सटीक भविष्यवाणी के लिए सेकंड के 32 लाख 40 हजार वें भाग तक की गणना जरूरी





 

 भोपाल / कल्पना चावला का विमान ध्वनि से भी 18 गुना अधिक गति से चल रहा था, लेकिन वे हादसा का शिकार हो गईं, क्योंकि वैज्ञानिक भी काल की गणना ठीक से नहीं कर पाए, इसलिए ज्योतिष के लिए काल की गणना सेकंड के 32 लाख 40 हजार वें भाग से होती है। सूक्ष्म काल की गणना से ही सटीक भविष्यवाणी संभव है। अन्यथा यह कोरी घोषणा रहती हैं। यह बात सोमवार को राजभवन में आयोजित अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सभा में आचार्यों, विद्वानों और धर्माचार्यों ने शास्त्रार्थ के दौरान कही। संस्कृत में आयोजित इस शास्त्रार्थ में देशभर से आए विद्वानों ने ज्योतिष, व्याकरण, न्याय और साहित्य को लेकर होने वाले विवाद पर चर्चा की। बाद में पीठाध्यक्षों ने इस पर अपने मत रखे। इससे पहले कार्यक्रम का उद्घाटन राज्यपाल लालजी टंडन ने किया। उन्होंने शास्त्रार्थ के माध्यम से इनके वैज्ञानिक, न्यायिक, आपसी सहमति और भारतीय संस्कृति के अनुरूप हल करने की दिशा में उठाया गया कदम है। इस कार्यक्रम के संयोजक महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विवि उज्जैन के कुलपति डॉ. पंकज लक्ष्मण जानी थे।

राजभवन में अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सभा में व्याकरण, ज्योतिष, न्याय और साहित्य पर हुआ मंथन

चार विषयों पर पहले संस्कृत में हुआ धर्माचार्यों के बीच शास्त्रार्थ फिर पीठाध्यक्षों ने बताया निष्कर्ष

ज्योतिष शास्त्र

पीठाध्यक्ष प्रो.हंसधर झा (आचार्य, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान भोपाल)

डॉ.उपेंद्र भार्गव, डॉ. शुभम शर्मा, डॉ. केके भार्गव, डॉ. निगम पांडेय, डॉ. विजय शर्मा।

सेकंड का 32 लाख 40 हजार वां भाग त्रुटि काल है। ऐसे में काल की गणना सही से नहीं होने के कारण सटीक भविष्यवाणी संभव नहीं है। यही परमाणु काल कहलाता है। सूर्य सिद्धांत ग्रह में इसी का उल्लेख है। उसी के आधार पर पृथ्वी की आयु 4 अरब 32 करोड़ वर्ष है। इसी सूक्ष्म गणना के कारण 2012 में दुनिया के अंत जैसे भविष्यवाणी गलत रहीं।

व्याकरण शास्त्र

पीठाध्यक्ष प्रो.आजाद मिश्रा (पूर्व प्राचार्य, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान भोपाल)

प्रो.रामसलाही द्विवेदी, डॉ. ब्रजभूषण ओझा, डॉ. अखिलेश द्विवेदी और डॉ.संकल्प मिश्रा।

व्याकरण में शब्द कभी मिटता नहीं है। एक बार निकले शब्द दोबारा न तो वापस आते हैं और न ही खत्म होते हैं। पीठाध्याक्ष ने वाद-विवाद के बाद बताया कि शब्द हमेशा रहने वाले हैं। यह विचार-विमार्श से बनते हैं। यह जीव है, जो हमेशा रहेंगे। वर्तमान में हम इसे टीवी और अन्य माध्यम से सुन सकते हैं। यही पूरे विश्व में फैलते हैं।

न्याय शास्त्र

पीठाध्यक्ष प्रो.राजाराम शुक्ल (कुलपति संपूर्णानंद संस्कृत विवि वाराणसी)

डॉ. संदीप शर्मा, जे सूर्यनारायण, जे निवास, अतमि शर्मा।

पीठाध्याक्ष ने बताया कि अणु क्या है? यह मिट सकता है। क्या अणु का अस्तित्व बिना देखे, बिना सुना और महसूस किए बिना भी हो सकता है। क्या परमाणु के बाद भी अणु हैं तो जवाब है परमाणु अणु का सबसे सूक्ष्म अंश है। परमाणु के बाद कुछ नहीं है। चीजों को देखकर उसकी कल्पना ही परमाणु है। परमाणु ही अणु का अंत है।

अन्यथा... की गई कोई भी भविष्यवाणी कोरी घोषणा से ज्यादा कुछ नहीं होती

आचार्यों, विद्वानों और धर्माचार्यों का शास्त्रार्थ।

साहित्य शास्त्र

पीठाध्यक्ष प्रो. बालकृष्ण शर्मा (कुलपति विक्रम विवि उज्जैन)

विरूपाक्ष जड्‌डीपाल, डॉ. तुलसीदास परौहा, प्रो. मनमोहन, पूजा उपाध्याय, पंकज रावल।

काव्य सिर्फ शब्द हैं या फिर अर्थ ही काव्य है। पीठाध्याक्ष प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने बताया कि चर्चा में निकलकर आया कि काव्य अर्थ है। ऐसे शब्द जिनको सुनने के बाद रमणीयता और रस आए। उनका कुछ अर्थ हो। अलंकार के बिना काव्य नहीं बनते। प्रत्येक पढ़ी और सुने जाने वाले शब्द और वाक्य काव्य नहीं हो सकते।




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