; फिर भी 2700 विद्वानों को थमाए नौकरी से बाहर करने के आदेश
अतिथि विद्वानों के बच्चों को बुखार, इन्फेक्शन, न दूध मिल रहा न खाना लेकिन आदेश लेने पर अड़े
फालेन आउट का आदेश हमारे साथ धोखा, चाहे जान ले ले सरकार, लिखित आदेश मिलने तक यहां से नहीं डिगेंगे
भोपाल / यादगारे शाहजहांनी पार्क में धरना दे रहे अतिथि विद्वानों के पंडाल में बुधवार रात उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी पहुंचे तो उन्होंने कंबल और खाना भिजवाने की बात कही, लेकिन अतिथियों ने उनका आग्रह टाल दिया। कड़ाके की ठंड में अपने बच्चों के साथ महज एक टाइम का रुखा-सूखा खाकर धरने पर डटे अतिथि विदवान अब गुस्से में है। उनका कहना है कि उन्हें सरकार से कोई खैरात नहीं चाहिए। उनका नियमितिकरण किया जाए और तब तक यथावत रखा जाए।
अतिथि विद्वानों का कहना है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ जब यथावत रखने की बात कह चुके हैं तो फिर कौना सा पहाड़ टू गया कि उन्हें फालेन आउट (नौकरी से बाहर करने) के आदेश थमाए जा रहे हैं। जिन-जिन कॉलेजों में पीएससी से चयनित उम्मीदवारों की ज्वाइनिंग हो रही है, वहां पर अतिथियों को नौकरी से बाहर किया जा रहा है। अब तक 2700 से ज्यादा अतिथि विदवानों को फालेन आउट दे दिया गया है।
धरना स्थल पर कई महिला अतिथि विद्वान अपने बच्चों के साथ आई हैं। बढ़ती ठंड में बच्चों की तबीयत बिगड़ रही है। न खाने का ठिकाना है न नहाने का लेकिन मध्यप्रदेश के ये उच्च शिक्षित अतिथि विद्वान अब यहां से तब तक जाने तैयार नहीं है, जब तक की सरकार उन्हें लिखित में कोई आदेश न दे दे। रीवा के बिछुआ कॉलेज में अतिथि विद्वान रहीं डॉ. शशिकला पटेल कहती हैं कि कांग्रेस ने वचन पत्र में अतिथि विद्वानों के नियमितीकरण की बात की थी लेकिन ये तो हमें नौकरी से हटा रही है। ये तो सरकार की वादाखिलाफी हैं।
व्यथा की चार तस्वीरें.. शायद इससे सरकार पसीज जाए
ये हमारे प्रदेश के पीएचडी धारी विद्वान-विदुषी हैं। अब तक ये हमारे उच्च शिक्षा की धुरी रहे हैं, लेकिन बीते 17 दिन से इनकी जिंदगी यादगारे शाहजहांनी के इसी पंडाल में सांस ले रही हैं। इनकी जिद है कि जब तक नियमितिकरण के आदेश नहीं होते, यहीं डटे रहेंगे, सरकार के आंगन में.. इसी बदहाली में...
- पांच साल का बेटा स्कूल नहीं जा पा रहा है : सिरोंज कॉलेज में बॉटनी विषय पढ़ाने वाली डॉ. अजरा खान का पांच साल का बेटा रयान केजी-टू में पढ़ता है लेकिन बीते 17 दिनों से धरना स्थल पर मां के साथ हैं। उसे बुखार है। महीने भर से स्कूल नहीं गया है। मां कहती है कि बेटे की फीस नहीं भर पाए हैं। अब सरकार ये नौकरी भी छीन रही है। मैं वापस जाकर क्या जवाब दूंगी सबको। यहां हैं तो अपने जैसों का आसरा है।
- 11 माह की बेटी की आंखों में इन्फेक्शन हो गया : रीना मिश्रा मैहर कॉलेज में बॉयोलॉजी पढाती रही हैं। ग्यारह महीने की बच्ची को साथ लेकर बीते 16 दिन से इसी पंडाल में है। बेटी की आंखों में इन्फेक्शन हो गया है। कहती हैं कि बेटी की हालत देखती हूं तो खुद को जवाब नहीं दे पाती लेकिन क्या करें सरकार तो हमारी जान लेने पर तुली हुई है।
- तलाकशुदा हूं, मां-पिता पहले से ही कष्ट में हैं : डॉ. प्रियंका राय हरदा कॉलेज में हिन्दी पढ़ाती रही हैं। कहती हैं कि मैं तलाकशुदा हूं। पहले से ही मां-बाप कष्ट में हैं। 7 साल के बेटे के साथ मां-बाप के घर में रहती हूं। उम्मीद थी कि नियमितीकरण हो जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा लेकिन लेकिन क्या मुंह लेकर घर जाउंगी। बेटे और मा-बाप को क्या जवाब दूंगी।
- अब तो दूसरी नौकरी पाने की उम्र भी नहीं रही : डॉ. अनुपमा मिश्रा रीवा के जीडीसी कॉलेज में जूलॉजी पढ़ाती रही हैं। कहती हैं कि हम तो तब से नौकरी कर रहे हैं, अब तो दूसरी नौकरी पाने की हमारी उम्र भी नहीं रही। बच्चाें को घर छोड़कर आई हूं लेकिन अपने हक के लिए लडेंगे नहीं तो सरकार हमें कीड़े-मकाेड़े बनाकर छोड़ेगी।
वचन पत्र का वादा सौ फीसदी पूरा करेंगे.. जीतू पटवारी, उच्च शिक्षा मंत्री
प्रश्न- 17 दिन से अतिथि विद्वान धरने पर बैठे हैं, उनकी सुनवाई नहीं हो रही है क्यों?
जवाब- मैं कल भी उनके पास गया था, घंटे भर बैठा उनके साथ। मैं फिर कह रहा हूं कि प्रक्रिया का पालन करना पड़ेगा।
प्रश्न- दिक्कत क्या आ रही है उनकी मांगें मानने में?
जवाब- जब तक पीएससी से चयनित असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है, तब तक हमारी कोशिश है कि हम अतिथि विद्वानों की शैक्षिणिक जानकारी भी पोर्टल पर अपडेट कर लें। इसके लिए हमने उन्हें पर्याप्त समय दिया है। 1500 उम्मीदवारों ने इसमें अपने दस्तावेज अपलोड कर दिए हैं। रेगुलर फैकल्टी की नियुक्ति की प्रक्रिया खत्म होते ही हम इनकी च्वाइस फीलिंग शुरू करा देंगे।
प्रश्न- फिर सरकार की मंशा पर अतिथियों को संशय क्यों है?
जवाब- हमने वचन पत्र में जो कहा था, हमें उसे सौ फीसदी पूरा करेंगे। एक भी अतिथि विद्वान की नौकरी नहीं जाएगी। बीते 4 साल से यूजीसी और रुसा की ग्रांट मिलने में दिक्कत आ रही है, इसलिए रेगुलर पद भरे जाने भी जरूरी है।
प्रश्न- कमलनाथ जी ने कहा था कि यथावत रखेंगे, फिर फालेन आउट क्यों?
जवाब- यथावत का यह मतलब नहीं कि जहां हैं उसी कॉलेज में। हमने पॉलिसी ऐसी बनाई है कि च्वाइस फीलिंग के बाद पहले उस जिले के लीड कॉलेज में, फिर जिले में और फिर संभाग के कॉलेज में नियुक्ति मिलेगी। इसलिए किसी को डरने की जरूरत नहीं है। मैं पहले दिन से कह रहा हूं कि हमने जो वादा किया है, हम उसे पूरा करेंगे।