16 स्त्री और शिशु रोग विशेषज्ञ लेकिन ड्यूटी पर रहता है सिर्फ एक डॉक्टर

, हर महीने 10 नवजातों की मौत





दतिया / मेडिकल कॉलेज की सुविधाएं मिलने के बाद भी जिला अस्पताल में हर महीने औसतन 10 नवजात बच्चों की मौत हो रही है। कारण, अस्पताल में प्रसूता हो या फिर नवजात शिशु, उसे समय पर इलाज नहीं मिल पाता। यूं ताे जिला अस्पताल में (मेडिकल काॅलेज सहित) 16 स्त्री अाैर शिशु राेग विशेषज्ञ पदस्थ हैं लेकिन इनमें से एक शिफ्ट में सिर्फ एक ही डॉक्टर ड्यूटी पर रहता है। उसी पर डिलीवरी कराने, डिस्चार्ज, राउंड लेने सहित अन्य कार्यों का जिम्मा रहता है।

ऐसे में गर्भवती महिलाअाें अाैर नवजातों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। यहीं कारण है कि आए दिन अस्पताल में डॉक्टरों पर लापरवाही करने अाैर मरीज को नहीं देखने के आरोप लगते हैं अाैर हंगामा भी हो जाता है।

जिला अस्पताल की मेटरनिटी विंग 60 बिस्तर की है। इसमें 2 वार्मर, 10 हीटर अाैर 8 लेबर टेबल हैं, यानि एक वक्त में 8 प्रसव एक साथ कराए जा सकते हैं। इसके अलावा 3 पल्स ओक्सीमीटर, 1 कार्डियक मॉनीटर, 2 ऑपरेशन थिएटर, एकलेसिया रूम, शिफ्टेड डिलीवरी रूम, एक पोस्ट ऑपरेटिव रूम, पोस्ट वार्ड रूम की सुविधा मेटरनिटी में है। यहां एक महीने में औसतन 400 प्रसव होते हैं। इनमें से हर महीने औसतन 50 प्रसव 108 एंबुलेंस, जननी एक्सप्रेस या निजी वाहनों में हो जाते हैं। 50 ऑपरेशन हर महीने में होते हैं। प्रसव के बाद अाैसतन 100 बच्चे किसी बीमारी के चलते हर महीने अस्पताल में भर्ती कराए जाते हैं। इनमें अाैसतन 10 नवजात बच्चों की माैत हाे जाती है। साथ ही 10 मरीज हर महीने रैफर कर दिए जाते हैं।

आए दिन अस्पताल के बाहर हो जाते हैं प्रसव

जिला अस्पताल के गेट पर या फिर 108 व जननी एक्सप्रेस में आए दिन प्रसव हो जाते हैं। इसका कारण मेटरनिटी वार्ड में एक ही डॉक्टर होना ही है क्योंकि एक डॉक्टर पर इतना काम होता है कि वह मरीज को तत्काल समय नहीं दे पाता। मरीज के सहायक जब तक भर्ती प्रक्रिया पूरी करते हैं, प्रसव हो जाता है।

जिला अस्पताल छोटी-छोटी व्यवस्थाओं पर भी ध्यान नहीं

 

यहां मरीजों ने बताया कि सुबह और शाम के वक्त ही डॉक्टर राउंड पर आते हैं। रात में एक बार भी डॉक्टर नहीं आते। नर्सें दिन में भी कई बार बुलाने के बाद बमुश्किल एक बार आती हैं। अगर आ गईं तो व्यवहार अच्छे से नहीं करतीं। मेटरनिटी में गर्म पानी के लिए गीजर लगा है लेकिन वह अक्सर बंद रहता है। प्रसूताओं के गर्म पानी उनके परिजन घर से लेकर आ रहे हैं। मरीजों का कहना है कि उनसे स्टाफ ठीक से बात तक नहीं करता।

मेटरनिटी में अपने बच्चे के साथ भर्ती इंदरगढ़ निवासी आरती जाटव।

नर्सों का बर्ताव ठीक नहीं रहता, गंदगी से परेशान हैं

रात में कोई भी डॉक्टर देखने तक नहीं आता

डॉक्टरों की कमी नहीं, फिर भी एक ही डॉक्टर की ड्यूटी

जिला अस्पताल व मेडिकल काॅलेज के मिलाकर कुल 16 स्त्री राेग अाैर बाल राेग विशेषज्ञ हैं। इनमें बाल एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. पीके शर्मा (सीएमएचअाे), डॉ. प्रदीप उपाध्याय, डॉ. डीके गुप्ता (सिविल सर्जन), पीजीएमओ डॉ. जगराम मांझी, डॉ. रचना वर्मा, डॉ. पंकज ज्ञानानी, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मधुबाला, डॉ. अजय सिंह, डॉ. एसएस तोमर, मेडिकल कॉलेज से बाल-शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. पुनीत अग्रवाल, डॉ. अजमेरिया, डॉ. राजेश गुप्ता, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. अमृता शर्मा, डॉ. निधि अग्रवाल, डॉ. कीर्ति नरवरिया और डॉ. मनु अग्रवाल शामिल हैं। इनकी ड्यूटी रोस्टर से मेटरनिटी में लगाई जाती है, एक शिफ्ट में एक ही डॉक्टर ड्यूटी पर रहता है।

बच्चाें की माैत निमाेनिया और खून की कमी से हुईं




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