युवक की मौत के 4 साल बाद मर्डर का केस दर्ज ...क्योंकि देरी से मिली पोस्टमार्टम रिपोर्ट



रायपुर / पं. जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक साइंस विभाग में हत्या, हादसा और खुदकुशी सहित 604 संदिग्ध माैतों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट एक-एक साल से अटकी है। पीएम रिपोर्ट नहीं मिलने से पुलिस किसी केस में हत्या का केस दर्ज नहीं कर पा रही है, तो किसी में एक्सीडेंट का अपराध पंजीबद्ध नहीं हो रहा।


पीएम रिपोर्ट के बिना प्रापर्टी के नाम ट्रांसफर के भी कई केस अटके हैं। आमानाका में एक युवक की मौत के 4 साल बाद अब केस दर्ज हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि पीएम रिपोर्ट इतनी देर से थाने पहुंची कि अफसरों का तबादला हो गया और रिपोर्ट का लिफाफा फाइल में दब गया। थाने की सफाई के दौरान वही रिपोर्ट हाथ आई तो अपराध पंजीबद्ध किया गया। 


पीएम रिपोर्ट अटकने से पुलिस की अपनी दिक्कतें हैं तो मृतक के परिजन भी इसमें उलझ गए हैं। कहीं प्रापर्टी का बंटवारा नहीं हो रहा है तो कहीं आश्रितों की पेंशन अटकी है। किसी को जिला प्रशासन से एनओसी का इंतजार है। आमानाका में तो रिकार्ड चार साल बाद पुलिस अब युवक के हत्यारे की खोज कर रही है। युवक की लाश रेलवे ट्रैक के पास झाड़ियों में बेहद बुरी स्थिति में मिला था। शव काफी दिन वहीं पड़ा रहा, इसलिए पहचान नहीं हो सकी। पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया।


करीब 8 माह बाद रिपोर्ट डाक से आई, तब तक थाने के ज्यादातर स्टाफ का तबादला हो गया। रिपोर्ट का लिफाफा फाइलों में दब गया। अब सफाई के दौरान लिफाफा मिला। उसके बाद पता चला कि अज्ञात युवक के सिर पर धारदार हथियार से मारा गया था। अब पुलिस पहले उसकी पहचान की कोशिश कर रही है। पहचान होगी तब हत्या का सुराग तलाश करेंगे।   


देरी इसलिए भी
एक पीएम और रिपोर्ट तैयार करने में दो से ढाई घंटे का समय लग जा रहा है। हर केस में डाॅक्टर को कोर्ट में पेशी सुबह मेडिकल कॉलेज में क्लास। कभी-कभी फोरेंसिक एक्सपर्ट के तौर पर भी बुलावे पर दूर-दराज के शहरों पर दौरा। इस वजह डाॅक्टर रोज जितने पीएम करते हैं, उतने की रिपोर्ट तैयार नहीं कर पा रहे हैं। रोज-रोज की पेडिंग से आंकड़ा बढ़कर छह सौ के पार हो गया है। 


जरूरी है रिपाेर्ट
सड़क हादसा और ट्रेन दुर्घटना में सरकार मृतक और घायल परिवार को मुआवजा देती है। यह मुआवजा 25 हजार से लेकर एक-एक लाख तक जाता है। कई बार ये 3 लाख तक होता है। कई मामलों में पुलिस वाले पीएम रिपोर्ट के आधार पर घटना की रिपोर्ट बनाकर कलेक्टर को भेजते हैं। उसके आधार पर मुआवजा मिलता है।


पुलिस का अपना ही तर्क
थानेदारों का कहना है वे भी चाहते हैं कि पीएम रिपोर्ट जल्द से जल्द मिल जाए और मृतक के परिजनों को दे सकें। पीएम रिपोर्ट के लिए अलग से सभी थानों में स्टाफ रखा गया है। जो रोज अस्पताल जाकर डॉक्टरों से रिपोर्ट के लिए निवेदन करते हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा है। डॉक्टर्स हर बार नया-नया तर्क देते हैं। रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण केस दर्ज नहीं कर पा रहे हैं। यहां तक कि केस की जांच नहीं हो पाती। कोर्ट में चार्जशीट पेश करना तो दूर की बात है आरोपियों को पकड़ नहीं पाते है, क्योंकि मौत का कारण मेडिकल रिपोर्ट से पुष्ट नहीं होता। कोर्ट भी मेडिकल रिपोर्ट को मानती है। खुदकुशी, एक्सीडेंट, बीमारी से मौत से लेकर मर्डर तक सभी मामलों में रिपोर्ट जरूरी है। एक-एक साल से रिपोर्ट के लिए चक्कर अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। लगातार चिट्ठी लिखी जाती है। 


4 डॉक्टर हर महीने करते हैं 325 पोस्टमार्टम
अंबेडकर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए सिर्फ 4 डॉक्टर्स हैं, जबकि 11 डॉक्टर और आधा दर्जन सहयोगी के पद हैं। ये पद अब तक नहीं भरे गए। शासन को कई बार इसके लिए चिट्ठी लिखी गई। डॉक्टरों को पीएम के अलावा मेडिकोलीगल एक्सपर्ट के तौर भी कई मामलों में जांच के लिए भेजा जाता है। जिनके पीएम करते हैं, उनके केस की सुनवाई के लिए कोर्ट जाना पड़ता है। अंबेडकर अस्पताल में सूरजपुर, जशपुर से लेकर कांकेर और राजनांदगांव के शव भेजे जाते हैं, ऐसी दशा में डाक्टरों को उन शहरों में भी पेशी में जाना पड़ता है।


पड़ताल में खुलासा
भास्कर की पड़ताल में खुलासा हुआ कि रायपुर के हर थाने में औसतन 20 से ज्यादा केस की रिपोर्ट नहीं मिल पाई है। रायपुर में 30 थाने हैं, जिनमें 600 से ज्यादा केस की रिपोर्ट पेडिंग है। यह आंकड़ा अकेले रायपुर का है। यहां दूसरे शहरों के लोगों का भी पोस्टमार्टम होता है। उन्हें भी रिपोर्ट नहीं मिल पा रही है। राज्य का सबसे बड़ा अस्पताल होने के कारण यहां रोज औसतन 13 से 16 पीएम किए जा रहे हैं। इसके लिए डाॅक्टर केवल चार हैं। 


मौत के बाद भी केस दर्ज नहीं
मेरे पति की 14 दिसबंर 2018 की भनपुरी में सड़क हादसे में मौत हुई। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट अब तक नहीं मिल पाई है। इसके लिए मैं कई बार थाने जा चुकी हूं। हर बार कहा जाता है कि अस्पताल रिपोर्ट के बिना कैसे केस दर्ज करें? हादसे में मौत होने के कारण उन्हें बीमा क्लेम मिलना है। मदद के बिना गुजारा मुश्किल हो रहा है।- उषा भाई, भनपुरी



आरोपी को नहीं मिली सजा
मेरे भाई की 28 फरवरी 2019 को सड़क दुर्घटना में मौत हुई। पुलिस ने उन्हें चपेट में लेने वाले के खिलाफ केस दर्ज तो किया, लेकिन 11 महीने बाद भी अब तक पीएम रिपोर्ट नहीं मिली। इस कारण आरोपी को छोड़ दिया गया है। पुलिस ने चार्जशीट भी पेश नहीं की है। मेरे भाई का एक्सीडेंट करने वाले को सख्त से सख्त सजा मिलना चाहिए। - छविलाल साहू, टिकरापारा


पोस्टमार्टम के आंकड़े


604 पोस्टमार्टम रिपोर्ट पेडिंग हैं रायपुर में


66 रिपोर्ट उरला थाने की सबसे ज्यादा पेडिंग


10 रिपोर्ट टिकरापारा थाने की सबसे कम पेडिंग


12-15 रिपोर्ट औसतन सभी थानों में पेडिंग 


जल्दी रिपोर्ट बनाने की कोशिश
रोज औसतन 12 शव पीएम के लिए आते हैं। एक शव का पीएम करने में पौन घंटे लगते हैं। रिपोर्ट बनाने में एक से पौन घंटे लगते हैं। कोर्ट-कचहरी जाने के साथ मेडिको लीगल जांच भी करनी होती है। जल्दी रिपोर्ट तैयार करने की कोशिश की जाती है, लेकिन स्टाफ की भी कमी है। - स्निग्धा जैन बंसल, एचओडी, फॉरेंसिक साइंस


रिपोर्ट के लिए हर महीने चिट्ठी
पोस्टमार्टम रिपोर्ट अस्पताल से मिलती है। सही समय में रिपोर्ट नहीं मिलने के कारण जांच में समय लगता है। इसके लिए हर महीने चिट्ठी भेजी जाती है। डॉक्टर्स पर भी बहुत दबाव रहता है। इसलिए कार्रवाई नहीं की जाती है। - शेख आरिफ हुसैन, एसएसपी



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