बिहाइंड द कर्टन

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प्रभार के जिलों में क्यों नहीं जाते मंत्री



कमलनाथ सरकार के दो मंत्री आरिफ अकील और इमरती देवी लंबे समय से अपने प्रभार के जिले में नहीं जा रहे हैं…ये मंत्री प्रभार के जिले के अफसरों की कार्यशैली से नाराज हैं….अफसरों के रवैए की शिकायत दोनों मंत्रियों नेे मुख्यमंत्री से भी की है…बताते हैं कि मंत्रियों के जिले में नहीं जाने से जिला योजना समितियों की बैठकें भी नहीं हो पा रही हैं… सबसे ज्यादा नाराज मंत्री आरिफ अकील बताए जाते हैं….वे अपने प्रभार जिला भिंड के एसपी से नाराज हैं…खबर है कि मंत्री अकील ने मुख्यमंत्री को स्पष्ट कह दिया है कि जब तक भिंड एसपी रूडोल्फ अल्फारेज को नहीं हटाया जाएगा, तब तक वे भिंड नहीं जाएंगे… आठ महीने में आरिफ अकील एक भी बार भिंड नहीं पहुंचे हैं…इसी तरह गुना जिले की प्रभारी मंत्री इमरती देवी कलेक्टर भास्कर लक्षकार से बेहद नाराज हैं… वे सार्वजनिक रूप से बयान दे चुकी हैं कि कलेक्टर उनके आदेशों-निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं…. इमरती देवी चार महीने से अपने प्रभार के जिले में नहीं गई हैं…ऐसे सवाल है कि जब अधिकारी मंत्रियों की नहीं सुन रहे हैं, तो उनका रवैया आम जनता के प्रति कैसा होगा, अंदाज लगाया जा सकता है…।


महदेले की नाराजगी के मायने
प्रदेश भाजपा में अध्यक्ष राकेश सिंह के खिलाफ फिर स्वर सुनाई देने लगे हैं….मप्र भाजपा की नेत्री एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री कुसुम मेहदेले ने मप्र भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी बैठक न होने पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं…. महदेले ने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा है कि पार्टी संविधान के अनुसार भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक हर तीन महीने में होनी चाहिए, लेकिन यह बैठक सवा साल से नहीं हुई है…पार्टी के एक पदाधिकारी कहते हैं कि महदेले का कार्यकारिणी की बैठक न होने को लेकर आक्रोश जताना तो बहाना है, सच तो यह है कि विधानसभा चुनाव 2018 में 75 की उम्र के फैक्टर में आने के चलते पार्टी द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद से ही वे नाराज चल रही हैं…इसके पहले भी कई बार महदेले की नाराजगी बयानों के जरिए सामने आ चुकी है…खबर तो यह भी है कि महदेले की तरह से पार्टी के दूसरे तमाम पदाधिकारी भी कार्यकारिणी की बैठक नहीं होने को लेकर दबे स्वरों में विरोध जता चुके हैं…अब देखना यह है कि महदेले की इस नाराजगी को पार्टी किस नजरिए से लेती है…।


डीजीपी चयन का लेकर विवाद
संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) का पैनल खारिज कर डीजीपी वीके सिंह को हटाने की खबरों से प्रदेश के आईपीएस अफसर खफा हैं…. कुछ वरिष्ठ अफसरों ने संकेत दिया कि सरकार ने यदि डीजीपी चयन में वरिष्ठता को नजरंदाज किया तो वे कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं….आईपीएस ने इसके पहले सरकार से पूछा है कि यूपीएससी के पैनल को अस्वीकार करने के क्या कारण हैं….बताते हैं कि अब तक मध्यप्रदेश की परंपरा रही है कि पुलिस और वन विभाग में वरिष्ठ अफसर ही मुखिया बनता आया है….आईपीएस अफसरों ने चेतावनी के लहजे में कहा है कि यदि डीजीपी चयन में सरकार ने मनमर्जी चलाई तो वे सरकार को कोर्ट को चुनौती देने से नहीं हिचकेंगे। बताते हैं कि यूपीएससी ने डीजीपी चयन के लिए सीनियर आईपीएस वीके सिंह, विवेक जोहरी एवं मैथिलीशरण गुप्त का पैनल बनाकर भेजा था, जिसे मानने से सरकार ने इंकार कर दिया है और वह वीके सिंह की जगह स्पेशल डीजी राजेंद्र कुमार को डीजीपी की कुर्सी पर बैठाना चाहती है, जो वरिष्ठताक्रम में छठवें क्रम के अधिकारी हैं….अब देखना यह है कि आईपीएस सरकार के फैसला के खिलाफ कोर्ट में जाते हैं या फिर सरकार की मनमर्जी चलती है…।
मप्र पुलिस के अफसरों को प्रशिक्षण
मप्र पुलिस के अफसर अब बैंकिंग धोखाधड़ी, चिटफंड, सूदखोरी एवं सहकारी संस्थाओं के वित्तीय घोटाले की जांच संबंधी बारीकियां भी सीखेंगे…इसके प्रशिक्षण के लिए उन्हें सीबीआई एकेडमी भेजा जाएगा… ट्रेनिंग लेकर आने वाले अधिकारी थाना स्तर के स्टॉफ को विवेचना के गुर सिखाएंगे… मप्र में पहली बार यह प्रयोग शुरू किया जा रहा है…इसके बाद सहकारिता विभाग के अफसरों को भी यह प्रशिक्षण दिया जाएगा…बताते हैं कि अभी आर्थिक घोटालों और फर्जीवाड़ों की जांच के लिए सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय, सीरियस फ्रॉड इंवेस्टीगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) अथवा आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) को सौंप दिया जाता है, लेकिन वित्तीय, चैक बाउंस, फर्जी दस्तावेज और बैंकिंग धोखाधड़ी के छोटे मामलों की पड़ताल नहीं हो पाती है… पुलिस के पास हजारों की संख्या में ऐसे मामले पेंडिंग पड़े हुए हैं…माना जा रहा है कि मप्र पुलिस के अफसरों के प्रशिक्षित होने के बाद इस तरह के मामलों का जल्द निराकरण हो सकेगा और जांच के लिए पेंडिंग प्रकरणों का भी निपटारा हो सकेगा..।