रही है। वजह यह है कि आरटीई के प्रावधान के तहत सालाना परीक्षा के नतीजे आने के दो महीने बाद 5वीं-8वीं कक्षा में कम अंक लाने वाले बच्चों की दोबारा परीक्षा लेनी पड़ेगी। ऐसे विद्यार्थयों की संख्या का अनुमान पहले से लगाया जा सके, इसलिए यह जानकारी मांगी गई है।


केपीएस तोमर, डिप्टी डायरेक्टर, परीक्षा प्रभारी, राज्य शिक्षा केंद्र