पूर्वाेत्तर में खोह का उपयोग घरेलू काम और सामान लाने में होता है





 

भोपाल / इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में जनवरी-2020 के माह के प्रादर्श के रूप में खोह (खासी जनजाति की एक पारंपरिक टोकरी) को प्रदर्शित किया गया। इस प्रादर्श का चयन और संयोजन सहायक कीपर डॉ. पी. शंकर राव ने किया है।

प्रादर्श के बारे में डॉ. राव ने बताया पूर्वोत्तर क्षेत्र दुनिया में सर्वाधिक आर्द्र स्थलों का केंद्र है। प्रादर्श खोह ईस्ट खासी हिल्स क्षेत्र में ढुलाई की एक पारंपरिक टोकरी है। खासी जनजाति की भौतिक संस्कृति में बांस निर्मित ढुलाई की टोकरियों की आकर्षक विविधता देखने को मिलती है, खोह इसी का एक नमूना है, जिसे इस क्षेत्र में महिला और पुरुष दोनों के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।

मेघालय में सामान्यतः और विशेषरूप से ईस्ट खासी हिल के खासी लोगों के लिए बांस एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। इस विशिष्ट टोकरी का उपयोग जलाऊ लकड़ी, अदरक, हल्दी जैसे कृषि उत्पादों, उपकरणों और औजारों, धोने के लिए बर्तन, पेयजल संग्रह, रेत, ईट, बीज आदि लाने-ले जाने के लिए किया जाता है। इस पूरी टोकरी की बुनाई बांस से की जाती है, जिसे घरेलू कामकाज व बाजार से सामान लाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। उद्घाटन अवसर पर संग्रहालय के निदेशक प्रो. सरित कुमार चैधुरी, टैगोर नेशनल फैलो के प्रो. केके बासा सहित संग्रहालय के कार्यालय अध्यक्ष डीएस राव व यहां अधिकारी-कर्मचारी मौजूद रहे।