जेकेलाेन अस्पताल में दाे दिन में 10 नवजात की माैत के बाद भास्कर की बड़ी पड़ताल
अस्पताल प्रशासन का बेतुका तर्क-15 हजार डिलीवरी पर इतने मासूमों की मौत सामान्य बात
कोटा / यूं तो एक नवजात बच्चे की मौत ही पूरे सिस्टम पर कलंक है.. लेकिन जेकेलोन अस्पताल के मामले में यह सब मायने नहीं रखता। शायद यही वजह है कि बीते 3 साल में इस अस्पताल में 2376 नवजात बच्चे अकाल मौत का शिकार हो गए। अस्पताल में डिलीवरी होने के बावजूद इन बच्चों को नहीं बचाया जा सका। नवजात श्रेणी में 0 से 28 दिन वाले बच्चे होते हैं। इतनी बड़ी संख्या में बच्चे जीवन का 29वां दिन भी नहीं देख पाए। यानी जेकेलाेन में राेज लगभग 2 नवजात बच्चाें की माैत हाे जाती है है। अब पूरा सिस्टम यह तर्क देकर बच सकता है कि अस्पताल में हर साल 15 हजार डिलीवरी होती है, ऐसे में इतने बच्चों की मौत सामान्य है।
वास्तविकता यह है कि इसमें कई बच्चे संक्रमण से मर रहे हैं, जो किसी और की नहीं, बल्कि अस्पताल की ही देन है। तीन साल की अवधि में 428 नवजात विभिन्न तरह के संक्रमण से मौत का शिकार हुए। जाहिर है, 0 से 28 दिन का बच्चा खुद तो कहीं बाहर जा नहीं सकता, ऐसे में उसे अस्पताल से ही कोई इंफेक्शन मिला और वही जानलेवा साबित हो गया। संक्रमण की सबसे बड़ी फैक्ट्री है अस्पताल के नियोनेटल आईसीयू। जहां एक-एक बेड पर 2 से 3 बच्चे रहतेे हैं।
जेकेलोन में पूरे संभाग और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती जिलों से भी बच्चे आते हैं। ्रिटिकल बच्चे भी यहीं रैफर होते हैं। इसके बावजूद हमारे डॉक्टरों की बदौलत हर साल डेथ का आंकड़ा कम हो रहा है। सुविधाएं भी बेहतर हो रही हैं। एनआरएचएम रैंकिंग में हमारा आईसीयू एसएमएस से भी बेहतर है। - डॉ. अमृत लाल बैरवा, एचओडी, शिशु रोग विभाग
नॉलेज- 8 साल में 1.11 करोड़ बच्चे नहीं मना पाए अपना 5वां जन्मदिन
वर्ष 2008 से 2015 के बीच भारत में 1.11 करोड़ बच्चे अपना पांचवां जन्मदिन नहीं मना पाए। इनमें से 62.40 लाख बच्चे जन्म के पहले महीने (जन्म के 28 दिन के भीतर) में ही दुनिया छोड़कर चले गए, यानी बच्चों की कुल मौतों में से 56% बच्चों की मौत नवजात अवस्था में ही हो गई। वर्ष 2015 में हर घंटे 74 नवजात शिशुओं का दिल काम करना बंद कर रहा था, जबकि 2008 से 2015 के बीच हर घंटे औसतन 89 नवजात शिशुओं की मृत्यु होती रही है। ये जानकारी भारत सरकार के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे से मिली है।
घट रही है नवजात बच्चों की मृत्यु दर
2006 में नवजात मृत्यु दर प्रति हजार 57 थी, जो 2017 में घटकर 33 प्रति हजार हो गई यानी 11 साल में 42% की कमी आई है, लेकिन अब भी देश में नवजात मृत्यु दर वैश्विक स्तर से ज्यादा है। वैश्विक नवजात मृत्यु दर 29.4% है, जबकि देश में 33 है।
एक्सपर्ट व्यू- एनआईसीयू की बेहतर केयर से ही बचा सकते हैं नवजाताें की जान
नवजात शिशुओं की केयर व संक्रमण की रोकथाम पर नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. महेंद्र गुप्ता ने बताया कि भारत में 31 फीसदी नवजाताें की माैत संक्रमण से होती है, यह मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
कारण : जन्म के 72 घंटे में नवजात को मां से ही संक्रमण होता है। जन्म के 72 घंटे के बाद छूने से, इंजेक्शन/ड्रिप लगाने के दौरान या दूषित हवा से इंफेक्शन होता है।
लक्षण : सांस का तेज चलना, कराहना, सुस्त होना, उल्टी करना, पेट फूलना, तापमान अनियंत्रित होना, दूध नहीं पीना, चिड़चिड़ापन आदि प्रमुख लक्षण हैं।
बचाव : एनआईसीयू में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित हो, हाथ अच्छे से साफ करके ही कोई अंदर जाए, चप्पल बदलकर व मास्क पहनकर एंट्री करें, सेंट्रल ऑक्सीजन लाइन हो।
लाइव रिपोर्ट एनआईसीयू में इंफेक्शन के लिए चौबीसाें घंटे खुले हैं दरवाजे
जेकेलोन में आमने-सामने दो विंग में एनआईसीयू है, जहां 12-12 बेड लगे हैं। यहां हमेशा 40 से 50 बच्चे भर्ती रहते हैं। एक बेड पर दो-दो बच्चों वाली स्थिति कमोबेश पूरे साल होती है। डाॅक्टर हाें या नर्सिंग कर्मी वे बिना दस्ताने अाैर मास्क पहने ही नवजात बच्चाें का इलाज करते हैं। अधिकतर स्टाफ अंदर जाने से पहले जूते तक नहीं बदलते। इससे अासानी से बच्चाें में इंफेक्शन हाे जाता है, क्याेंकि इतने छाेटे बच्चाें में इम्यून सिस्टम डवलप नहीं हाेता है। तीमारदार भी धड़ल्ले से अंदर चले जाते हैं। सुबह डॉक्टरों के राउंड के वक्त ही बाहरी लोगों के प्रवेश पर सख्ती होती है। सेंट्रल ऑक्सीजन लाइन नहीं होने से सिलेंडर खींचकर अंदर ले जाए जाते हैं, जिनके साथ इंफेक्शन की एंट्री की भरपूर आशंका रहती है। सेनेटाइजर से हाथ रब करके अंदर जाने की कोई व्यवस्था नहीं है।
2008 से 2015 तक राजस्थान में 5.12 लाख नवजाताें की माैत
उत्तर प्रदेश | 16.84 लाख |
बिहार | 6.64 लाख |
मध्यप्रदेश | 6.18 लाख |
राजस्थान | 5.12 लाख |
आंध्र प्रदेश | 3.35 लाख |
गुजरात | 2.95 लाख |
महाराष्ट्र | 2.92 लाख |
झारखंड | 1.70 लाख |
सर्वाधिक नवजात मृत्यु दर वाले राज्य
मध्यप्रदेश | 47 |
असम | 44 |
अरुणाचल | 42 |
ओडिसा | 41 |
उत्तरप्रदेश | 41 |
मेघालय | 39 |
और इन राज्यों में कम मृत्यु दर
नगालैंड | 7 |
गोवा | 9 |
केरल | 10 |
पुडुचेरी | 11 |
सिक्किम | 12 |
मणिपुर | 12 |
आंखे पूरी खुलने से पहले ही मर गए नौनिहाल
मौत का कारण | 2016 | 2017 | 2018 |
प्री मेच्योर लो बर्थ वेट | 109 | 71 | 128 |
पीलिया | 11 | 6 | 3 |
गंदा पानी फेफड़ों में जाने से | 66 | 56 | 25 |
श्वास संबंधी समस्या से | 139 | 133 | 105 |
दिल की बीमारी | 72 | 68 | 32 |
दौरे आने से | 19 | 9 | 0 |
जन्म के समय दम घुटने से | 226 | 194 | 210 |
जन्मजात निमोनिया | 24 | 22 | 55 |
दिमागी बुखार | 7 | 6 | 4 |
संक्रमण | 170 | 137 | 121 |
अन्य | 58 | 50 | 40 |