5G से भी तेज इंटरनेट और मकानों के लिए फाइबर ग्लास के सरिए ये हैं नए इनोवेशन

इंदौर। पेड़ से गिरे फल को देखकर इंग्लैंड के वैज्ञानिक आईजेक न्यूटन ने जो गति का नियम बनाया, बेशक वह भारत में आज भी पढ़ाया जा रहा है, पर यह भी सच है कि रामायण के पुष्पक विमान का विज्ञान यहां से विदेश गया और एविएशन के रूप में आज दुनियाभर में बेहतरीन ट्रांसपोर्ट का जरिया बन चुका है। शिवकर बापूजी तलपड़े के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने 1895 में एक ऐसा विमान बना लिया था, जो बगैर इंसान के उड़ाया जा सकता था और यह विमान उन्होंने वेदों में लिखे सूत्रों के अनुसार बनाया था। विज्ञान के इस आश्चर्यचकित कर देने वाले ज्ञान का यह आदान-प्रदान न जाने कब से होता आ रहा है जो अभी तक जारी है। शहर के युवाओं ने भी इसी बात को अपनाते हुए विज्ञान से नाता जोड़ लिया है। कोई युवा विदेश की तकनीक भारत में लाया है तो कोई यहां की तकनीक से विदेश में भी काम कर रहा है। इस विज्ञान दिवस पर हम ऐसे ही युवाओं के इनोवेटिव आइडियाज से आपको मिलवा रहे हैं।


 

विदेश की तकनीक भारत में


शहर के 39 वर्षीय अमित गांगुर्डे ने विज्ञान के उस प्रयोग को भारत में लाकर दिखाया जो अभी तक यहां सोच से परे था। भवन निर्माण में सहजता के साथ उसकी मजबूती एक अहम मुद्दा होती है जो कि मजबूत नींव पर टिकी होती है। यह नींव लोहे के कॉलम पर आधारित होती है और लोहे की मजबूती तब तक ही रहती है जब तक कि उसे जंग न लगे। पर क्या कभी आपने फायबर ग्लास से बने सरिये के बारे में सोचा है जो जंग से परे है। अमित ने देश को इसी फायबर ग्लास के सरिये से रूबरू कराया है। इस तकनीक को एसजीएसआईटीएस और आईआईटी हैदराबाद ने सर्टिफाइड किया है। सामान्य लोहे के सरिये से फायबर ग्लास के सरिये 3 गुना मजबूत और 9 गुना हल्के होते हैं क्योंकि इसमें फायबर ग्लास के साथ एम्पॉक्सी रेजेंस का इस्तेमाल हुआ है। इससे यह कम वजनी और मजबूत बनता है। जहां तक इसकी उम्र की बात है तो सामान्य सरिये की उम्र न्यूनतम 40 वर्ष मानी जाती है, जबकि इसकी न्यूनतम उम्र 80 वर्ष है।


 

अमित कहते हैं इस तरह के सरिये के निर्माण का निर्णय इसलिए लिया, ताकि भवन, पुल आदि ज्यादा मजबूत बन सकें। चूंकि इसमें 93 प्रतिशत फायबर ग्लास है और महज 7 प्रतिशत ही केमिकल है। इसलिए ज्यादा रसायनों का इस्तेमाल नहीं होने से प्रकृति को भी इससे ज्यादा हानि नहीं पहुंचती। यही नहीं इसका निर्माण 400 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर होता है, जबकि सामान्य स्टील का निर्माण 1100 डिग्री पर होता है। इस पहलू से कार्बन उत्सर्जन भी बहुत कम है।


एसी क्लीनिंग का नया सिस्टम


एयरकंडीशनिंग सिस्टम गर्मी से राहत तो देता है, लेकिन उसका रखरखाव यदि सही तरीके से ना हो तो यह बीमारी भी दे सकता है। ऐसा नहीं कि एसी साफ नहीं किए जाते, लेकिन अभी तक इन्हें साफ करने के जो तरीके हैं, उससे इनकी धूल तो हट जाती है, पर बैक्टीरिया नहीं हटते। शहर के दो युवा यजुवेंद्र सिंह (35 वर्षीय) और इरशाद मुबीन (30 वर्षीय) ने इसी परेशानी का अनुभव किया और विज्ञान से हाथ मिलाते हुए एक ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम करना शुरू किया, जो इस समस्या का निदान कर दे। मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर चुके इरशाद और एमबीए के स्टूडेंट रह चुके यजुवेंद्र ने यह काम अल्ट्रावॉयलेट मशीन और खुद के द्वारा बनाए गए खास तरह के केमिकल से किया। वे बताते हैं कि एसी क्लीनिंग में अमूमन फिल्टर को साफ कर दिया जाता है, जबकि अन्य पार्ट्स साफ नहीं होते।


एसी में नमी और धूल दोनों ही होते हैं, जिससे बैक्टीरिया पनपते हैं। अल्ट्रावॉयलेट मशीन और केमिकल से करीब 90 प्रतिशत तक बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। इस तकनीक को पेटेंट कराने के लिए भी एप्लाय किया जा चुका है। सफाई का यह तरीका ना सिर्फ प्रभावशाली है, बल्कि परंपरागत तरीकों के मुकाबले सस्ता भी है।


मजबूत हैं फायबर ग्लास के सरिए : शहर के युवा ने देश को फायबर ग्लास के सरिए से रूबरू कराया है। इस तकनीक को एसजीएसआईटीएस और आईआईटी हैदराबाद ने सर्टिफाइड किया है। फायबर ग्लास के सरिए न केवल मजबूत हैं, बल्कि आयरन सरिए से सस्ते भी हैं। इन्हें आवश्यकता के अनुरूप लंबाई में ही कटवाकर लिया जा सकता है, जिससे यह बेकार भी नहीं होता। इससे पैसों की अनावश्यक बर्बादी भी नहीं होती।


बैट्री की लाइफ 20 फीसदी बढ़ जाएगी।


एसी में बैक्टीरिया की भी सफाई के लिए काम करना शुरू किया : इंदौर के दो युवा यजुवेंद्र सिंह (35 वर्षीय) और इरशाद मुबीन (30 वर्षीय) ने एसी में बैक्टीरिया की परेशानी से निजात दिलाने के लिए एसी क्लीनिंग की नई तकनीक पर काम किया और इसे हमसे रूबरू कराया।


5जी से भी फास्ट चलेगा इंटरनेट, बढ़ेगी डेटा कम्यूनिकेशन की स्पीड : 5जी टेक्नोलॉजी आने के पहले संस्थान टेराहर्ट्स टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है। विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सतीश कुमार जैन का कहना है इस समय गीगाहर्ट्स टेक्नोलॉजी पर आधारित फ्रिक्वेंसी पर सभी काम कर रहे हैं। टेराहर्ट्स टेक्नोलॉजी पर देश में बहुत कम हो रहा है। इससे 1.1 टेराहर्ट्स फ्रिक्वेंसी पर सिग्नल भेजे जा सकेंगे। यह गीगाहर्ट्स फ्रिक्वेंसी के मुकाबले ज्यादा तेजी से काम करेगी। इस टेक्नोलॉजी से इंटरनेट की स्पीड कई गुना बढ़ जाएगी।