जर्जर हालात में हैं 400 साल पुराने टोंकड़ा के कलात्मक मकबरे



अजमेर / किशनगढ़ से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित ऐेतिहासिक महत्व के टोंकड़ा के कलात्मक मकबरे इन दिनों बेकद्री का शिकार हो रहे हैं। कई मकबरे जर्जर हो चुके हैं, जगह-जगह से टूटे होने के साथ उनपर बनी गुम्बजें भी टूट चुकी हैं। सड़कें क्षतिग्रस्त हैं, और लाइटें बंद पड़ी हैं। करबला की हालात भी बदतर होती जा रही है। मकबरे करीब चार सौ साल पुराने बताए जाते हैं। इतिहास में टोंकड़ा का लक्खी बंजारा से इसका जुड़ाव बताया जाता था।


देखकर कह नहीं सकते 1 करोड़ की लागत से हुआ है रिनोवेशन


टोकड़ा के मकबरे और करबला के हालात खराब हैं। कई मकबरे तो ऐसे हैं जिनका आधा हिस्सा तक टूट चुका है। कंटीली झाड़ियां उग रही हैं, दीवारें क्षतिग्रस्त हैं। दरवाजे टूट चुके हैं, और देखने पर यह नहीं कहा जा सकता कि इन मकबरों के रिनोवेशन पर सरकार के एक करोड़ खर्च हुए हैं। जबकि वर्ष 2015 में पर्यटन विभाग ने इन मकबरों की रिनोवेशन पर एक करोड़ खर्च किए थे। मरम्मत व रंगरोगन करवाया गया था। सड़कें बनाई गईं और लाइट की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी, लेकिन देखरेख के अभाव में तीन साल में ही मकबरे जर्जर हो गए।


कई देशों में यहां से भेजा जाता था लदान | गांव के बुजुर्ग इन मकबरों को करीब 400 वर्ष पुराने बताते हैं। टोंकड़ा पूर्व में टोंकड़ा गढ़ के नाम से भी जाना जाता था। इसमें करीब 150 कमरों की हवेली थी, यह हवेली लदान कारोबारी लक्खी बंजारा की थी। एक लाख बैलाें का मालिक होने के कारण इसे लक्खी के नाम से जाना जाता था। इन बैलों पर लदान करके अफगानिस्तान, इस्लामाबाद, करांची, हैदराबाद, पंजाब, सिंध, कच्छ सहित अन्य दूर दराज क्षेत्रों में लाया जाता था।


ग्रामीण बोले - किस काम में खर्च हुए 1 करोड़, जांच की जानी चाहिए | मकबरों पर एक करोड़ कहां व कैसे खर्च किए गए हैं, इसे लेकर ग्रामीणों को संशय है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने पिछले वर्षों में रंग-रोगन व मरम्मत कराई मगर यह काम ज्यादा दिनों तक टिका नहीं, मकबरे वापस पहले जैसी हालात में आ गए। ग्रामीणों का कहना है कि जांच करानी चाहिए कि रिनोवेशन में रुपए कहां खर्च किए गए। देखने पर 5 से 10 लाख रुपए से ज्यादा खर्च नहीं होना प्रतीत होता है।



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