सम्राट विक्रमादित्य की जन्मस्थली भीकमपुर में पत्थरों से गूंजती है सरगम

सम्राट विक्रमादित्य की जन्मस्थली भीकमपुर में पत्थरों से गूंजती है सरगम


नागदा / शहर से 12 किमी दूर स्थित सम्राट विक्रमादित्य की जन्मस्थली भीकमपुर में मौजूद प्राचीन कुंड से निकले पत्थरों पर दूसरे पत्थर से चोट मारने पर मधुर सरगम निकलती है। इसकी पुष्टि पुरातत्वविद् आरसी ठाकुर ने की है। ठाकुर के अनुसार कुंड या तालाब में मौजूद पत्थरों का भार समय के साथ कम होता जाता है। इससे वह कम वजनी होते हुए खोखले हो जाते हैं। प्राचीन समय में महल निर्माण के लिए एरन पत्थरों का उपयोग होता था। पत्थर अलग-अलग विशेषता वाले होते थे।



भीकमपुर कुंड में मौजूद पत्थर का उपयोग प्राचीन समय में कुएं या कुंड में सीढ़ियां बनाने के लिए किया गया होगा। समय के साथ पत्थरों का स्वरूप बदला और खोखले होने के कारण इनसे संगीत ध्वनि प्रस्फुटित होने लगी है। ठाकुर के अनुसार संस्कृत की सर्वाधिक लोकप्रिय कथा वेताल पंचविंशति या बेताल पच्चीसी जिसमें विक्रमादित्य के जन्मस्थल का वर्णन किया गया है। भीकमपुर गांव महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन के समान महत्ता रखता है। राजा विक्रमादित्य का जन्म गांव विक्रमपुर में हुआ था। जो अपभ्रंश होकर वर्तमान में भीकमपुर नाम से जाना जा रहा है।


ठोकर लगते ही उतर जाता है कुंड का पानी
गांव के बलदेव गुर्जर कहते हैं कि कुंड को बचपन से देख रहे हैं, बारिश में कुंड लबालब हो जाता है। इस कुंड का पानी वृद्ध कालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में स्वत: भर जाता है। कुंड के पानी को ठोकर लगते ही जलस्तर नीचे चला जाता है। इससे गर्भगृह से पानी उतर जाता है।


यह भी विशेषता : तीन किमी क्षेत्र में प्राचीन अवशेषों का भंडार
भीकमपुर के तीन किमी के क्षेत्र में प्राचीन अवशेषों का भंडार है। सरपंच अर्जुन सिंह, सम्राट विक्रमादित्य स्काउट के दल नायक डॉ. रामसिंह कुशवाह ने बताया गांव के चारों ओर मंदिर बने हुए हैं। जहां जमीन में से निकली प्रतिमाएं ही स्थापित की गई है। इसमें पूर्व में नागदा रोड पर घोड़ारूंडी है, जहां जैन समाज की 11 अति प्राचीन दिगंबर प्रतिमाएं खुदाई में मिली है। पश्चिम में खाचरौद रोड पर कालिका माता मंदिर, दक्षिण नदी किनारे गोराजी का मंदिर, उत्तर में कुंड, भेरूजी व सती माता का मंदिर बना हुआ है।


घोड़ारुंडी का चक्कर लगाने पर हाेता है स्वस्थ घाेड़ा
गांव की बाहरी सीमा पर एक मिट्टी का टीला है। जिसे ग्रामीण घोड़ारुंडी कहते हैं। गांव के जीवनसिंह गुर्जर बताते हैं घोड़ारुंडी में एक पत्थर की चक्की मौजूद है। प्राचीन समय में उक्त चक्की को घोड़ों से चलवाया जाता था। मान्यता है कि बीमार घोड़ों को घोड़ारुंडी के चक्कर लगवाने से वह स्वस्थ हो जाते हैं।


पर्यटन मानचित्र में शामिल कराने का प्रयास
विधायक दिलीपसिंह गुर्जर ने बताया भीकमपुर के वृद्ध कालेश्वर मंदिर का विकास कराया जा रहा है। गांव पर्यटन विभाग के मानचित्र में शामिल कराने के प्रयास हैंं, जिससे राजा विक्रमादित्य की जन्मस्थली से पर्यटक परिचित हो सके।